खरगोन शहर
खरगोन शहर
ख़ामोश होती ज़ुबाँ फिर से ज़िन्दगी की हो पहल शुरू, लफ्ज़,अल्फ़ाज़ औऱ क़लम इन्हीं से बनती पहचान है।बिखरतें चला जाऊंगा अल्फ़ाज़ अपने ज़िन्दगी के साँयों में, सिमटते चलें जाएंगे, आशियाने अपने कल्पनाओं के साथ, फिर से भावनाओं के बहाव में उकेरता जीवन ख़ामोशी के अहसासों में अट्टाहास के निहित स्वार्थों में कैसे उभरेगा जीवन ज़मीं. से आसमाँ तक पहुंचना नहीं होता आसान। जीवन जिसका कोई महत्व नहीं भावनाओं के विपरीत परिस्थितियों में निहित।
करता नहीं कभी कोई तुलना अपनी श्रेणी में, शत प्रतिशत अनुभव अपना स्वार्थों में जीवन नहीं जिसका कोई महत्व हो।ख़ामोशियाँ फिर से स्मित अपनी करता जहाँ मैं....कहने को कुछ नहीं पास मेरे जीवन के जिसमें कोई शेष भाव नहीं।
खरगोन शहर का रहने वाला "हार्दिक" जहाँ हैं तो काफी बड़ा शहर मेरा भी पर यहां की खूबसूरती मानों बिल्कुल भी अच्छी नहीं,यहां के लोगो का स्वभाव एक स्वाभाविक है। पर कुछ लोगों का स्वभाव बेकार हैं। रात दिन अपनी ही गतिविधियों में सोचता हूँ, कैसे शहर में हूँ, कैसी खामोशी में हूँ, कैसे अपने जीवन मे मैं निदर्भित हैं।
अहसाओ के साँयों में जीना सीखा है, खरगोन शहर में मैंने,कहता हूं हमेशा अपने परिवार से हम कैसे शहर मे है आज जो एक शहर कहलाने के लायक बिल्कुल भी नहीं।यहां के लोगों का व्यवहार,यहां के लोगों का आंकलन यहां के लोगों की संख्या सब कुछ सीमित हैं। घर व्यापार व्यवसाय औऱ जीवन इसी आधारित पर आज जीवित हैं।
हमारा शहर देखने मे जितना खूबसूरत हैं, उतना दिखने में नहीं हैं। हमारे शहर के लोग जहां देखने मे भोले भाले हैं। कुछ लोग मानों जैसे जानवरो से भी गए गुज़रे है।यहां का जीवन औरो से अलग यहां के लोगो का रहन सहन औऱ भावनाओं में विलिन हैं।रात दिन सुबह दोपहर शाम हर बार सोचता रहता हूँ कैसे शहर में जी रहा हूँ, जहां पर कोई व्यक्ति और व्यवहार ठीक नहीं हैं। यहां का रहन सहन यहां के लोगों का मानों जैसे बस एक कचरे कि पेटी जैसा हैं। इसे जीतना कचरें में डालो उतना ही फैलते चला जाता हैं।
हमारा खरगोन शहर तो अच्छा हैं, पर यहां के लोगों का व्यपवहार नहीं। सड़कों पर पान गुटखा खाकर थूकना एक दूसरे से किस तरह से बात करना कुछ भी अच्छा नहीं।यहां के लोगों का व्यवहार एक कचरा हैं, जिसे एक कान से सुनो और दूसरे कान से निकाल दो। यहां रहने वाले कुछ लोग ऐसे भी है, जो अपने व्यवहार से तो अच्छे हैं। पर अपनी दिनचर्या में सुधार नहीं। यहां ऐसा लगता हैं, रहना जैसे जिंदगी बस बेकार हैं।
आस-पास के घरों में रहने वाले लोगों का रहना तो ठीक है यहां पर दूसरों के घरों के बाहर कचरा फैलाना यह ग़लत है।कचरे की गाड़ी में कचरा नहीं डालना यहां के लोगों का व्यवहार है।कूड़ा कचरा गन्दी को फैलाना ज्यादा खाना बनाकर ज्यादा खाना फेकना रहीस लोगों का यही वजह से आज खरगोन शहर शहर जैसा बिल्कुल भी लगता नहीं हैं।
