कैप्टन

कैप्टन

4 mins
430


टूर्नामेंट शुरू होने के कुछ दिन पहले ही हर्ष चोटिल हो गया। उसके लिए यह बहुत बुरा समय था। वह बास्केटबॉल टीम का कैप्टन था। पूरी उम्मीद थी कि वह इस बार अपनी टीम को जीत दिलाएगा। लेकिन अब तो कोर्ट में भी नहीं उतर सकता था।

हर्ष ने एम बी ए किया था। उसके पिता चाहते थे कि वह खेल छोड़ कर उनका व्यापार संभाले लेकिन बास्केटबॉल उसका जुनून था। वह बास्केटबॉल खेलना नहीं छोड़ सकता था। अपनी मेहनत से उसने इस खेल में अपना नाम बना लिया था।

हर्ष उदास बैठा था। चोट तो बहुत हद तक ठीक हो चुकी थी लेकिन दिल अभी भी उतना ही दुखता था। ईश्वर से यही कहता था कि उसके जीवन के इतने महत्वपूर्ण समय में यह क्यों किया। तभी उसके पिता हरीश उसके पास आकर बैठे। 

"बेटा इतना उदास क्यों रहते हो ? इस बार ना सही अगली बार तुम अपनी टीम के साथ अवश्य होगे।"

"पापा ये बहुत अच्छा मौका था खुद को साबित करने का। वह हाथ से चला गया।"

हरीश ने अपने बेटे को हौसला देते हुए कहा।

"तुम खिलाड़ी हो बेटा, ऐसे हार ना मानो। बास्केटबॉल कोर्ट पर तो तुम अपने को पहले ही साबित कर चुके हो। अब खुद मैं तुम्हें एक दूसरा कोर्ट देता हूँ, वहाँ कमाल करके दिखाओ।"

हर्ष अपने पापा की बात समझ नहीं पाया। उसके असमंजस को देख कर उन्होंने समझाया।

"अभी कुछ महीनों तक तो तुम बास्केटबॉल कोर्ट में नहीं जा सकते। तब तक अपनी कप्तानी का हुनर मेरे बिज़नेस में दिखाओ।"

"पापा ज़रा खुल कर बताइए।"

"देखो मैंने अपने बिज़नेस की जो नई ब्रांच खोली है वहाँ काम ठीक नहीं चल रहा। उन्हें सही नेतृत्व देने वाला कोई नहीं है। तुम वहाँ जाओ और उन्हें लीड करो। मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम कर सकते हो।"

हर्ष फिर सोच में पड़ गया। वह एक खिलाड़ी है व्यापारी नहीं। वह क्या कर सकेगा। हरीश उसकी दुविधा को समझ गए। 

"हर्ष तुम्हें वहाँ जाकर उन्हें एक टीम की तरह काम करना सिखाना है। उन्हें प्रोत्साहन देना है। जैसे अपने साथी खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करते हो। व्यापारी बुद्धि तो मैं ही लगाऊँगा।"

हर्ष अपने पिता के प्रस्ताव पर विचार करता रहा। उसे प्रस्ताव बुरा नहीं लगा। जब तक वह पूरी तरह फिट नहीं होता है तब तक प्रैक्टिस नहीं कर सकता है। खाली बैठे रहने से अच्छा है कि वह अपनी कप्तानी को आज़मा ले। हर्ष अपने नए मिशन पर चला गया।

ब्रांच ऑफिस का माहौल ठीक नहीं था। स्टाफ ऑफिस पॉलिटिक्स के चलते दो धड़ों में बंटा था। इसके अलावा उसके विषय में वहाँ के स्टाफ की आम राय थी कि वह बड़े बाप का बेटा है। शौकिया बास्केटबॉल खेलता है। चोट के कारण टीम से बाहर है इसलिए यहाँ आ गया। 

हर्ष के सामने दो चुनौतियां थीं। अपने बारे में उनकी राय बदलना। दूसरा उन दो धड़ों को एक कर अपने नेतृत्व में लाना। उसने इसी पर काम शुरू किया। 

अपने बारे में राय बदलने के लिए उसने व्यक्तिगत तौर पर स्टाफ से जुड़ना शुरू किया। बास्केटबॉल कैप्टन के तौर पर उसका अनुभव काम आ रहा था। जैसे वह अपनी टीम के खिलाड़ियों की क्षमताओं का आंकलन करता था उसी तरह उसने ऑफिस स्टाफ के गुणों को परखना शुरू किया।

वह उन्हें प्रोत्साहित करता कि वह सब एक टीम की तरह काम करें जिससे जो टार्गेट मिला है वह आसानी से हासिल किया जा सके। कोई अच्छा काम करता तो सबके सामने उसकी तारीफ करता। काम में चूक होने पर बड़ी शांति से अकेले में समझाता। 

सबने उसका नेतृत्व स्वीकार कर लिया था। अब सब एक टीम थे। उनका लक्ष्य टार्गेट हासिल करना होता था। कुछ ही दिनों में नई ब्रांच बाकी सभी ब्रांचों से अच्छा बिज़नेस करने लगी। 

हर्ष अब पूरी तरह से फिट था। वह अब वापस बास्केटबॉल कोर्ट में उतरना चाहता था। जब वह ऑफिस से विदा ले रहा था तो स्टाफ के लोगों को ऐसा लग रहा था जैसे उनका सबसे अच्छा दोस्त जा रहा हो।

बास्केटबॉल की लीग शुरू हुई थी। इसमें पाँच राज्यों की टीमें भाग ले रही थीं। इनमें एक टीम का कैप्टन हर्ष था। उसे जो टीम मिली थी वह उसके लिए नई थी। अब तक सब अलग अलग खेलते रहे थे। हर्ष को उन्हें एकजुट कर टीम बनाना था। 

ब्रांच ऑफिस का अनुभव यहाँ उसके काम आया। उसने सभी खिलाड़ियों को एक कर जीत के लक्ष्य के लिए तैयार किया।

उसकी टीम ने ही लीग की चैंपियनशिप जीती।


Rate this content
Log in