हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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5.0  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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कातिल कौन,भाग 27

कातिल कौन,भाग 27

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जिस तरह से अनुपमा के मम्मी पापा की वास्तविकता अदालत में सबके सामने खुली थी उससे संपूर्ण वातावरण बहुत भावुक हो गया था । मालती देवी और डॉक्टर सचिन शर्मा के आंसू ऐसे निकल रहे थे जैसे किसी स्थान पर बादल फटने से बाढ का पानी उफन उफन कर बहने लगता है और अपने साथ बहुत सारी चीजें भी बहाकर ले जाता है । मालती देवी के साथ भी ऐसा ही हो रहा था । 


विद्यालय जीवन में ही वह सचिन को दिल दे बैठी थी । किशोर उम्र की नादानियों में वह एक ऐसा काम कर गई जिसकी सजा उसे अब तक मिल रही थी । उसकी एक नादानी का कितना भीषण दंड मिल रहा है उसको ? जिसे पति समान देवता समझा उसके दर्शन ही दुर्लभ हो गये । उसके दिल में जो प्यार का सागर सचिन के लिए उमड़ता था वह अकेलेपन के रेगिस्तान में कहीं विलुप्त हो गया था । उसकी अपनी जाइन्दा औलाद का मुंह देखने के लिए भी तरस गई थी वह । उससे कभी कभार मुलाकात तो हो जाती थी पर उस थोड़ी सी मुलाकात से वर्षों की प्यास कैसे बुझती ? बल्कि उस छोटी सी मुलाकात से वह पायास और भी अधिक भड़क जाती थी । उसका ममता का सागर उफानें मारता था, हिलोरें ले लेकर इधर उधर मचलता था मगर उसकी प्यास कौन बुझा सकता था ? आज वही प्रेम का समुद्र और ममता का सागर दोनों ही निर्द्वंद्व होकर बाढ की तरह उमड़ पड़े थे और अपने साथ शोक, संताप, दुख, वियोग , अपमान , मर्यादा सबको बहाकर ले गए थे । अब उसका मन निर्मल हो गया था । बाढ आने के बाद जैसा मंजर होता है , मालती देवी के चेहरे का हाल भी वैसा ही हो रहा था । 


डॉक्टर सचिन शर्मा ने पता नहीं कब देखा था मालती को । मालती ने ही जानबूझकर डॉक्टर साहब से दूरी बना ली थी । वह नहीं चाहती थी कि उसके कारण अपने देवता की गृहस्थी में कोई दरार आये । अनुपमा से यदा कदा मिलती रहती थी वह । उसने अनुपमा को सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह उन दोनों की मुलाकात का कभी भी किसी से जिक्र नहीं करेगी, अपने पापा से भी नहीं । इसीलिए अब तक जितनी भी मुलाकातें उसने मालती देवी के साथ की थीं वे सब गोपनीय थीं । 


कल जब अचानक डॉक्टर सचिन के पास हीरेन का फोन पहुंचा था तब उसने केवल इतना ही कहा कि आपकी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से करवानी है जिसे देखकर आप चौंक जाऐंगे । बस, उसी सरप्राइज को देखने के लिए ही वे यहां आ गये थे । वे जब यहां आये और सारा माजरा देखा तब उन्हें बहुत दुख हुआ । इतने में जब मालती पर उनकी निगाहें पड़ी तो वे उन्हें यहां देखकर स्तब्ध रह गये थे । इतना बड़ा सरप्राइज मिलेगा इसकी कल्पना उन्होंने नहीं की थी । उन्होंने मन ही मन हीरेन को धन्यवाद दिया जो उसने उनकी "जिंदगी" से रूबरू करा दिया था । उनके अश्क गालों से लुढ़क कर मालती देवी पर ऐसे गिर रहे थे जैसे मरूस्थल में सावन की रिमझिम बूंदें गिर रही हों । मालती देवी के लिए वे बूंदें अमृत तुल्य थीं । ये पल उनके लिए जीवन के सबसे कीमती पल थे । इन चंद पलों में दोनों ने न जाने कितनी सदियां जी ली थी । 


अनुपमा उन दोनों का मधुर मिलन बहुत देर तक देखती रही और अपनी जगह पर ही खड़ी खड़ी रोती रही । उसके हृदय के अंदर भयंकर तूफान उठ रहा था । जब उस तूफान को रोक पाना असंभव हो गया तो वह अपनी जगह से भागकर मम्मी पापा के पास आ गई और दोनों से लिपट कर खूब जोर से रोने लगी । डॉक्टर साहब और मालती देवी दोनों ने उसे अपने सीने से लगा लिया । यह दृश्य बड़ा अद्भुत था । जज साहब ने भी अपनी जिंदगी में ऐसा दृश्य कभी देखा नहीं था । जज साहब की आंखें भी उस दृश्य को देखकर नम हो गई थीं । 


अदालत में बैठा हर शख्स रो रहा था और अदालत के बाहर खड़े लोग भी उन्हें देख देखकर रो रहे थे । चारों ओर भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था । इतना बढिया नजारा हो और न्यूज चैनल्स उसे कवर ना करें ? यह असंभव था । जो मीडिया कल तक अनुपमा को हत्यारी, कलंकनी, बेवफा , रंगीली बेगम और न जाने क्या क्या कह रही थी , उसी मीडिया के सुर आज अचानक बदल गए थे । आज वही मीडिया अनुपमा को निर्दोष , मासूम , षड्यंत्र की शिकार औरत बताने में लगी रही । इतना ही नहीं डॉक्टर सचिन और मिस मालती देवी गुप्ता की प्रेम कहानी हर चैनल पर दिखाई जाने लगी । "एक अद्भुत प्रेम कहानी" के नाम से एक फिल्मकार ने इस पर फिल्म बनाने की घोषणा भी कर दी थी । आज चारों ओर गुणगान ही गुणगान हो रहा था उनका । 


उन तीनों से अलग खड़ा हुआ सक्षम चुपचाप यह "मिलन" देख रहा था । उसका मन भी कर रहा था कि वह भी जाकर मालती देवी से लिपट जाये और रो पड़े । लेकिन वह बड़ा ही शर्मीला था । संकोचवश वह वहीं खड़ा रहा । 


"बेटा, अपनी मम्मी के गले नहीं लगोगे क्या ? माना कि मैंने बहुत सारी गलतियां की हैं पर बच्चे तो अपने मम्मी पापा की सारी गलतियां माफ कर देते हैं ना ? मैं झोली फैलाकर तुमसे भीख मांग रही हूं । एक बार मेरे सीने से आकर लग जाओ बेटा" । मालती देवी ने सक्षम के लिए बाहें खोल दी । उनकी इस अपील में इतनी मार्मिकता थी कि सक्षम अपने सारे संशय , किन्तु परन्तु, असमंजस सबको पीछे छोड़कर मालती देवी के सीने से लग गया । मालती देवी के आंसू सक्षम को पवित्र करने लगे । चारों जने आपस में ऐसे लिपटे हुए थे कि पता ही नहीं चल रहा था कि वे कौन कौन हैं । उस सीन को देखकर हीरेन के होंठ गोल गोल हो गये और उन होठों से सीटी बजने लगी 

"एक दूसरे से करते हैं प्यार हम । एक दूसरे के लिए बेकरार हम । एक दूसरे के वास्ते मरना पड़े तो , हैं तैयार हम । हैं तैयार हम" । फिर थोड़ी देर बाद ट्रैक बदल गया "ऐ दिल , लाया है बहार । अपनों का प्यार , क्या कहना । मिले हम , छलक उठा , खुशी का खुमार, क्या कहना । खिले खिले फूलों से आज महक रहा अदालत का हर द्वार, क्या कहना" । हीरेन के गानों की चॉइस और टाइमिंग्स पर दर्शकों ने जमकर तालियां बजाईं । 


तालियों की गड़गड़ाहट से जज साहब की तंद्रा भंग हुई तो वे बोल पड़े "देवियो और सज्जनों , यदि ये 'पारिवारिक मिलन' नामक फिल्म की शूटिंग खत्म हो गई हो तो अदालती कार्यवाही आगे बढायें" ? उनके पान से रंगे हुए लाल लाल होठों पर कानों तलक मुस्कान फैली हुई थी जिसे देखकर सब लोग खिलखिला उठे । 


डॉक्टर सचिन, मालती , अनुपमा और सक्षम सब लोग अलग अलग हो गये । हीरेन ने डॉक्टर साहब और मालती देवी को अपनी अपनी सीटों पर जाने और विटनेस बॉक्स में अनुपमा को खड़े रहने को कह दिया । सक्षम अपनी जगह पर आकर खड़ा हो गया । हीरेन अपनी स्टाइल यानि बालों को ऊपर की ओर झटक कर उनमें उंगली फिराकर अनुपमा से पूछने लगा 

"आपको कब पता चला कि आपकी वास्तविक मां मालती देवी हैं , सरिता देवी नहीं" ? 

"मैं जब एक स्कूल में प्राइमरी क्लासेज में पढती थी तो एक दिन हमारे इंटरवेल के टाइम पर हम लोग लंच लेकर बचे हुए लंच टाइम में खेल रहे थे । तब हमारी बॉल स्कूल के गेट के पास चली गई थी । मैं उसे लेने के लिए गेट के पास गई तो मुझे वहां एक औरत दिखाई दी जो मुझे अपने पास बुला रही थी । मैं दूर से खड़ी होकर उसे देखती रही लेकिन उसके पास गई नहीं । 


फिर उन्होंने अपने बैग से एक टॉफी निकाली और मुझे दिखाई तो मेरा मन ललचा गया लेकिन मैं फिर भी उनके पास नहीं गई । तब उन्होंने अपने पर्स से एक खिलौना निकाला और मुझे दिखाया । वह खिलौना बहुत अच्छा था । उसे देखकर मैं खुद को रोक नहीं सकी और उनके पास चली गई । उन्होंने गेट के बाहर से ही मुझे छुआ और मुझे वह खिलौना और टॉफी दे दी । उन्होंने मुझे खूब प्यार किया । इतने में इन्टरवेल खत्म होने की घंटी बज गई और मैं अपनी क्लास में आ गई । वे मुझे तब तक देखती रहीं जब तक मैं उनकी आंखों से ओझल नहीं हो गई थी । 

फिर तो वे रोज रोज स्कूल आने लगी और मुझे खूब सारा सामान लाने लगी । खाने के लिए भी बहुत कुछ लाती थीं वे इस कारण मेरा लंच बॉक्स भरा हुआ ही वापस घर चला जाता था । मेरी मम्मी को इसके बारे में चिन्ता होने लगी तो एक दिन उन्होंने मुझसे इसका कारण पूछा तो मैंने बता दिया कि एक औरत आकर रोज मुझे अपने हाथ का बना खाना खिलाती है इसलिए मुझे लंच बॉक्स वाला खाना खाने की इच्छा नहीं होती है । 


उसके अगले ही दिन इंटरवेल में वही औरत जब मुझे खाना खिला रही थी तब अचानक मेरी मम्मी वहां आ गई तो मैं खुशी से चीख पड़ी "मम्मी" । मेरी आवाज सुनकर वह औरत चौंकी और उसने मेरी दृष्टि की ओर देखा । वहां पर मेरी मम्मी को जब उन्होंने देखा तो वे आनन फानन में मेरा हाथ छुड़ाकर भाग गईं । मैं अचंभे से उनको जाते हुए देखती रही । मम्मी ने जब मुझसे उस औरत के बारे में पूछा तब मैंने मम्मी को सारी बात बता दी । तब उन्होंने मेरी टी सी कटवा दी और एक दूसरे स्कूल में एडमिशन करवा दिया । 


उस स्कूल में मुझे वह औरत दिखाई नहीं दी । मैं उसे देखना चाहती थी मगर मन मसोस कर रह जाती थी । इस तरह कई वर्ष बीत गये । एक दिन हमारे स्कूल की बस घर से थोड़ी सी दूरी पर खराब हो गई थी तो मैं पैदल पैदल घर जा रही थी । अचानक रास्ते में वह औरत दिखाई दे गई । मैं भागकर उनके पास चली गई । मुझे देखकर वे बहुत खुश हुईं और मुझे गोदी में लेकर वे बेतहाशा चूमने लगी । उन्होंने मुझे अपने सीने से चिपटा लिया । उनके सीने से चिपटने में मुझे बहुत आनंद आता था । मैं आंखें बंद कर उनके सीने से चिपकी रही । इसी हालत में न जाने कब मुझे नींद आ गई । जब मेरी आंख खुली तो मैं अपने घर के बिस्तर पर थी । मैं वहां कैसे पहुंची, मुझे पता नहीं था । 


उन्हें मेरी यूनीफॉर्म से मेरे स्कूल का पता चल गया था । उसके बाद से वे मेरे स्कूल में रोज रोज आने लगीं । अबकी बार वे अपने साथ कोई लंच बॉक्स नहीं लाती थीं बल्कि मेरे ही लंच बॉक्स से अपने हाथों से मुझे खाना खिलाती थीं । मुझे उनके हाथ से खाना खाने में बहुत आनंद आता था । मैं घर जाकर मम्मी से भी अपने हाथ से खाना खिलाने को कहने लगीं । तब मम्मी ने मुझसे पूछ लिया "वो औरत तुम्हारे स्कूल में आकर अब भी खाना खिलाती है क्या" ? 

उनके इस प्रश्न से मैं घबरा गई थी और मैंने डर के मारे मना कर दिया । मुझे इस बात का डर लगा कि कहीं मेरी मम्मी मेरा स्कूल फिर से न बदल दे ? अगर ऐसा हुआ तो वह औरत फिर मुझे कैसे मिलेगी ? मैं उन्हें आण्टी कहकर बुलाती थीं । 


अगले दिन यह बात मैंने आण्टी को बताई तो उन्होंने कहा कि अपनी आपस की बातों को अपनी मम्मी को मत बताया कर । अगर उनको पता चल गया तो अपना मिलना मुश्किल हो जाएगा । उस दिन मैंने उनसे पूछा "आप कौन हैं और आपका नाम क्या है" ? 

मेरे सवालों पर वे मुस्कुराई और चुप रह गई । तब मैंने कहा "आंटी, यदि आप मुझे नहीं बताऐंगी तो मैं आपसे मिलने नहीं आऊंगी" । मैंने नाराज होने का नाटक किया । इससे वे घबरा गई और मुझसे कहने लगी "मैं सब बता दूंगी लेकिन पहले एक वचन देना होगा कि उन बातों को किसी को भी नहीं बतायेगी । तब मैंने उन्हें प्रॉमिस कर दिया तब उन्होंने मुझे बताया कि वे उनकी असली मां हैं और उनका नाम मालती है । मैंने उनसे बहुत सारे प्रश्न किये मगर उन्होंने मेरे और किसी प्रश्न का जवाब नहीं दिया । 


धीरे धीरे दिन व्यतीत होने लगे और मैं बड़ी होने लगी । मैं कॉलेज में आ गई थी । एक दिन मैंने जिद पकड़ ली और उन्हें अपनी कहानी सुनाने को मजबूर कर दिया तब मुझे उनकी हकीकत पता चली । तब से हम दोनों चोरी चोरी मिलने लगे । उस रात 31 मई को भी मम्मी चंडीगढ आई हुईं थीं और मैं उनसे मिलने का लोभ रोक नहीं सकी इसलिए मैं उस होटल से होटल विजयंत में आ गई और सुबह तक मम्मी के पास ही रही । और कोई प्रश्न" ? 


हीरेन ने कहा "नहीं" । इसके बाद हीरेन ने सरकारी वकील से कहा "अब आपकी बारी है वकील साहब" 

"नो क्वश्चन सर" । सरकारी वकील ने हथियार डाल दिये थे ।



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