STORYMIRROR

कालचक्र

कालचक्र

1 min
3.9K


पिछले कुछ महिनों से खुद के दिल से लड़ती झगड़ती रहती पर ये मुंआ धमकी की तरह ज्यादा तेज धड़कना शुरू कर देता। मन को शांत रख मान मनौवल कर दिल को काबू में कर ही लिया था। समझाती भी क्या ये उसका प्रारब्ध है, ये मान ही लिया था उसने "ये दिल का रोग भी ना मेरा प्रारब्ध है और आपको अपना प्रारब्ध खुद ही भोगना पड़ता है गीता में भी लिखा है कर्मो की सजा के रूप में।" आज कुछ ज्यादा ही ज्ञान दिमाग की सीढियों पर चढा था।

गहना लगातार बड़बडा रही थी तभी एक रिश्तेदार के अचानक से ह्द्याघात के बारे में सुनकर भी विचलित न हुई "देख छोटी मैं न कहती थी सबको अपना प्रारब्ध भोगना होगा ईश्वर चेतावनी दे रहा है जे कलयुग है यहाँ का किया यहीं भोगना है।"

"हे राम! कितनी बार कहा है ज्यादा प्रवचन मत सुना करों, हम इंसान है गलतियों के पुलिन्दे। सीखा सब को वक्त़ ही रहा है।" दिवार पर लगी घड़ी बिखरती रेत सी बहती लगी। उस उड़ती रेत में वक्त़ ने न जाने कितनों के प्रारब्ध तय कर दिये थे कलजुग आज भी अट्टहास ही कर रहा था।


Rate this content
Log in