जंगल में दोस्त
जंगल में दोस्त
"तुम्हे ही जंगल में कैम्पिंग करने की सूझी थी। अब पता नहीं कब यहाँ से निकलेंगे। न नेटवर्क है, न हम कोई नक्शा साथ लाये। बुरी तरह भटक गए हैं जंगल में।"
सरोज कुन-कुन कर रही थी। मिताली, ऋषभ और सुरेश चुप ही रहे। गलती तो हो चुकी थी। सब को जी पी एस की इतनी आदत पड़ चुकी थी कि भूल ही गए थे कि अगर मोबाइल नेटवर्क न हो तो जंगल में रास्ता कैसे पता चलेगा।
ये जंगल में कैंपिंग का आइडिया मिताली ने रखा था जो ऋषब और सुरेश ने झट से मान लिया था। सरोज का आने का मन नहीं था पर सुरेश ने बहुत जिद की तो वो आ गयी थी।
पूरे १२ घंटे से वो जंगल से निकलने का रास्ता खोज रहे थे। पर कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। ऐसा लग रहा था मानो वो एक ही जगह गोल गोल घूम रहे हों।
अब रात घिर आयी थी तो जंगली जानवरों का डर भी सताने लगा था। वो कोई जगह विश्राम के लिए ढूंढ ही रहे थे कि सामने एक गुफा नजर आयी। डरते डरते टोर्च की रोशनी गुफा में की तो गुफा खाली सी ही लगी। वो गुफा के अंदर चले गए। कुछ देर में आस पास से लकड़ियां एकत्रित कर उन्होंने गुफा के मुहाने पर आग जला ली। खुद को ठण्ड से भी बचाना था और जंगली जानवरों को दूर भी रखना था।
अब वो आराम से लेट कर सोने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक से उनके पास कुछ हरकत सी हुयी। वो सब चौकन्ने हो उठे तो नजर गुफा के काफी अंदर से बाहर आते गोरिल्ला पर पडी। उनके चेहरे डर से सफ़ेद हो गए। गोरिल्ला उनके पास आ कर बैठ गया। वो अब इन्हे ध्यान से देख रहा था।
अचानक सुरेश बुदबुदाया
"यहाँ गोरिल्ला कहाँ से आ गया ? इस जंगल में गोरिल्ला तो होते ही नहीं। "
सब ने सहमति में सर हिलाया। पर सामने गोरिल्ला तो था ही। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। सब चुपचाप सहमे से बैठ गए। गोरिल्ला ने मिताली के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। मिताली को कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपने बैग से एक केला निकाल कर गोरिल्ला के हाथ में रख दिया। गोरिल्ला ने झट से केला खाया और फिर और केले मांगने की मुद्रा बना दी।अब मिताली हँसने लगी। उसने कुछ और केले निकाल कर गोरिल्ला को खिला दिए। अब गोरिल्ला खुश लग रहा था। उसे नींद आती हुयी भी लग रही थी क्योंकि वो बेहद जल्दी जल्दी उबासियाँ लिए जा रहा था। कुछ देर में वो वहीं सो गया।
उसे सोता देख सब ने राहत की साँस ली और चैन से सो गए। सुबह गुफा के बाहर हो रही हलचल से उनकी आंख खुली बाहर तीन -चार फारेस्ट गार्ड के साथ साथ कुछ और लोग भी नजर आये। उन्हें देख सब को इतना सुकून मिला जो बताया नहीं जा सकता।
फारेस्ट गार्ड और उनके साथ के लोग उन्हें देख कर अचंभित थे। उन्होंने अपने जंगल में गुम जाने का वर्णन दिया। उन्हें पता चला कि फारेस्ट गार्ड के साथ आये लोग पास के चिड़ियाघर के कर्मचारी हैं। चिड़ियाघर से एक गोरिल्ला भाग कर जंगल में आ गया है। पता नहीं कहाँ छुपा है बस उसी को ढूंढ रहे हैं।
गोरिल्ला के चिड़ियाघर से भाग आने की बात सुन उन्हें समझ नहीं आया कि वह क्या करें। फारेस्ट गार्ड और चिड़ियाघर के कर्मचारियों को गोरिल्ला के गुफा के अंदर होने की बात बताएं या नहीं। उस गोरिल्ला को यहाँ जंगल में आजाद लेकिन अकेला छोड़ दें या वापस चिड़ियाघर में कैद में पर जाने पहचाने परिवेश में लें जाएँ।
तभी मिताली की नजर गुफा से चुपके-चुपके बाहर झाँकते गोरिल्ला पर पड़ी। गोरिल्ला भी चिड़ियाघर के कर्मचारियों को पहचान गया था।
कुछ देर बाहर झाँकने के बाद गोरिल्ला वापस गुफा में चला गया।
शायद वो आजाद ही रहना चाहता था। अपने अकेलेपन के साथ।
सरोज, मिताली, ऋषभ और सुरेश चुप ही रहे। मन ही मन गोरिल्ला को अलविदा कह वह फारेस्ट गार्ड और चिड़ियाघर के कर्मचारियों के साथ जीपों में बैठ वापस शहर को चले गए।
अब उनमे से कोई न कोई दो लोग हर हफ्ते जंगल में आते हैं। साथ में मैप और ढेर सारे केले ले कर। गुफा का गोरिल्ला भी पूरे हफ्ते इन्तजार करता है अपने नए दोस्तों का।