Indu Kothari

Others

4.0  

Indu Kothari

Others

जीवन का अनोखा सफर

जीवन का अनोखा सफर

4 mins
394


सुरेखा की नियुक्ति हमारे विद्यालय में व्यायाम शिक्षिका के पद पर हुई थी। हंसमुख स्वभाव वाली सुरेखा बच्चे व स्टाफ सभी की चहेती थी। उसको यहां आये कुछ ही समय हुआ था । कि मां बाप ने उसके हाथ पीले कर अपने कर्तव्य की इति श्री कर ली। एक साल तो हंसी खुशी बीत गया, लेकिन धीरे-धीरे रिश्ते में तनाव बढ़ने लगा और तनाव की रेखाएं सुरेखा के चेहरे पर साफ दिखाई देने लगी थी। पति व्यावहारिक तथा समझदार लगता था। लोग उसकी तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते थे। लेकिन दोनों के बीच अनबन शुरू का कारण सभी की समझ से परे था। शादी के बाद वह एकदम शांत व गुमसुम रहने लगी थी। एक दिन उसने अपने सारे कपड़े, घर का सामान तथा शैक्षिक प्रमाण पत्र इकट्ठा कर उनमें आग लगा दी ।सारे कमरे में धुआं ही धुआं । मकान मालकिन डर गई और उसे घर छोड़ने को कह दिया। इसके बाद घर बदलने का सिलसिला जारी रहा वह हर जगह कुछ न कुछ बखेड़ा खड़ा कर देती और लोग उसे कमरा किराए पर देने से भी डरने लगे थे। एक बार वह नाई के पास गई और सिर मुंडवाने की जिद पर अड़ गयी। उसके मना करने पर उसने उसका शीशा तोड़ने की धमकी दे डाली, वह डर गया और फिर मजबूरी में उसके सिर के सारे बाल काट दिए अब तो हर शख्स उसे आश्चर्य से देखता और बातें करता ।पूरे कस्बे में उसकी चर्चा होती ‌। लेकिन प्रिंसिपल परेशान थी। वह करें तो क्या करें। एक तरफ अनुशासन और दूसरी तरफ मानवता का का प्रश्न था। पति से भी झगड़े बढ़ने लगे थे। और नौबत तलाक तक पहुंच गई । और फिर कोर्ट कचहरी के चक्कर.. कुछ समय बाद दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गये। वह अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थीं । वेतन का सारा पैसा वह गरीब बच्चों पर खर्च कर देती। दिखने में गोरी चिट्ठी व आकर्षक व्यक्तित्व की धनी सुरेखा ,अपने पांच भाई बहनों में से तीसरे नंबर की थी ।उसके बाद एक छोटी बहन और भाई था। बचपन से ही पिता की हद से ज्यादा बंदिशों और रूखे व्यवहार ने शायद उसे जिद्दी बना दिया था। उसकी इच्छा क्रिकेटर बनने की थी ।लेकिन परिस्थितियों ने उसका साथ नहीं दिया। उसकी मां शिक्षिका थी, उसने ही बच्चों की परवरिश की ‌थी। पिता को घर परिवार और बच्चों की परवरिश की कोई चिंता नहीं थी। शराब पीकर देर रात घर लौटना और कोई न कोई बहाना ढूंढकर तमाशा करना उनकी आदत में शुमार हो चुका था। बच्चे तो देखते ही डर के मारे कोने-कोने में दुबक जाते। जो भी सामने दिख जाता उसकी बिना बात धुनाई शुरू हो जाती। एक दिन सुरेखा के मम्मी पापा उससे पैसे मांगने आए तो उसने साफ इनकार कर दिया। मां से भी उसे कोई हमदर्दी नहीं थी।वह मां को भी घर के माहौल के लिए कसूरवार ठहराया करती थी। खैर.. .समय पंख लगाकर उड़ रहा था । कुछ दिन बीमार रहने के बाद उसके पिता भी इस दुनिया से विदा हो गये ।वह बुरे वक्त को भूलने की कोशिश कर रही थी कि अचानक एक सुंदर हृष्ट-पुष्ट युवक से उसकी मुलाकात हुई। धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती और फिर प्यार हो गया। कुछ महीनों बाद ही दोनों ने शादी कर ली। लड़का पांच बहिनों का इकलौता लाडला भाई था। सभी भाभी के आगे पीछे घूमते और उसका खयाल रखते। सुरेखा भी काफी खुश थी। एक साल बाद वह एक प्यारे से बच्चे की मां बन गई। परिवार के सभी सदस्य फूले नहीं समा रहे थे। लेकिन समय ने फिर करवट बदली और यहां भी खटपट शुरू होने लगी। अब तो सुरेखा पर कुछ ज्यादा ही चिड़चिड़ापन सवार हो गया था। एक दिन अचानक उसकी मां का पैर फिसला और सिर पर चोट लगने के कारण वह भी इस दुनिया से चल बसी। सुरेखा परेशान थी और बच्चे की देखभाल भी ठीक से नहीं कर पा रही थी। वह उसे अपने साथ ही विद्यालय लाती और जब कक्षा में पढ़ाने जाती तो उसे परिचारिका की देखरेख में छोड़ जाती। एक दिन बच्चा गिर गया ।फिर तो सुरेखा ने हंगामा खड़ा कर दिया गाली गलौज कर गुस्से में उसे दो थप्पड़ जड़ दिए। महिला ने उसे जाति सूचक शब्दों के इस्तेमाल करने का आरोप लगाकर फंसा दिया। जांच बिठाई गई और सुरेखा को दोषी करार देते हुए । नौकरी से निलंबित कर दिया गया। कुछ दिन तो ऐसे ही बीत गए लेकिन दिन-प्रतिदिन वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होती जा रही थी। घर से भी कोई सहायता करने वाला कोई अपना नहीं था। भाइयों में मां की जगह नौकरी पाने को लेकर झगड़ा चल रहा था। इसलिए किसी से कोई उम्मीद करना बेकार था ‌। अब तो बेटा भी दूसरों के रहमों करम पर पल रहा था। तरस खाकर कभी पड़ोसी खाना खिला देते। उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही थी। अब वह कभी कभार ही बाहर निकलती थी। एक दिन उसकी बड़ी बहन आई और उसे साथ लेकर चली गई। तब से उसकी कोई खबर नहीं । ईश्वर से प्रार्थना है कि वह जहां भी रहे सुखी रहें।



Rate this content
Log in