झीरम घाटी की काया पलटने वाले
झीरम घाटी की काया पलटने वाले
बच्चों, आज जानेंगे कैसे छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 350 किलोमीटर दूर घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र झीरम घाटी की काया पलटी। यह हुआ दरभा के कृषि वैज्ञानिकों के कॉफी की पैदावार का बीड़ा उठाने के फैसले से।"
"यह कब हुआ, चाचाजी,और इसके प्रेरणा स्रोत कौन थे ? कौशल ने पूछा।
"इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ एसके पाटिल के नेतृत्व में तीन साल पहले इसकी शुरुआत हुई।"
"क्या इस क्षेत्र की जलवायु कोफी के अनुकूल है?"अमर ने पूछा।
" यहां काफी की खेती असम्भव नहीं तो चुनौतीपूर्ण काम अवश्य था। पहले पहल बस्तर जिले के जगदलपुर हॉर्टिकल्चर कॉलेज के वैज्ञानिकों ने 22 सौ कॉफी के पौधे लगाए। ये पौधे दक्षिण भारत से मंगवाए गए थे। इसके बाद दूसरे चरण में 25,000 पौधे लगाए गए। कॉफिया रॉबस्टा की एक और सीएसआर अरबिका की तीन किस्म लगाईं। तीन साल पहले 2 एकड़ से शुरू हुई कॉफी की खेती आज 20 एकड़ तक पहुंच गई है। अब तक 50 किसान इस मुहिम से जुड़ चुके हैं।"
"इसका अर्थ यह हुआ कि यह प्रोजेक्ट सफल रहा !" सुयश ने कहा।
"दरभा समुद्र तल से 623 फीट ऊंचाई पर बसा है और यहां का वातावरण कॉफी की फसल के लिए अनुकूल है।"
"फिर तो यह फायदे का सौदा रहा। और स्थानों पर भी ऐसे प्रयोग होने चाहिए।" एश ने कहा।
"किसानों को उनकी एक बार की जाने वाली खेती का फायदा करीब 25 साल तक बिना किसी अवरोध के मिलेगा। इसमें हर साल उत्पादन की मात्रा बढ़ती जाएगी। कॉफी के पौधों में फल साल भर के बाद आने लगते हैं। अनुमान है कि दरभा में लगभग 150 क्विंटल पैदावार होगी। खेती पर करीब ₹48 लाख खर्च किए गए हैं।"
"पहले तो यह स्थान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में था!
25 मई 2013 को बस्तर जिले की इसी झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर ताबड़तोड़ हमला कर 29 नेताओं और कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया था। यह देश भर की चर्चित नक्सली घटना थी!" ज्वाला ने कहा।
"बिल्कुल सही कहा तुमने ज्वाला, कभी नक्सल प्रभावित इस घाटी में अब शीघ्र ही कॉफी की खुशबू फैलेगी।"
"इरादे नेक हों तो पत्थर पर दूब उगाई जा सकती है।" नयन ने कहा।
"बहुत अच्छे, शाबाश। कल मिलते हैं, एक नए विषय के साथ,तब तक के लिए धन्यवाद।"
"चाचाजी,आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।"