Rubita Arora

Others

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Rubita Arora

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झिड़की

झिड़की

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झिड़की जो अक्सर गलत काम करने पर हमें हमारे बहुत अपनो से और कभी कभी दूसरों लोगों से भी खाने को मिल जाती हैं। बुरा भी लगता है कई बार लेकिन अनेको बार ये कमाल भी कर जाती है। हमे हमारी कमियां बता निखारने का काम बखूबी कर जाती है। इसके इलावा जब कोई अपना हक से डाँटता है तो उसमें उसका हमारे प्रति प्यार व परवाह भी साफ दिखाई देती है बस जरुरत है एक अच्छे नजरिया से देखने की।


रीमा को सुबह सुबह अपने पापा का फोन आया, बेटा तुम्हारी माँ की हालत कुछ ठीक नहीं है, अस्पताल के आई.सी.यू. में भर्ती बार-बार तुमसे मिलने की जिद्द कर रही है। सुनकर रीमा घबरा गई , बोली-"पापा मै अभी आ रही हूँ। " जल्दी से घर में सासुमाँ को बता अकेले ही निकल लेती है। पति किसी काम से दो दिन के लिए बाहर गए हुए हैं। रीमा बस स्टैंड से बस लेती है। दो घण्टे का सफर था यहाँ से पर आज ये दो घण्टे बिताने बहुत मुश्किल हो रहे थे। दिल मे बस यही सोच रही थी यह माँ भी न,कितनी लापरवाह होती जा रही है, बिल्कुल भी अपना ध्यान नहीं रखती और देखो आज इतनी बड़ी मुसीबत,कितनी मुश्किल हो रही होगी, वहाँ पापा को अकेले संभालने में। काश माँ!तुमने थोड़ा सा सोचा होता हम सब के बारे में। 


रीमा को याद आता है अभी कुछ दिन पहले ही जब उसने फोन उठा कर वाटसअप खोला तो माँ ने हलवा बना उसकी फ़ोटो खींच कर रीमा को भेज रखी थी। देखते ही रीमा का गुस्सा सातवें आसमान पर था। झट से माँ को फोन लगाया और शुरू हो गई-"माँ क्या आपको ज़रा भी समझ नहीं है,शूगर की वजह से आपको मीठा मना है और आप हो कि हलवा बना बनाकर खा रहे हो,अपना न सही कम से कम पापा का तो सोचा होता क्या इस उम्र में आप दोनों को यूं हलवा खाना चाहिए। छोड़ क्यों नहीं देती तुम अपने ये स्वाद? किसी दिन कोई बड़ी मुसीबत हो गई तो फिर क्या करेंगे हम सब?" रीमा लगातार झिडक रही थी और माँ चुपचाप सुनती रही जैसे कोई छोटा बच्चा शरारत करने के बाद चुपचाप एक कोने में बैठकर माँ की झिडक सुनता है। जब रीमा कितनी देर लगातार बोलती रही तो माँ ने हंस कर कहा, बस अब थोड़ा आराम करले, थक गई होगी,अब आगे से कभी नहीं बनाऊंगी हलवा,बस खुश है अब तो तू? तब जाकर रीमा चुप हुई। आंखों में आंसू बह गये। बोली-"प्लीज माँ! तुम अपना और पापा का ध्यान रखा करो। मुझे बहुत फिक्र होती है आप दोनों की। एक दिन माँ ने नए स्वेटर की तस्वीर खींच कर भेजी, बोला-तुम्हारे लिए नया खरीदा है। देख तो पसंद है तुम्हे। रीमा ने फिर फोन लगाकर पूछा-माँ! तुम अकेले बाजार क्यों गई, ऐसी कौनसी जरुरत आ पड़ी थी तुम्हे, एक बार मुझे बोला तो होता मै खुद आकर तुम्हे बाजार ले जाती।" तब भी वह लगातार बोलती रही और फिर आखिर में माँ ने कहा-"अब बस भी कर मेरी माँ,चुप हो जा।आगे से नहीं जाऊंगी अकेले।पक्का तेरी इंतजार किया करूंगी।" दो दिन पहले जब उसने माँ को यूँ ही फोन लगाकर पूछा"-माँ! तुम कर क्या रही थी" तो माँ बोली "कुछ नहीं पर्दे थोड़े मैले हो गए थे बस उन्ही को धो रही थी,"तब भी कितना गुस्सा किया था उसने "क्या माँ तुम क्यों नहीं सोचती, क्या परदे तुम से ज्यादा जरूरी हैं, क्यों नहीं तुम चैन से बैठ सकती, कितनी बार कहा है अब तुम साठ पार कर चुकी हो,न जाने कितनी बीमारियों ने शरीर मे घर कर लिया है,तुम्हे अपना ध्यान रखना चाहिए और एक तुम हो कभी कुछ तो कभी कुछ। "कल तक कितनी समझदार हुआ करती थी माँ तुम, फिर अब ऐसा क्या हो गया,तुम कुछ भी करने से पहले क्यों नहीं सोचती? जब कभी डॉक्टर के पास चैकअप करवाने की बात आती है तो आज कल कर डालती हो और दूसरे कामों के लिए हमेशा तैयार बैठी होती हो। बस इन्हीं बातो को याद करते-करते रीमा को पता ही नहींं चला कब बस रुकी। माँ का शहर आ चुका था।


 बस से उतरी तो उसे याद आता है हर बार कितनी खुशी होती है इस शहर में कदम रखते ही, माँ-पापा के साथ साथ इस शहर से भी कितना गहरा नाता बन चुका है पर आज मन बहुत बेचैन है। वह जल्दी से आटो रिक्शा लेकर अस्पताल पहुंचती है। पापा आई.सी.यू. के बाहर ही बैठे थे। रीमा झट से पापा के गले लगी और माँ की तबीयत के बारे में पूछा पर पापा ज्यादा बोलने की हालत में नहीं थे।डॉक्टरों से मिली पर उन्होंने भी माँ के ठीक होने की कोई ज्यादा उम्मीद नहीं दिखाई। रीमा पापा के पास आकर बोली- "ये माँ भी न,हमेशा अपनी मर्जी करती है,पापा आपने क्यों नहीं रोका कभी,ऐसा थोड़े न होता है इस उम्र में कुछ भी खा लो,कहीं भी अकेले घूमने निकल पड़ो। काश पापा! आपने ही रोक लिया होता माँ को तो आज माँ की ऐसी हालत न होती।" कुछ हिम्मत बटोर अब पापा ने बोलना शुरू किया "पता है तुम्हारी माँ तो बहुत समझदार है, हमेशा अपने साथ-साथ मेरी भी तबीयत का पूरा ख्याल रखती रही। मन होने के बावजूद सिर्फ वही बनाती जो हमारे लिए सही था। कहती अगर हमें कुछ हो गया तो पता है कितनी परेशानी होगी हमारी बेटी को। पहले ही कितना ख्याल रखती है हमारा बस अब मै उसे और परेशान नहीं कर सकती"। रीमा ने पूछा-"पापा, फिर वो हलवे की, स्वेटर की तस्वीरे वो सब क्या था? पापा बोले-बेटा! तुम्हारी माँ ने मुझे तुम्हे बताने से मना कर रखा था। वह सब झूठ था जबकि हकीकत तो यह है कि तेरी माँ तुमसे बहुत प्यार करती है। हर दो दिन में उदास हो जाती तो उसका मन होता तुमसे ढेरो बाते करने का, पर तू अपने काम मे उलझी हर बार हाल चाल पूछ फोन बंद कर देती। दूसरी तरफ वो माँ थी थोड़ी सी बात करके उसका मन न भरता तो उसी ने यह तरीका ढूंढा। हलवे की तस्वीर देख जब तूने लगभग आधा घंटा अपनी माँ को झिड़की लगाई तो वो खुश होकर बोली-इस झिड़की का स्वाद तो हलवे से भी कहीं ज्यादा हैं। सच मे रीमा के पापा, मन खुश हो गया आज इतनी देर लगातार बेटी की आवाज़ सुनकर,सच कहते है बेटियां कभी पराई नहीं होती, देखो तो सही दूर रह कर भी कितनी फिक्र है उसे हमारी। बस बेटा, उसके बाद से जब कभी तुम्हारी माँ का मन ज्यादा बेचैन होता वो तुम्हे कुछ ऐसा बताती जिसे सुन तुम काफी देर तक झिड़कियां लगाती रहती और इधर उसके मन को शांति मिलती। बस बेटा, यही सच है।" सुनकर रीमा का पूरा शरीर कांपने लगा कितनी गलत राय बना ली थी उसने माँ के बारे में। पर माँ को तो केवल उसकी आवाज़ मात्र सुनने के लिये यूँ झूठ का सहारा लेना पडा। 


इतने में नर्स ने आकर उसका नाम लिया और कहा "पेशेंट को होश आ गया है और वह बार बार आपका नाम ले रही है।" आंखों से आंसू पोंछ हिम्मत जुटा रीमा माँ को मिलने गई। अपनी बेटी को सामने देख माँ मुस्कुराई। रीमा ने गुस्सा दिखाते हुए कहा- "माँ, मुझसे बात करने के लिए आपने यूँ झूठ क्यों बोला" तो माँ बोली "अच्छा तो तुझे तेरे पापा ने सब बता दिया है, कोई बात नहींं छिपा सकते ये, पर बेटा, मैं क्या करती, कभी कभी बहुत मन होता तुम्हारी झिड़की सुनने का,पता है तुम्हारी झिड़की में मुझे जो प्यार मिलता उससे मेरी आत्मा तृप्त हो चुकी हैं। बस एक बार तुम्हारा चेहरा देखने की तमन्ना थी वो भी तूने यहाँ आकर पूरी कर दी। अब मै चैन से मर सकती हूं।" रीमा फिर गुस्से में बोली-"क्या माँ जो मुँह में आया बोले जा रही हो,अभी आपको ज्यादा नहीं बोलना चाहिए,चुपचाप आराम करो,ठीक होकर घर चलोगी तो ढेरो बाते करेंगे।" रीमा लगातार और भी न जाने क्या क्या बोले जा रही थी और माँ के चेहरे पर मुस्कान थी। इतने में नर्स ने आकर रीमा को बताया आपकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही। रीमा और उसके पापा वहीं स्तब्ध खडे बस माँ के चेहरे की मुस्कान देखते रह गए।


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