जेब फटी ही रहेगी
जेब फटी ही रहेगी
" कितनी महँगाई बढ़ गई है यार?"
" क्यों क्या हुआ भाई ?"अशोक ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा ।
"कितना भी कमा रहा हूँ यार ,कुछ पता ही नहीं चल रहा है ।रोज बीवी शिकायत करती है, बच्चों का कुछ ना कुछ लगा ही रहता है। लगता है जैसे जेब कटी है। कितना भी डाल रहा हूँ, नीचे से निकलता जा रहा है। मुझे भी तो एक कश दो।मैं भी लगा लूँ ।" रमेश ने अशोक से सिगरेट लेते हुए कहा।
" मेरी भी वही कहानी है यार !कितनी भी कोशिश करता हूँ, सेविंग हो ही नहीं पा रही ।बीवी कहती है ,अलग रूम लो मुझे जॉइंट में नहीं रहना ।खर्चे कम हो जाएँगे पर मुझे तो लगता है कि खर्चे बढ़ जाएँगे। किराया अलग से देना पड़ेगा ।कॉलेज में कितने शौक थे। सब खत्म हो गए यार ।क्या सोचा था हमने क्या लाइफ हो गई ।"अशोक ने सिर पकड़ते हुए कहा।
" टेंशन मत लो यार! सब ठीक हो जाएगा ।मैंने भी सोचा था छोटी सी जमीन लेकर मकान बना कर रहूँगा । जिंदगी भर किराए पर थोड़े रहूँगा ।पर देखो यहाँ तो रोजमर्रा की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही। कभी लगता है हमारी जेब फटी की फटी ही रह जाएगी। कभी उस में सिलाई के धागे नहीं लगेंगे।" रमेश ने कहा ।"पर हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए कभी तो जिंदगी पलटेगी कभी हम बाजी मारेंगे।"