जब मेहुल गांव गया..
जब मेहुल गांव गया..
शहर के नामी सर्जन डाक्टर लाल का बारह वर्षीय पुत्र मेहुल जब स्कूल से वापस आया तो उत्साह से उन्हें बताने लगा- पापा। आज हमारी टीचर ने हमें 'भारत के गांव' पाठ पढ़ाया।
आपको पता है, गांव में कच्ची मिट्टी से बने घर होते हैं, और शहरों जैसा प्रदूषण नहीं होता। पापा। आपने बताया था कि, हमारा भी गांव में घर है, जहां दादा-दादी रहते हैं। पापा, एक बार चलो ना। मुझे गांव देखना है।
प्लीज पापा!
ओके! अगले हफ्ते हम गांव चलेंगे। पापा ने कहा तो मेहुल खुश हो गया। गांव पहुंचकर तो मेहुल पागल ही हो गया चौड़े-चौड़े खेत, ऊंचे-ऊंचे पेड़, कोयल की कूक और मोर का नृत्य। एक दिन पड़ोस में रहने वाले काका रामदीन के बेटे मोहन के साथ सुबह दौड़ते- दौड़ते दोनों गांव के बाहर तक निकल आए।
दूर एक झोंपड़ी के बाहर एक औरत को देखकर मेहुल बोल पड़ा-अरे मोहन। वह देख। गांव से बाहर अकेले जंगल में वो आंटी कौन है? अब तक कबूतरों को उड़ाने में व्यस्त मोहन ने जैसे ही उधर देखा मेहुल का हाथ पकड़कर खींचने लगा। मेहुल चल उधर नहीं जाना मना है वह डायन है बच्चों को खा जाती है।
डायन! मेहुल की हंसी छूट गई।
अरे बुद्धू! डायन-भूत ये सब कुछ नहीं होता, हमारी टीचर ने बताया है कि गांव के लोग ऐसे अंधविश्वास के शिकार होते हैं।
तू घबरा मत। मेरे साथ आ देखते हैं कि उन आंटी को क्या प्रॉब्लम है।
नहीं-नहीं मेहुल उधर मत जा मुझे बहुत डर लगता है मोहन गिड़गिड़ाया।
अरे डर मत मोहन। देख मेरे पास यह बंदूक भी है। मेहुल ने जेब से निकालकर अपनी खिलौना बंदूक उसे दिखाई।
लेकिन मेहुल...
अरे तू घबरा मत! मेरे पीछे-पीछे आजा। धीरे-धीरे चलते हुए दोनों उस झोंपड़ी तक पहुंचे।
दो बच्चों को इतना नजदीक देखकर पहले तो वह औरत चौंक गई फिर चिल्लाई- भाग-जाओ, भाग-जाओ! मैं डायन हूं! डायन! और फिर जोर-जोर से हंसते हुए नीचे गिर पड़ी।
मोहन डर गया और मेहुल का हाथ खींचता हुआ भाग खड़ा हुआ। उस दिन रात को खाना खाते समय मोहन ने अपने पापा से पूछा- पापा। डायन क्या होती है?
पापा चौंके तो मेहुल ने उन्हें सारा किस्सा कह सुनाया।
पापा इस गांव के पिछड़ेपन से परिचित थे सो उन्हें माजरा समझते देर न लगी। पापा ने साईकियाट्री में भी डिप्लोमा किया था। अपने संपर्क और स्थानीय पुलिस की मदद से उन्होंने अगले ही दिन उस महिला को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया और स्वयं की देखरेख में उसका इलाज करवाया।
तीन दिन बाद उसकी हालत में सुधार दिखाई दिया तो उसने बताया की पति की मृत्यु के बाद उसके चचिया ससुर ने उसकी संपत्ति और दो वर्षीय पुत्र को अपने कब्जे में कर के उसे पागल बता कर गांव से निकाल दिया। पुलिस तफतीश में बात सच साबित हुई। कुछ दिन में महिला को अपनी संपत्ति और पुत्र वापस मिल गए।
पापा को गर्व था अपने बेटे की जागरूकता पर।
मेहुल को गर्व था अपने पापा पर।
मोहन भी अब जान गया था कि डायन-वायन कुछ नहीं होती।