इंसानियत
इंसानियत
बाल सुधारगृह जब से किशोरवय माधुरी ने यह शब्द अखबार की एक खबर में पढ़ा। बस तभी से इसे लेकर उसके मन मे इसके प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
फिर आज उसने अपनी माँ से पूछा, मम्मा क्या आपको भी लगता है कि जो बच्चा पूरी तरह से अपराध में लिप्त है।
व अपराध करना जिसका स्वभाव हो चुका है। उसे इन सुधारगृह में रखकर सुधारा जा सकता है।
उसकी बात सुन कुछ पल उसे निहारते हुए, फिर उसकी माँ उससे बोली। "बेटा, जिस प्रकार किसी मरुस्थल की ऊपरी सतह चाहे कितनी ही कठोर क्यो न हो उसके अंतर की नमी को नकारा नहीं जा सकता है"।
ठीक वैसे ही एक इंसान का मन चाहे कितना ही क्रूर क्यो न हो, उसके अंतर की इंसानियत को नकारा नहीं जा सकता।
और सुधारगृह में बच्चों की उसी छुपी हुई इंसानियत निकाल कर एक अच्छा इंसान बनाने का प्रयास भर किया जाता है।
