हार नहीं मानना
हार नहीं मानना
रोते-रोते माँ की आँखें पत्थर हो चुकी थीं। बेटे की लाश देख वे एक ही बात कहे जा रही थी ,"क्या मैंने तुझे मुश्किलों से लड़ना नहीं सिखाया था? कि तूने केवल कम नंबर आने की वजह से खुदकुशी जैसा कायराना कदम उठा लिया ।एक बार भी हमारे बार में नहीं सोचा कि हम किसके सहारे जिएगें।इस के लिए मैं तुझे कभी माफ नहीं करूँगी ।पर माँ का दिल है बेटा! मैं तुझे कभी भूल भी नहीं सकती। सोचा था तू हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा पर तूने तो अपने अर्थी का बोझ हमारे कंधों पर डाल दिया। तुम हमेशा मेरे सपनों में रहोगे बेटा।" कहकर मीरा जी फफक कर रो पड़ी। शशि जी भी एकटक कातर निगाहों से शून्य में देखे जा रहे थे ।वे भी खुद से बातें किए जा रहे थे ,"क्या क्या सोचा था ।बेटा बड़ा होगा ,नाम कमाएगा ,इंजीनियर बनेगा ,बहु लाएगा ,अपना परिवार बसाएगा। हम बूढ़ा बूढ़ी बुढ़ापे का आनंद लेंगे। हर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएँगे पर यहाँ तो तू खुद ही मुक्त हो गया ।"और शशि जी फफक फफक कर बच्चों की तरह रो पड़े।" सँभालिए खुद को भाई साहब। आप ऐसे करिएगा तो भाभी जी को कौन सँभालेगा ?"
"आप ही बताइए शर्मा जी। कैसे सँभालू खुद को ?यह भी कोई उम्र है उसकी जाने की ।ये तो हमारे जाने की उम्र है। जिंदगी कोई खेल थोड़े हैं जो खेल लिया और एक हार गए तो एक नया गेम शुरू कर दिया ।यह बात मेरा बेटा क्यों नहीं समझ पाया?कितनी मुश्किल से यह जिन्दगी नसीब होती है ।हमने भी क्या कम मुश्किलों का सामना किया है ,पर कभी हार नहीं मानी।पर मेरे बेटे ने यह फैसला कैसे कर लिया?"मीरा के पास जाते हुए वे कहने लगे,"मीरा भगवान हमारी परीक्षा ले रहा है, जिसे हमें पास करना है।चलो मेरे साथ ,रोना बंद करो।
