Sangeeta Aggarwal

Others

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Sangeeta Aggarwal

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हां यही प्यार है

हां यही प्यार है

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" रितेश तुम्हें पता है कल वेलेंटाइन डे है।" साधना अपने पति से बोली।


" हां तो ?" लैपटॉप में सिर घुसाए रितेश बोला।


" तो आप मुझे क्या गिफ्ट दे रहे हैं ?" साधना ने पूछा।


" क्या....दिमाग खराब है तुम्हारा ये टीवी सीरियल देख नए नए फितूर आते तुम्हें शादी को बारह साल हो गए हमारी आजतक तो ये ख्याल नहीं आया !" रितेश उसकी तरफ घूमते हुए बोला।


" जो आज तक नहीं हुआ वो अब तो हो सकता है ना ...प्यार का दिन है प्यार से मनाने में क्या जाता है जी !" साधना मुस्कुराते हुए बोली।


" प्यार का कोई दिन नहीं होता मैडम प्यार होता है तो रोज होता है वरना नहीं होता ...वैसे भी ये वेलेंटाइन बेलंटाइन हमारी संस्कृति नहीं विदेशी है इन टीवी सीरियल वालों का तो दिमाग खराब है जो इन सबको बढ़ावा देते हैं और तुम जैसी औरतें इनको सच मान लेती हो ...चलो अभी जल्दी से चाय पिला दो मैं तैयार हो जाऊं कुछ काम से जाना है मुझे !" रितेश बोला और बाथरूम में घुस गया।


साधना वहीं सोफे पर बैठ सोचने लगी "एक गिफ्ट की तो बात थी जनाब से वो भी नहीं हुआ प्यार का दिन सेलिब्रेट करना चाहती थी लगता है अब जनाब को प्यार ही नहीं रहा !" 


असल में साधना ने अपनी दोस्त नैना के कहने पर अभी तीन महीने पहले ही एफबी अकाउंट बनाया है और वहां इतने दिन से वेलेंटाइन डे की पोस्ट देख उसका भी इसे मनाने का मन था उस पर उसकी दोस्त ने बताया वो तो अपने पति के साथ डिनर पर जाएगी और उसके पति उसे कोई उपहार भी देंगे वो एफबी पर फोटो डालेगी। बस तबसे साधना को भी फोटो एफबी पर डालने का फितूर चढ़ा था इसलिए उसने रितेश से पूछा था पर रितेश तो टका सा जवाब दे गया।


साधना उठकर घर के काम में लग गई क्योंकि बच्चों और रितेश की छुट्टी थी तो आज लंच पैक करने का तो काम नहीं था उसने रितेश को चाय नाश्ता दे दिया बच्चे अभी सो रहे थे।


" हैलो साधना तो क्या गिफ्ट दिया तुम्हारे मिस्टर ने तुम्हें आज ...और कहा घूमने का प्लान है ?" अगले दिन रितेश के ऑफिस जाते ही नैना ने फोन करके पूछा।


" कुछ नहीं यार रितेश इसमें यकीन नहीं करते !" साधना उदास सी बोली।


" अरे ये क्या बात हुई मेरे पति भी नहीं मानते पर मेरे कहे से उन्होंने मुझे सूट गिफ्ट किया और डिनर पर भी ले जाएंगे बच्चों को उनकी दादी के पास छोड़ कर आखिर सब अपनी पिक डालेंगे तो हम क्यों पीछे रहें ।" नैना उत्साहित हो बोली।


" चल नैना मैं काम कर लूं तुझसे बाद में बात करती हूं !" साधना ने नैना को टालने के लिए कहा और फोन रख दिया।


उसका मन आज बहुत उदास था "जब सब अपनी पिक डालेंगी वेलेंटाइन डे सेलिब्रेशन की और उसकी नहीं होगी तो सब क्या सोचेंगी कि रितेश और मुझमें प्यार ही नहीं है!" ये सोच सोच उसका सिर फटने लगा।


कई बार ऐसा ही होता है हम लोग दूसरा क्या सोचेगा इस चक्कर में इतने ज्यादा परेशान हो जाते की वो हमारे रिश्तों पर तो असर डालता ही साथ साथ हमारी सेहत पर भी असर करता। ऐसा ही साधना के साथ हुआ उसे तेज सिर दर्द होने लगा। 


" मम्मा मम्मा क्या हुआ आपको आप सोफे पर क्यों लेते हो !" दर्द की अधिकता में साधना को पता ही नहीं लगा कब उसकी आंख लग गई और बच्चे स्कूल से वापिस अा गए।


" उफ्फ बेटा मेरे सिर में बहुत दर्द है उठा नहीं जा रहा !" साधना उठने की कोशिश करती बोली। असल में कल रात भी साधना ठीक से सोई नहीं थी इस वेलेंटाइन के चक्कर में।


" हैलो पापा जल्दी घर आ जाओ मम्मा की तबियत ठीक नहीं है ...!" इतने पांच साल की परी ने अपने पापा को फोन भी कर दिया साधना फोन पर मना करने वाली थी पर परी ने फोन काट दिया और नौ साल के त्रिशान ने उसे जबरदस्ती वापिस लिटा दिया।


साधना देख रही थी रोज आकर फैल मचाने वाले बच्चे आज कितने समझदार हो गए। खुद से कपड़े बदल सब सामान भी ठिकाने रख दिया।


" क्या हुआ साधना ...सुबह तो ठीक थी तुम अचानक की हुआ चलो डॉक्टर के चलो !" तभी रितेश भागता हुआ आया और बोला।


" अरे नहीं डॉक्टर की जरूरत नहीं सिर में बहुत तेज दर्द है बस वो तो बच्चों ने ऐसे ही आपको बुला लिया और मुझे भी उठने नहीं दे रहे !" साधना उठते हुए बोली।


" अरे उठो मत तुम मैं चाय लाता हूं तुम्हारे लिए कुछ खाकर दवाई ले लेना !" रितेश उसे वापिस लिटाते हुए बोला...साधना ने बहुत मना भी किया पर रितेश ने उसे कसम दे लिटा दिया।


" लो चाय और सब्जी बनी रखी है मैं बच्चों के लिए रोटी बना देता हूं उन्हें भूख लगी होगी तुम चाय बिस्कुट खाकर गोली ले लो !" रितेश उसे चाय देते हुए बोला।


" नहीं नहीं मैं बनाती हूं रोटी आपको कहां आती है ... मैं ठीक हूं आप चिंता मत करो !" साधना उठने को हुई।


" तुम सुनती नहीं हो ...बोला ना चाय पियो और दवाई ले आराम करो !" रितेश मीठी झिड़की देता हुआ बोला और खुद रसोई में रोटी बनाने लगा दोनों बच्चे भी उसके साथ लगे थे।


साधना चाय पीते हुए रितेश को रोटी बनाते देख रही थी।


" देख साधना असली प्यार ये है वो नहीं जो आज एफबी पर होगा... एक दूसरे की केयर करना बीमारी में ख्याल रखना यही तो असली प्यार है और तू उस झूठे प्यार के लिए खुद को परेशान किए हुए है ...क्या हुआ जो रितेश तुझे गिफ्ट नहीं देगा तेरी बीमारी का सुन भागा आया तुझे चाय बना कर दी ये क्या कम है ..क्या हुआ जो वो तुझे डिनर पर नहीं ले जाएगा पर कभी रसोई का काम ना करने वाला आज बच्चों को रोटी बना कर खिला रहा ये क्या कम है !" उसके अंतर्मन से आवाज़ आई।


" सच में मैं कितनी पागल हूं जो बेवजह खुद को रितेश को और बच्चों को परेशान कर दिया !" साधना खुद से बोली और चाय पीने लगी। गोली की अब उसे जरूरत नहीं लगी क्योंकि रितेश के प्यार और केयर ने दवाई का काम किया था।


" लाइए मैं बनाती हूं पहले से बेहतर हूं मैं अब। आप भी भूखे होंगे क्योंकि टिफिन तो ऑफिस में छोड़ आए हो !" साधना रसोई में अा बोली।


" अरे नहीं तुम आराम करो ना !" रितेश उसे हटाते हुए बोला।


" अच्छा आपकी थोड़ी मदद तो कर दूं वरना पता नहीं कौन कौन से देश के नक्शों से बच्चों की पहचान हो जाएगी !" साधना रोटी की तरफ इशारा करते बोली तो दोनों हंस दिए साथ ही रोटी खाते बच्चों के चेहरे कर भी मुस्कान अा गई मां को हंसते हुए देख।


रितेश और साधना ने साथ खाना बनाया और खाया साधना को इस खाने में होटल के खाने से ज्यादा स्वाद अा रहा था। बच्चे खाकर कमरे में पढ़ने चले गए रितेश छुट्टी लेकर आया था आधे दिन की तो वो खाकर सोफे पर बैठ टीवी देखने लगा रसोई संगवा कर साधना भी उसके साथ आकर बैठ गई और उसके कंधे पर सिर टिका दिया। रितेश ने प्यार से उसका सिर सहला दिया। अब साधना को रितेश से कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि वो प्यार के असली मायने जान गई थी।



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