गूगल मैप
गूगल मैप
गूगल मैप मेरे सच्चे दोस्तों में से एक है। निडर तो मैं हमेशा से ही थी, पर इसने मेरी आत्मनिर्भरता और आजादी की सीमाओं में गजब का विस्तार किया।
उस शाम भी जब मुझे महिला सशक्तिकरण पर एक नामचीन होटल में कुछ बातें कहनी थी तो मोबाइल की स्क्रीन पर नाम टाइप किया तो 23 मिनट में गंतव्य तक पहुंचने का आश्वासन मिला। और मैं अपने भाषण के बारे में सोचते हुए गाड़ी गूगल मैप के निर्देशानुसार चलाने लगी।
अरे, यह सड़क इतनी खराब कैसे हो गई... मेरा ध्यान टूटा तो देखा रात हो गई है और अगल बगल शहर की चकाचौंध भी नहीं है। गाड़ी की खिड़की के बाहर खड़े लोग भी मेरी कल्पनाओं में रंग कर संदिग्ध दिखाई देने लगे। क्या गाड़ी रोक कर किसी से रास्ता पूछा जाए? ज़रूर गूगल ने किसी ओवरब्रिज को गलत बताया होगा जैसा वह अक्सर करता है ।
इस रास्ते पर चलते रहने का कोई मतलब भी नहीं था। एक चौड़ी जगह से मैने गाड़ी घुमा ली। वापस लौटते हुए एक सुनसान जगह पर अंधेरे में सड़क पर हेडलाइन्स में कुछ दिखाई दिया। नहीं, कोई जानवरों नहीं था, एक इन्सान था, गिरा हुआ था या कोई साज़िश थी, और उसके साथी आसपास हो सकते थे। शायद वह सच में मुझसे ज्यादा मुसीबत में था। इस उधेड़बुन के लिए मेरे पास वक्त नहीं था और हिम्मत भी नहीं थी। शायद एक्सलेटर दबाते हुए मैने मदद के लिए उसके हाथ हिलते देखे। मैं वापस उस तथाकथित सभ्यता की ओर जल्दी पहुंचना चाहती थी जिसकी रौशनी मुझे दूर दिखाई दे दे रही थी।
अब आयोजकों के भी फोन आने लगे थे और उनहोंने मुझे रास्ता भी बताया। पहुंचने पर मेरा भाषण कैसा था, मुझे याद नहीं। कुछ कचोट रहा था, यह याद है । महिला सशक्तिकरण माने अनजान रास्तों पर बेझिझक चलना और अनजान रास्तों पर अनजान लोगों की मदद कर सकना यह समझ आ रहा था।
