गुरु
गुरु
एक बार सम्राट असीम अपनी सभा मे चर्चा कर रहे थे कि आखिर मनुष्य को मनुष्य बनाता कोन है? उसे सही राह दिखता कोन है? कोन है वो जिसने मनुष्य को धरती के बारे में बताया ? कौन है वो महान व्यक्ति कहा है? सभी दरबारी राजा के प्रश्नों को ध्यान पूर्वक सुन रहे थे सभी दरबारी अपना अपना तर्क दे रहे थे।
राजा ने सबकी बाते ध्यान पूर्वक सुनी। दरबारियों की बात सुनकर राजा किसी नतीजे पर नही पहुच सका। राजा के दो दरबारी बहुत ही चतुर थे वो थे वंश और सक्षम। जब राजा ने सबकी बाते सुनी और अंत मे वंश और सक्षम से उनका तर्क जाना उन्होंने उतर दिया वो था गुरु। उत्तर सुनके राजा और सभी दरबारी हैरान रह गए ।
<p>राजा ने उनसे पूछा गुरु। हमारे प्रश्न का उत्तर गुरु कैसे ? इस बात पर वंश ने कहा राजन आप अपनी ही जिंदगी को उउधारण बनाकर समझिए यदि राजगुरु आपको शिक्षा नही देते तो क्या आप राजा बन पाते सिंघासन पर बैठ पाते? राजा ने सुनते ही बोल तुमने हमारी सारी दुविधा ही दूर कर दी। राजा और वंश की बाते सुनकर एक दरबारी ने प्रश्न किया कि गुरु कोन है। सक्षम ने उत्तर दिया गुरु वो है जो हमे कोई न कोई शिक्षा दे कोई विचार दे। कोई शुभ शिक्षा दे। पिता के रूप में गुरु ।मा के रूप में गुरु। भाई के रूप में गुरु। बहन के रूप में गुरु। यही है गुरु की परिभाषा।
दोस्तो गुरु वो नहीं है जो हाथ मे चॉक लेकर पढ़ाये। गुरु वो है जो हमें कोई शिक्षा दे।