गिटपिट की साईकिल

गिटपिट की साईकिल

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गिटपिट का जन्मदिन आने वाला था , गिटपिट बड़ी खुश थी कि जन्मदिन पर उसे ढेर सारे गिफ्ट जो मिलने वाले थे । गिटपिट अब बस एक ही काम कर रही थी –गिटपिट ,गिटपिट और गिटपिट ।

"गिटपिट ,और कितनी गिटपिट करेगी ,इधर आओ मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है" –मम्मी ने गिटपिट को बुलाते हुए कहा ।

"मेरी बातें आपको हमेशा गिटपिट ही लगती है ,आप मेरी बात को सीरियस लेती है नहीं ,इसलिए मेरा नाम भी गिटपिट ही रख दिया" गिटपिट ,गिटपिट करती हुई बोली ।

"तेरी बातें ही सबसे जरूरी हैं और तेरे लिए ही हलुआ बना रही हूँ ,जा जल्दी से दुकान से चीनी लेकर आ ,मुझे ये कम लग रही है" मम्मी ने गिटपिट को पैसे देते हुए कहा ।

गिटपिट – "सारा हलुआ मैं ही थोड़े खा लुंगी , आप सब भी तो खाओगे , सिर्फ मेरे लिए हलुआ बना रही हो ,ऐसा नहीं है" , गिटपिट करते हुए दुकान की ओर चली गई ।

शाम को हलुआ खाते हुए "बताओ ना पापा मेरे लिए क्या गिफ्ट लाने वाले हो? – गिटपिट ने उत्सुकता से पूछा

"मेरी गिटपिट को बहुत पसंद आयगी।" मम्मी बताने ही वाली थी कि पापा ने बीच में ही रोक दिया ,"आने दो ,आने दो खुद ही देख लेना ,तेरी गिटपिट कम करने का उपाय है ,उससे फुर्सत मिलेगी तो करेगी ना गिटपिट।"

"बताओ ना , मुझे अभी बताओ , मम्मी आप तो बता दो क्या है ऐसा की मुझे वक्त ही नहीं मिलेगा ।"

"अब सो जाओ ,सपने में सोचना ,क्या पता दिख ही जाए" –मम्मी ने बल्ब बंद करते हुए कहा ।

जैसे ,जैसे जन्मदिन पास आ रहा था गिटपिट का उतावलापण बढ़ रहा था ।जन्मदिन के दिन सुबह से गिटपिट को तो बस अपने गिफ्ट का इंतजार था , सवेरे से ही दरवाजे को निहारने लगी ।

 पापा ने उसे समझाते हुए कहा कि" दोपहर बाद ही आएगा तेरा गिफ्ट ,कूरियर वाले अंकल का फ़ोन आया था कल शाम को ,दरवाजे पर बैठने से जल्दी थोड़े ना आ जायेगा।"

दोपहर को पापा का फिर से फ़ोन बजता है , गिटपिट पापा को फ़ोन देते हुए – "देखो ना पापा ,शायद कूरियर वाले का फ़ोन है।"

पापा कूरियर वाले से ,"जी हाँ साईकिल मैंने ही मंगाई थी , आप चौराहे से सीधे अन्दर आइये ,मैं घर के बाहर ही खड़ा मिलूँगा ।"


"साईकिल,वाओ ! पापा , मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि आपने मेरे लिए साईकिल मंगाई है ,मम्मी मेरी साईकिल आ रही है" गिटपिट तेजी से दरवाजे की तरफ दौड़ी ।

"कूरियर वाले के पास तो कोई साईकिल ही नहीं है ,फ़ोन पर तो साईकिल के बारे में ही सुना था , बताओ ना पापा ,ये कूरियर वाले अंकल बिना साईकिल के क्यूँ आ रहे हैं ।" गिटपिट ने एक साँस में ही सब कह दिया ।

पापा कुछ बोलते ,इतने में कूरियर वाला घर पहुँच ही गया , बैग में से एक पत्रिका निकालते हुए बोला ,"ये लीजिये आपकी साईकिल।" यहाँ साइन कर दीजिये ।

पापा ने गिटपिट के हाथ में थमाते हुए कहा – "ये रही तेरी साईकिल ।"

गिटपिट का उत्साह कुछ कम हो गया था , "साईकिल को पापा के हाथ में रखते हुए बोली –आप ही रखो ये साईकिल ,मुझे नहीं चाहिए , मुझे तो.."

गिटपिट बोल ही रही थी की गिटपिट के मामा आ गए ,पर गिटपिट अब कुछ कम खुश थी , कुछ ही देर में कुछ और बच्चे आ गए थे , अब गिटपिट पहले जैसे चहकती खेल रही थी ।

शाम को फिर से उदास हो गई ,और ऐसे ही मन से जन्म दिन मनाया । अगले दिन गिटपिट की छुट्टी थी , सब मेहमान भी चले गए थे , गिटपिट को समझ नहीं आ रहा था की क्या करे ?

गिटपिट ने मेज पर रखी साईकिल को उठाया आगे –पीछे से देखा , सरसरी तौर पर पन्नो को पलटते हुए गिटपिट के चेहरे की रंगत ही बदल गई , गिटपिट ने कविता पढ़ी , फिर कहानी पढ़ी और पढ़ती गई , मम्मी ने बीच में आवाज भी लगाई ,पर गिटपिट आज अपनी साईकिल के साथ बिजी थी ।

शाम को जब पापा आये तो गिटपिट ने पापा को भी साईकिल के मजेदार किस्से सुनाये और बोली , "सच पापा ये साईकिल तो बड़ी मजेदार है ,सुबह से मेरा दिमाग इस साईकिल की ही सवारी कर रहा है , आपने एक ही साईकिल मंगाई है क्या ?"

"अब तो साईकिल नियमित हमारे घर आएगी और तेरे साथ मम्मी और मैं भी साईकिल का लुफ्त लेंगे , गिटपिट की गिटपिट अब और गिटपिटी हो जाएगी " पापा ने गिटपिट और साईकिल को गोदी में उठाते हुए कहा । 



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