घर का काम करती हो
घर का काम करती हो
" इतनी पढ़ी लिखी हो,नौकरी क्यों नहीं करती ? केवल घर के कामों के लिए इतनी पढ़ाई की थी ? इससे अच्छा तो हम ही हैं ना।ज्यादा पढ़ाई भी नहीं की और माँ बाप का ज्यादा पैसा भी खर्च नहीं करवाया। घर का काम तो करना ही है । सो कर रहे हैं ।"
"सही कहा नीता ! इतना पढ़ लिख कर भी मैं केवल घर के कामों में लगी रहती हूँ क्योंकि मुझे चौबीसों घंटों काम करने को जी करता है बिना किसी छुट्टी के। सबसे बड़ा काम तो बच्चों को सँभालना है । अगर बच्चे बिगड़ गए तो मेरी पढ़ाई किसी काम की नहीं रहेगी। और सबसे पहले तुम जैसे लोग ही कहने आओगे कि नौकरी भी नहीं करती फिर भी बच्चों को नहीं सँभाल पाई। बच्चे किसी काम के नहीं रहे। इसलिए सोच रही हूँ पहले बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा कर दूँ । उसके बाद दिल किया तो नौकरी भी कर लूँगी। पढ़ाई तो मेरे पास है ही । उसे तो कोई मुझसे छीन नहीं सकता ।सही कहा ना।" मुझे लगा मैंने कुछ ज्यादा ही कह दिया पर यह जरूरी भी था ।
"हाँ ,हाँ ! सही कह रही हो। तुम कभी कुछ गलत कह सकती हो। अच्छा मैं चलती हूँ। मुझे भी ढेरों काम पड़े हैं।"
मैं खुद में ही सोचने लगी, "पता नहीं, लोगों को खुद की जिन्दगी से ज्यादा दूसरों की जिन्दगी में झाँकने में इतनी दिलचस्पी क्यों रहती है ? मेरी पढ़ाई, मेरी लाईफ , मुझे नौकरी करनी होगी ,करूँगी ।नहीं करना होगा, नहीं करूँगी ।पढ़ाई का मतलब नौकरी कर के केवल पैसे कमाने से नहीं होता।अच्छे संस्कार और तहजीब भी आनी चाहिए ।इसलिए पहले खुद का काम और फिर नौकरी।"
