Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Children Stories

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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गांठ खुल गई

गांठ खुल गई

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मिर्जापुर में दो दोस्त नीकू और टीकू रहते थे।दोनों में गहरी दोस्ती थी।नीकू का स्वभाव बहुत सरल था।टीकू का स्वभाव थोड़ा तेज था।एकदिन दोनों में किसी बात पर बहस हो गई थी।नीकू और टीकू आपस मे उलझ गये।फिऱ भी नीकू ने बात को छोड़ दी और कहा भाई तू जीता और में हारा।

फिर भी टीकू के मन मे यह विवाद घर कर गया।टीकू के मन मे नीकू के प्रति एक गांठ बन गई।वह हमेशा उसे नीचा दिखाने की सोचने लगा।इधर नीकू पहले की तरह अपनी दोस्ती निभा रहा था। टीकू कभी रात को नीकू के खेत मे मवेशी छोड़ देता।हर जगह वो नीकू के शूल बिछाने को सोचने लगा।जिस रास्ते नीकू खेत पर जाता,उस रास्ते वह कीलें बिछा देता,जिससे बहुत सी बार नीकू की मोटरसाइकिल पंचर हो जाती थी।नीकू को इससे बड़ी परेशानी होती थी।वह पैदल-पैदल गाड़ी का पंचर निकलवाने के लिये जाता

ऐसा करने से टीकू को बड़ा मज़ा आता था।पर कहते है न जो दूसरों के लिये गड्ढा खोदता है,वह भी एकदिन उसी में जरूर गिरता है।टीकू के साथ भी ऐसा ही हुआ।टीकू और नीकू के खेत पास-पास ही थे।एकदिन टीकू को रात खेत की रखवाली के लिये जाना था।उसदिन वह नीकू का बुरा करने की सोचते हुए अपनी मोटरसाइकिल पर जा रहा था।वह इस धुन में भूल गया की वह जिस तरफ़ चल रहा है,उधर उसने यहां नीकू के लिये कीलें बिछाई हुई थी।उसे नीकू के लिये राह में बिछाई हुई कीलों का ध्यान न रहा,उसकी गाड़ी असन्तुलित होकर लहराने लगी और वह काँटो में गिर गया।जगह-जगह उसके कांटे चुभ गये।पीड़ा के मारे वह बेहोश हो गया।सुबह जब टीकू के घरवालों को पता चला वो उसे हॉस्पिटल ले गये।नीकू को जब पता चला,वह भी दौड़कर हॉस्पिटल आया।डॉक्टर ने बताया सारी रात खून बह जाने से टीकू को खून की शख्त आवश्यकता है।नही तो इसकी जान भी जा सकती है।टीकू के परिवार में कोई भी उसे खून देने को तैयार न हुआ।उधर नीकू ने कहा मेरे जिस्म से एक-एक बूंद निकाल लो,पर मेरे दोस्त को बचा लो।कहते हैं,जिनकी भावना शुद्ध होती है,ईश्वर भी उनकी मदद करता है।संयोग से दोनों दोस्तों का रक्त-समूह समान ही निकला।कुछ घण्टों बाद टीकू को होश आया।उसने होश आते ही पूछा,"मुझे कौन यहां लाया।मुझे किसने बचाया?" नर्सो ने बोला,"यहां लेकर तो आप के घरवाले आये थे।पर जब तुम्हे खून की आवश्यकता पड़ी तो तुम्हारे परिवारवालों ने मना कर दिया।तुम्हारे दोस्त नीकू ने अपनी जान जोख़िम में डालकर तुम्हारी जान बचाई है।" टीकू,नीकू को देखकर छोटे बच्चों जैसे रोने लगा

"मित्र मुझे माफ़ कर दो।तुम अच्छे हो,में बुरा हूं।तुम फूल हो,में शूल हो।तुम हीरे हो,में पत्थर हूं।मैंने सदा दोस्त होकर भी तुम्हारा बुरा सोचा।पर तुमने सदा सच्ची यारी निभाई।पर अब मित्र ऐसा नही होगा।आज से ये टीकू,नीकू के लिये अपनी जान भी दे देगा।तेरी खुशी में मेरी खुशी रहेगी।तेरे दुख में मेरा दुख रहेगा।मेरे मन की गांठ को तेरी सच्ची दोस्ती ने खोल दी है।नीकू अब से तू इस टीकू की धड़कन बनकर रहेगा।" दोनों मित्र गले लगकर रोने लगे।नीकू को वापिस उसका दोस्त टीकू मिल गया था।टीकू को अपने किये पर बड़ा पछतावा था।टीकू के मन की गांठ खुल चुकी थी तथा वह पछतावे के आंसू में धुलकर पवित्र भी हो गई थी।



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