Kunda Shamkuwar

Others Abstract

4.6  

Kunda Shamkuwar

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फ़ेस बुक वाले चेहरे....

फ़ेस बुक वाले चेहरे....

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आज न जाने क्यों मै फेस बुक में पुरानी फ्रेंड्स को ढूँढ रही थी..शायद अतीत में झाँकने की एक ख़्वाहिश सी थी जिसकी झलक मात्र मुझे उस रूमानी दुनिया में ले जाती है जिसे मैं "अपना" कह सकती थी....

मेरी वे फ्रेंड्स हॉस्टल के दिनों में मेरे दिल के काफी करीब थी...मैं उनके नाम से उन्हें ढूँढने लगी...अरे ! ये फ़ेस बुक को ऐसा क्या हुआ की यह फ़ेस बुक भी उन चेहरों की किताब के पन्ने की चिंदी भी खोज नहीं पा रहा था…

न जाने क्यों कोई मिल ही नहीं रही थी। लाज़िम है कि मुझे फेस बुक पर गुस्सा भी आने लगा। दुनिया भर के लोगों को दिखा रहा है ये फ़ेस बुक और जिन्हे मैं शिद्दत से ढूँढ रही हुँ उन्हें क्यों नहीं दिखा पा रहा है... 

ओफ़्फ़ो…ये बात भला मैं भूल कैसे गई ? अचानक मुझे ध्यान आया कि हमारे यहाँ शादी के बाद लड़कियों के नाम बदल जाते हैं ...फिर मुझे वह कैसे उन नामों में मिलती? बेचारा फ़ेसबुक भी उनका क्या करे जिनकी अस्मिता की रंगत ही बदल गई हो…मैं मुस्कुरा दी मानों फ़ेस बुक को माफ़ कर दिया हो…

मेरी उनको ढूँढने की रफ़्तार थम गयी....कुछ दिनों के बाद मैं फिर फ़ेस बुक पर गयी...फिर से उन्हें ढूँढने लगी। एक दो मिली भी... लेकिन उन्होंने अपने प्रोफाइल लॉक किये हुए थे।पता नहीं प्रोफ़ाइल लॉक हो गई थी या पूरी पहचान भी?

नाम गुम गये थे...चेहरे लगभग वही थे लेकिन क्या ये वही चेहरे थे जो बिंदास थे...उन्मुक्त थे? शायद नहीं.. मेरा मन भारी होने लगा था….मैं फिर उन पुरानी यादों में खो गयी जब हम हॉस्टल में बिना किसी लाग लपेट के दुनिया जहान की बातें किया करती थी.....लेकिन दुनिया अब काफी बदल गयी है। दुनिया पहले जैसी कहाँ रही? अब तो हमें इशारों को पकड़ना होता है। उन्हें समझना भी होता है.... 

अब तो न ख़्वाब थे और न वे उड़ान उड़ने का माद्दा रखते पंख भी……

लेकिन एक प्रश्न मुझे मेरे अंतस: को भेद रहा था....उन्होंने क्यों नही मुझे ढूँढने की कोई कोशिश की? क्या मेरा सोचना सही नही है? मैंने फ़ेस बुक बंद कर दिया।फ़ेस बुक में लोग अपनी उन सतही खुशियों का मुजाहिरा ही तो करते है। शायद यही उसका कटु सत्य है या फिर फ़ेस बुक का असली चेहरा? क्या यह बेचारगी का आलीशान तोहफ़ा नही है जो हमे झूठी दुनिया मे भरमाता रहता है?

मैं भी कितनी बेवकूफ़ हूँ। मैं ही मैं उनको ढूँढती जा रही थी। मैं भूल ही गयी कि इस दुनिया मे सब को अपनी अपनी दुनिया मे रहने का हक़ है...जो जिंदगी फ़ेस बुक में चमकदार दिखायी देती है वह असलियत में बिल्कुल अलग होती है...

हाँ...एक ओढ़ी हुयी ज़िंदगी…फ़ेस बुक वाली जिंदगी....


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