एक वो भी था ज़माना
एक वो भी था ज़माना
इस बार ग्रामोफोन लेकर आए थे शहर से रामबाबू।
शाम होते ही दालान पर बजा देते तो सब सुनने पहुँच जाते। पारो दादी सबसे ज़्यादा बुज़ुर्ग थीं और शौक़ीन भी। वो कहती, अंदर में कोई औरत और आदमी बंद हैं जो गाते हैं। कुछ रसिक, छलिया बाबू कलफ लगा तो कोई सिल्क का तहरीदार कुरता पहनकर आते और यूँ बैठते जैसे सामने ग्रामोफोन ना होकर कोई माशूका बैठी हो। कूल मिलाकर मनोरंजन के साथ साथ सबको एकजुट होकर बैठने का एक जरिया बन गया था ये ग्रामोफोन। कजरी गाय जो दूध कम देने लगी उसका उपाय क्या तो गोविंदजी का लड़का फिर से फेल हो गया उसे उसी हुजूम से कोई मुफ्त ट्यूशन पढ़ाने की बात पर राज़ी हो जाता तो कालू की काली बेटी को सुन्दर सजीला वर भी तो इसी ग्रामोफोन की बदौलत मिला। मतलब ग्रामोफोन ने प्रेमी युगलों को प्रेम से सराबोर करने के अलावा इतने और भी काम किये हैं।
हाँ, प्रेमगीत पर प्रेममय होकर कुछ प्रेमी युगलों ने घर से भागकर ज़रूर शादी कर ली पर ग्रामोफोन फिर भी हीरो बना रहा।
काश कि लौट आए वो ग्रामोफोन का ज़माना
वो प्यारे भोले भाले लोग और उनका आशिकाना!
