एक रूह या पवित्र आत्मा
एक रूह या पवित्र आत्मा
पालीताना शत्रुंजय नदी के तट पर शत्रुंजय पर्वत की तलहटी में स्थित जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है। जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध पलीताना में पर्वत शिखर पर भव्य 863 जैन मंदिर हैं।जैन मंदिरसफ़ेद संगमरमर में बने इन मंदिरों की नक़्क़ाशी व मूर्तिकला विश्वभर में प्रसिद्ध है। 11वीं शताब्दी में बने इन मंदिरों में संगमरमर के शिखर सूर्य की रोशनी में चमकते हुये एक अद्भुत छठा प्रकट करते हैं तथा मणिक मोती से लगते हैं। पालीताना शत्रुंजय तीर्थ का जैन धर्म में बहुत महत्त्व है। पाँच प्रमुख तीर्थों में से एक शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा करना प्रत्येक जैन अपना कर्त्तव्य मानता है। मंदिर के ऊपर शिखर पर सूर्यास्त के बाद केवल देव साम्राज्य ही रहता है। सूर्यास्त के उपरांत किसी भी इंसान को ऊपर रहने की अनुमति नहीं है। पालीताना के मन्दिरों का सौन्दर्य व नक़्क़ाशी का काम बहुत ही उत्तम कोटि का है। इनकी कारीगरी सजीव लगती है। पालीताना का प्रमुख व सबसे ख़ूबसूरत मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का है। हमारे जैन धर्म में जब भी कोई वर्षी तप मतलब 1 दिन उपवास और 1 दिन खाना ब्यास ना दो टाइम एक जगह बैठ कर खाना 1 साल तक करते हैं उसके बाद में उसका पारणा शत्रुंजय तीर्थ पालीताणा में जाकर करते हैं ऐसा ही एक प्रसंग में आज आपको बता रही हूं।
मेरी माता जी का पहला वर्षी तप था जिसका पारणा पालीताना में करना था
हमारे यहां शादी से भी ज्यादा महत्वपूर्ण ऐसे तपस्या के प्रोग्राम होते हैं ।तो हम लोग भी उसमें शामिल हुए थे ।मैं मेरी बड़ी बेटी और मेरी सासू मां ।हम लोग डेढ़ महीना रूके ।और हम ऊपर पहाड़ पर मंदिरों के दर्शन करने के लिए भी गए। सबसे पहली बार जब मंदिर के दर्शन करने के लिए गए तब की घटना मैं आपके साथ शेयर करना चाहूंगी। उसने मुझे विश्वास दिला दिया कि ऐसे तीर्थ स्थान पर कोई तो पवित्र आत्मा है ।जो आपका तीर्थ पूरा करवाती है। और आपको हर खतरे से दूर रखती है। मानो तो पवित्र आत्मा ना मानो तो रूह । मैं तो पवित्र आत्मा ही मानती हूं । रूह में मुझे विश्वास नहीं।
उस समय मेरी बड़ी बिटिया तीन चार महीने की थी।मैं और मेरी सासू मां हम दोनों नेसोचा जल्दी जाकर सुबह जल्दी उठकर पहाड़ चढ़ेगे ,और धूप चढ़ने से पहले हम ऊपर पहुंच जाएंगे, तो थकान भी नहीं होगी । अब बात थी बेटी को रखने की तो वहां गोदी वाले बहुत थे । तो हमने भी एक गोदीवाला कर लिया। बेटी को उस उसको गोद में दे दिया। और बैग भी दे दिया, और बोला तुम हमारे साथ रहना ।और हम लोग पहाड़ चढ़ने लगे । थोड़ी दूर तो वह हमारे साथ चला। फिर पता नहीं हमको नजर ही नहीं आया । अब समझ में नहीं आया क्या करें। बहुत घबराहट हो रही थी । किसी ने आसपास में चलने वाले लोगों ने बोला, आप चिंता मत करो। आपकी बेटी कहीं नहीं जाएगी । यह गोदी वाले थोड़ा जल्दी चलते हैं। तो आगे निकल गए होंगे । मैंने भी सोचा ऐसा ही होगा शांति से यात्रा करते हैं ।यात्रा कर ऊपर तक पहुंच गए ।दर्शन करें। सब मंदिरों के दर्शन करें ।मगर गोदीवाला तो कहीं नजर ही ना आवे। अब क्या करें। मेरा तो बैग भी उसके पास था । तो थोड़ा बहुत कैश रखा था , वह भी उसी में था। मैंने उसका नाम खाली पूछा था। बाकी उसका बिल्ला नंबर भी नहीं था। कि किस नंबर का है । या बाहर का है । सोचा क्या करें पुलिस में रिपोर्ट करें। मैंने कहा नीचे जाकर देखते हैं। फिर क्या करना है । छोटा सा पालीताना शहर है ,पता लग जाएगा । हम नीचे उतरे भगवान का नाम लेते हुए। तो जैसे कोई हमको कह रहा है शांति रखो, कुछ नहीं होगा। ऐसा ही बार-बार लग रहा था। फिर हम अपनी धर्मशाला पहुंचे, तो क्या सुखद आश्चर्य था कि ,वह गोदी वाला बिटिया को गोदी में लेकर थप्पेक के सुला रहा था। हम लोग उसके पास गए । बोलने लगे तो उसने मुंह के ऊपर उंगली रखी। और फिर बेटी को सुलाकर साइड में, फिर बोलता है, मैंने आपको बहुत ढूंढा । आप मुझे नहीं मिले । मैं थोड़ा सा आगे निकल गया था । फिर वापस पीछे आया। कहीं मिले ही नहीं , फिर मैंने सोचा आपके धर्मशाला पर ही जाता हूं। आप वहां मिलेंगे ,
क्योंकि आखिर में वही तो आएंगे। इसीलिए मैं 1 घंटे से यहां बैठा हूं ।अब हमारी जान में जान आई ।
और ऐसा लगा जैसे कोई तो था जिसने हमको पूरे रस्ते रखने को बोला और चिंता मत करो, चिंता मत करो और हमारी यात्रा भी पूरी करवाई। क्योंकि पहाड़ की यात्रा चढ़ना और उतरना दोनों ही बहुत कठिन लग रहा था। उस समय हम तो कम उम्र के थे। पर सासू मां तो हमारी उम्र वाली थी। तो उनके लिए वापस जाना तो मुश्किल ही था ।तो यह यात्रा भी हुई । और बच्ची भी सब कुशल मिल गई। संस्मरण रह गया दिमाग में ।
उसके बाद तो जब भी कभी गए सबसे पहले जिसको भी बच्चे को हाथ में देते थे ।उसका बिल्ला नंबर नाम सबका ध्यान रखते थे। क्योंकि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी उस दिन तो सब अच्छा रहा
