एक परिवार ऐसा भी
एक परिवार ऐसा भी
"ये क्या है अभिनव तुमने वादा किया था इस बार हम घूमने जरूर जाएंगे बच्चे भी कितनी आस लगाए बैठे थे अब अचानक तुम कहते हो ऑफिस के जरूरी काम से जाना है आपको तो इस बार भी घूमना कैंसिल है!" श्वेता अपने पति से गुस्से में बोली
" यार क्या करूं मैं जाना तो मैं भी चाहता हूं लेकिन नौकरी भी तो जरूरी है अब अचानक से ऐसा काम आया है जिसे मेरे सिवा कोई नहीं कर सकता तो मैं भी मजबूर हूं!" अभिनव ने बेबसी से कहा।
" आप और आपका काम बस बाकी हम सब फालतू हैं यहां!" श्वेता का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
श्वेता का गुस्सा अपनी जगह ठीक था पिछले तीन साल से यही हो रहा किसी ना किसी कारण गर्मियों की छुट्टियों में घूमना कैंसिल ही हो रहा था। इस बार उसे और बच्चों को पूरी उम्मीद थी कि इस बार वो गोवा जरूर जाएंगे पर अब अचानक से ये काम। उधर अभिनव भी मजबूर था क्योंकि उसे मुंबई जाना था ना जाने की सूरत में नौकरी पर बन आती।
" प्लीज़ श्वेता तुम तो समझो मुझे तुम नहीं समझोगी तो और कौन समझेगा बच्चों को बहला लेंगे हम!" अभिनव प्यार से बोला।
" हम्म कोई और चारा भी तो नहीं अब । आप बता देना कब जाना है आपको मैं बैग लगा दूंगी !" ये बोल श्वेता लाइट बन्द कर लेट गई।
अभिनव भी लेट गया पर आंखों में नींद नहीं थी उसे भी बहुत बुरा लग रहा था अभी तो बच्चों की नाराज़गी भी सहनी होगी उसे।
" पापा मम्मी कह रही हम गोवा नहीं जा रहे पर क्यों पापा आपने तो प्रोमिस किया था!" अभिनव की नौ साल की बेटी अमारा अगले दिन उससे बोली।
" हां बेटा पर कुछ जरूरी काम है पापा को हम बाद में चलेंगे ना!" अभिनव उसे प्यार करते हुए बोला।
" रहने दो पापा आप ऐसा ही करते हो हर बार!" पांच साल का नन्हा आदित बोला।
दोनों बच्चे रूठ कर अपने कमरे में चले गए । घर का माहौल थोड़ा बोझिल सा हो गया था जो अभिनव को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था पर वो करे तो क्या करे।
" देखो बच्चों पापा आप दोनों के लिए क्या लाए है!" अगले दिन अभिनव ने ऑफिस से आ बच्चो को आवाज़ लगाई।
" अपने कमरे में हैं दोनों बहुत समझाया मैने उन्हे पर वो बोलते हैं। हमारे सारे दोस्तों के पापा घूमने ले जाते हैं उन्हें बस हम ही नहीं जाते। श्वेता ने कहा।
" हम्म मैं देखता हूं ...।" ये बोल अभिनव बच्चों के कमरे में गया।
" अरे मेरी गुड़िया रानी होमवर्क कर रही है मैं कुछ हेल्प करूं क्या!" अभिनव अमारा से बोला।
" नहीं पापा मुझे आता है सब !" अमारा ये बोल अपने काम में लग गई।
" लाओ अक्षत आपकी ड्रॉइंग मैं बनवाऊं!" अभिनव बेटे से बोला।
" मुझ पर एक एहसान करना के मुझपर कोई एहसान ना करना!" अक्षत सिर नीचे किए ही सलमान का डायलाग बोला।
" क्या..!" उसके मुंह से ऐसी बात सुन अभिनव के साथ साथ श्वेता को भी हंसी आ गई।
" क्या बोल रहा है ये पगले!" अभिनव अक्षत से बोला।
" मैं आपसे कुट्टा हूं इसलिए बोल रहा ये!" अक्षत बिना सिर उठाए बोला।
" ठीक है ठीक है पर पहले देख तो लो मैं लाया क्या हूं अमारा बेटा इधर आओ तुम भी!" अभिनव बोला
" हम गोवा तो नहीं जा सकते पर आज सोमवार है कल पापा मुंबई जाएंगे शुक्रवार तक वापिस आ जाएंगे फिर हम ...कहां जाएंगे ....मनाली ...ये देखो टिकट भी ले आया मैं अब तो खुश!" अभिनव टिकट दिखाते हुए बोला।
" ये....दोनों बच्चे खुशी से झूम उठे !
" चलो जी बच्चे तो मान गए अब आपको कैसे मनाया जाए बेगम साहिबा!" अभिनव श्वेता से बोला।
"हुंह मैं बच्ची थोड़ी जो मुझे बहला लोगे कहां गोवा कहां मनाली!" श्वेता बोली।
" अच्छा जी ...चलो तुम बैठो आज बन्दा तुम्हे अपने हाथ से बना कर खाना खिलाएगा!" अभिनव श्वेता को सोफे पर बैठते हुए बोला।
" मुझपर एक एहसान करना के मुझपर कोई एहसान ना करना!" श्वेता सोफे से उठते हुए बोली।
" अच्छा जी छोटे मियां तो छोटे मियां बड़े मियां सुभानल्लाह!" अभिनव के ऐसा बोलते ही दोनों हंसने लगे।और दो दिन से जो घर का माहौल बोझिल था वो खुशनुमा हो गया।
