Ashish Kumar Trivedi

Children Stories

5.0  

Ashish Kumar Trivedi

Children Stories

एक नई शुरुआत

एक नई शुरुआत

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नए स्कूल में फैज़ल का यह नया दिन था। उसके लिए यह स्कूल ही नहीं बल्कि यह शहर, यह माहौल सब कुछ नया था। वह यहाँ की किसी भी चीज़ से खुद को जोड़ नहीं पा रहा था।

उसके पापा का ट्रान्सफर इस शहर में हो गया था। अतः उसे अपना स्कूल, अपने मित्र सब कुछ छोड़ कर आना पड़ा। वह बहुत अकेलापन महसूस कर रहा था। सब अपने अपने ग्रुप में बंटे आपस में हंसी मजाक कर रहे थे। एक वही सबसे अलग थलग खड़ा था। वह अपने पुराने स्कूल को याद कर रहा था। कितना पॉपुलर था वह अपने पुराने स्कूल में। स्पोर्ट्स, डिबेट, एस्से राइटिंग सब में अव्वल रहता था। टीचर्स स्टूडेंट्स सब का चहेता था। सब उससे दोस्ती करना चाहते थे। यहाँ तो कोई उस की तरफ देख भी नहीं रहा था। 

क्लास शुरू हुई तो वह आकर अपनी सीट पर बैठ गया। उसने अपने साथ बैठे लडके को एक स्माइल दी। वह भी उसे देख कर हल्के से मुस्कुरा दिया और अपने काम में लग गया। उसके बाद उनमें कोई बात नहीं हुई। 

नए स्कूल के अजनबी माहौल में फैज़ल का मन क्लास में बहुत कम लग रहा था। वह चाह रहा था कि काश आज जब शाम को पापा ऑफिस से लौटें तो कहें कि तैयारी कर लो हम वापस अपने शहर जा रहे हैं।  

कभी वह कल्पना करता कि नए स्कूल का क्लासरूम अचानक पुराने स्कूल के क्लासरूम में बदल गया है। उसका सबसे अच्छा दोस्त चेतन अपनी किताब में ध्यान लगाए वह समझ रहा है जो पढ़ाया जा रहा है। उसके पीछे बैठा अमान अपनी शरारत से बाज़ नहीं आ रहा है। उसने पीछे से उसे पेंसिल चुभो दी। जब वह अचानक उचका तो टीचर ने उसे डांटा 'ठीक से बैठो'। पीछे से अमान खिलखिलाकर हंस दिया।

पर वह जानता था कि यह सब महज़ उसकी कल्पना है जो कुछ ही देर उसे सुकून दे सकती है। असलियत तो यह है कि उसके आसपास सभी लोग अजनबी हैं।

रीसेस में सभी क्लासरूम के बाहर आ गए। उसकी बगल में बैठा लड़का बिना कुछ बोले चुपचाप निकल गया। फैज़ल ने भी अपना टिफिन बॉक्स निकाला और ग्राउंड में आ गया। एक शांत कोना देख कर वहाँ बैठ गया। फैज़ल के मन में एक बार फिर आया कि काश पापा का ट्रान्सफर न हुआ होता। उसे यहाँ ना आना पड़ता। 

"क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ। " 

फैज़ल ने सर उठा कर देखा एक लड़का उसके सामने खड़ा मुस्कुरा रहा है। 

" ज़रूर " 

कह कर फैज़ल थोडा सा खिसक गया।  

"मैं तुम्हारी ही क्लास में हूँ। शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। मैं सुबह से देख रहा हूँ की तुम सब से अलग चुपचाप हो।"  

"हाँ मैं यहाँ नया आया हूँ।" 

फैज़ल ने कुछ उखड़ा सा ज़वाब दिया। 

"मेरा नाम रतन है, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे।" कह कर उसने फैज़ल की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया।

फैज़ल ने देखा कि उसकी आँखों में उसके लिए आत्मीयता झलक रही है। फैज़ल उससे हाथ मिलाते हुए बोला। 

"मुझे खुशी होगी। आज से हम दोस्त हैं।"  

जल्द ही दोनों एक दूसरे से खुल गए। रतन फैज़ल को स्कूल के बारे में बता रहा था। वह क्लास के हर एक बच्चे की तरफ इशारा कर उसका नाम और उसके बारे में बता रहा था। किस सब्जेक्ट के टीचर का क्या नाम है। बच्चों ने उन्हें क्या नाम दिया है। कौन सा टीचर बात बात पर डांटता है और कौन प्यार से समझता है सब कुछ।

फैज़ल को लगा कि कुछ देर पहले वह कितना अकेलापन महसूस कर रहा था। सारे माहौल में अजनबीपन था। पर रतन की आत्मीयता ने सारा माहौल ही बदल दिया। फैज़ल के मन में एक नई उम्मीद जागी। उसके पुराने मित्रों की याद तो सदैव बनी रहेगी किन्तु यहाँ वह एक नई शरुआत करेगा।


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