एक और एक ग्यारह

एक और एक ग्यारह

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एक चींटी अनाज के टुकड़े को अकेले उठाकर ले जाने की कोशिश कर रही थी तभी उसकी एक साथी ने उसे देखा।

"क्या हुआ बहना,... 

क्या मैं तुम्हारी मदद करूं"?

-(दूसरी चींटी ने बड़े शांत स्वर में पहली चींटी से पूछा था।)

"हां बहना,..यदि आपको परेशानी ना हो तो यह अपनी बड़ी रानी के लिए ले जाना चाहती हूं मेरी मदद कर सकती हो तो कर दीजिएगा ।"

-(सहज शब्दों में पहली चींटी ने दूसरी चींटी से कहा)

'दोनों अब उस अनाज के टुकड़े हो अपने गंतव्य तक ले जाने का प्रयास कर रही थी परंतु वे टुकड़ा काफी बड़ा था वे दोनों बहुत ही मेहनत के साथ कोशिश करे जा रही थी।'

'तभी अन्य चींटी साथियों ने उन चीटियों को देखा और वे उनके पास आए और मदद के लिए अपना प्रस्ताव दिया।'

'सभी की मदद से वह अनाज का टुकड़ा रानी के पास ले गए,रानी चींटी अनाज के टुकड़े को प्राप्त करके बहुत खुश हुई।'

 "यह अनाज सबसे पहले किसने उठाया था।"

-(रानी चींटी खाते हुए पूछती है)

"मैंने यह पहले देखा था और बहुत प्रयास किया कि मैं आपके लिए लेकर आओ तब मेरी दूसरी चींटी ने मदद की थी और फिर इन सब की मदद से हम *एक और एक* *ग्यारह* बनकर आपके लिए यह अनाज लेकर आए हैं।"-

( बड़ी विनम्रता से इन सबकी ओर इशारा करते हुए, पहली चींटी ने रानी चींटी को कहा।) 

"देखो यही एकता का बल है और यह अनाज बहुत ही स्वादिष्ट और हमारे लिए काफी सारा है,...और हम सबको पर्याप्त मात्रा में हो जाएगा, अब देखो बाहर इतनी वर्षा होना शुरू हो गई है,अब यह हमारे सबके काम आएगा और हमें हमेशा ध्यान रखना है *एक* *और एक ग्यारह* बनकर ही रहना है जिससे हमारे पर कभी कोई मुसीबत ना आए।"

-(रानी चींटी प्रसन्न होते हुए,सभी को निर्देशात्मक स्वर में बोल रही थी)

"हां हां हम जीवन में सदा एक दूसरे का साथ देंगे !"

-(सभी एक साथ एक स्वर में बोल रहे थे !)


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