एक अरमान
एक अरमान
आज सुबह कुछ अलग सी थी जब सुमन को पता चला के वो दूसरी बार गर्भवती हो गयी है मानो के जैसे उसकी ख़ुशी का ठिकाना ही ना रहा हो। उसने अपने पति विनोद को यह बात बतायी वह भी बहुत ख़ुश हुआ जैसे कोई अरमान पूरा होने की शुरुआत हुई हो।इस बार उनकी ख़ुशी दुगनी थी क्यूँकि दूसरी बार माता-पिता बनने का सुख जो मिलने जा रहा था। अब की बार उनको बेटी के अरमान थे क्यूँकि बेटा तो पहले है ही। उन दोनो ने बेटी के बहुत सपने संज़ोए थे। सुमन- विनोद ने अपने कमरे में सब तरफ़ गुड़ियों की प्यारी तस्वीरें लगायी थी। सुमन सुबह सबसे पहले उठते ही उन तस्वीरों को देखती और भगवान से बेटी होने की प्रार्थना करती। जैसे- जैसे दिन निकलते वह हमेशा अपने गर्भ में बेटी के होने का एहसास करने की कोशिश करती। सुमन सबसे कहती के इस बार तो बेटी कि आने की उम्मीद है अगर कोई उसे कह देता था क्या पता इस बार भी बेटा आ गया तो सुमन को बहुत ग़ुस्सा आ जाता था क्यूँकि बेटे की माँ तो वो पहले ही है इस बार बेटी की माँ बनना था। माँ बेटी का रिश्ता सबसे अलग जो ठहरा।
सुमन अपने माता- पिता की एक ही बेटी है। वह अपने माता-पिता को हमेशा पूछती के इस बार मुझे बेटी होगी न?? वे दोनो भी कहते - हाँ होगी क्यों नहीं, तुम्हारे अरमान भगवान ज़रूर पूरा करेंगे। सुमन ने अपने मन में कई मन्नतें भी मानी थी के बेटी होगी तो उन मन्नतों को पूरा करूँगी।
अब डिलिव्री के दिन नज़दीक आ रहे थे सुमन के मन में भी आने लगा के बेटा भी हो क्या फ़र्क़ पड़ता है। क्योंकि ऊपर वाले के आगे ना किसी की चली है ,ना चलेगी। धीरे- धीरे मन को समझ भी आने लगा के ऊपर वाले की दी हुई हर चीज़ को ख़ुशी- ख़ुशी स्वीकार करना चाहिए क्योंकि उसी में ही भलाई होती है।
आज हॉस्पिटल जाना था डिलिव्री करने सुबह भगवान के आगे हाथ जोड़ कर कहा- आपका दिया हुआ सब स्वीकार है अब बस सही सलामत और स्वस्थ बच्चा देना। सुबह से दर्द होना शुरू हुआ पर मन में अब भी बेटी को पाने का अरमान था आख़िर मन जो ठहरा, मन को समझना मानो के जैसे कठिन हो गया हो। मन में उम्मीदों के चलते दर्द भी ठंडा पड़ गया जैसे- तैसे रात को डिलिव्री हुई। बच्चे के रोने की आवाज़ बहुत तीखी सी लगी मानो जैसे बेटी की रोने की आवाज़ हो। कान तरस रहे थे सुनने को के बेटी हुई है। बस उसी समय नर्स ने कहा- “ बधाई हो बेटा हुआ है” । सुमन के आंसू तो रुकने का नाम ही ना ले बेटे के होने की ख़ुशी तो थी पर बेटी ना होने का ग़म भी था।
सुमन फिर भी भगवान से उसके अरमान ना पूरे करने की शिकायत कर रही थी। अब गोद में बेटे को लेने के बाद उसे देखते ही सारी शिकायतें दूर हो गयी। फिर तो बस भगवान के लिए धन्यवाद ही निकल रहा था। फिर अगले दिन सुबह होते है सुमन के माता- पिता का फ़ोन आया उन्होंने सुमन की फ़िक्र करते हुए कहा कही उसे बेटी के ना होने का ग़म ना हो, उन्होंने बहुत ख़ुश हो कर बधाई दी और कहा तुम तो बहुत भाग्यशाली हो तुम्हें तो २-२ बेटों की माँ बनने का सुख मिला है। तभी सुमन सामने से कहती है- आप दोनो को भी बधाई हो दूसरी बार नाना - नानी बनने की ख़ुशी में।अब सुमन बहुत ख़ुश भी है और बेटी के ना होने का अरमान जैसे दिल के किसी कोने में छिप गया हो।
बेटा - बेटी दोनो के होने की अलग ही ख़ुशी है। जितना लोगों के लिए बेटे का होना ज़रूरी है उतना ही बेटी का होना भी बस यहाँ सही सोच और सच्चे एहसास के होने की ज़रूरत है।”