परिवार
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फिर वही शाम रमेश लाल ने अपनी पत्नी वीना जी को चिल्लाते हुए कहा “ बस करो अब इंतज़ार करना मैं तुम्हें और दुखी होते हुए नहीं देख सकता” इस बार भी वह किसी बहाने से यहाँ आने को माना कर देगा
वीना जी ने कहा -"अब आप ग़ुस्सा नहीं करिए”
रमेशलाल ने कहा- “अब वह नहीं आएगा “, वो ससुराल का हो कर रह गया है। "
"नहीं जी आप ऐसा क्यों सोच रहे वह पक्का भूल गया होगा"- पत्नी ने कहा
"क्या कोई इतना बड़ा त्योहार भूल सकता है वो भी दीपावली का दिन जब उसे पता है के दीपावली की पूजा हम सब मिलकर करते है। लगता है अब हर साल हमें ऐसे ही अकेले पूजा करनी होगी"- रमेश लाल ने उदास हो कर कहा!
वीना जी ने दिलासा देते हुए कहा- "जी अब आप दिल छोटा मत कीजिए मुझे पता है बेटा बहु और बच्चों को लेकर ज़रूर आएगा वह इतना बड़ा त्योहार नहीं भूल सकता ।""
तभी फ़ोन की घंटी बजती है- रमेशलाल अपनी पत्नी की ओर देखते हुए फ़ोन उठाते ही बोलते हैं," हेलो - हेलो कौन बोल रहा है!"- सामने से उनका बेटा कहता है, हेलो - "बाबूजी प्रणाम , मैं सुधीर बोल रहा हैं। आप और माँ कैसे हो ?", रमेशलाल कड़ी आवाज़ में कहते है "हम यहाँ ठीक हैं। तुम, बहु और बच्चे कैसे है?"
सुधीर ने कहा-" हम भी ठीक है बाबूजी।"
रमेशलाल -" कहो कैसे याद किया ? क्या इस बार भी तुम नहीं आ सकते यह यही बताने को फ़ोन किया है?"
सुधीर ने धीरे स्वर में कहा- "बाबूजी माफ़ करना इस बार भी हम वहाँ नहीं आ पाएँगे। मेरे दफ़्तर का काम बढ़ गया है मुझे इस बार प्रमोशन मिला है तो काम भी ज़्यादा हो गया है मुझे इस बार छुट्टी नहीं मिली है काम से।"
रमेशलाल बिना कुछ कहे फ़ोन रख देते है , उनकी पत्नी पास आकार पूछती है कौन था फ़ोन पर?
रमेशलाल- "सुधीर था वह इस बार भी यहाँ नहीं आ रहा" ये कहते हुए वह बाहर चले जाते है।
पत्नी भी उदास हो कर पूजा की तैयारी में लग जाती है। फिर दोनो ने मिलकर पूजा की।पूजा करने के बाद दोनो उदास हो कर बातें करने लगे के क्या माँ बाप बच्चों को इसलिए पढ़ाते हैं ताकि बच्चे बड़े हो कर इतने व्यस्त और दूर हो जाए माँ बाप से??- रमेशलाल ने कहां
वीना जी -" काश हमें उसे बाहर जाने ही नहीं देना था नौकरी करने वो भी वहाँ जहाँ बहु का मायका हो, अब बहु ने ससुराल में रहना क्या होता उसने ज़्यादा देखा ही नहीं शादी के कुछ ही समय बाद सुधीर का ट्रान्स्फ़र हुआ। बहु तो जैसे मायके की हो कर रह गयी।"
रमेशलाल- "शायद गलती हमारी ही है हम सुधीर की पढ़ायी के लिए माँ बाबूजी को गाँव में छोड़कर शहर आए ताकि वो अपने भविष्य में तरक़्क़ी हासिल करे। हमने उसे पढ़ाया लिखाया पर परिवार क्या होता है ये नहीं सिखा पाए। उसी का नतीजा शायद हमें आज देखने को मिल रहा है।"