भरोसा
भरोसा
"बेटा निशा मैं काम पर जा रही हूँ, तुम भी जल्दी से बाक़ी का काम निपटा कर विद्यालय चली जाना काम से लौटते समय मैं तुम्हें लेती हुई घर आऊँगी-" "जी माँ चली जाऊँगी।" काम निपटा कर निशा चली जाती है और आज परीक्षा का दिन रहता है वह बहुत ही उत्साहित रहती है क्योंकि वह पढ़ने में बेहद होश्यार रहती है। जैसे ही परीक्षा का पर्चा देखती है उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है क्योंकि उसे सारी चीज़ें पता रहती है। उसकी कक्षा में कुछ लोग उससे जलते भी थे लेकिन उसे कोई फ़रक नहीं पड़ता था वह किसी से द्वेष नहीं रखती थी।
तभी पीछे बैठी उसकी एक सहपाठी उसकी मुस्कुराहट देखकर जलती है और पैरो के सामने छोटी सी उत्तर लिखी हुई पर्ची फेंकती है। जब वहाँ से अध्यापिका गुजरती है उनका ध्यान उस पर्ची पर पड़ता है और वह निशा को वह पर्ची उठा कर देने को कहती है जैसे ही अध्यापिका पर्ची देखती है बिना किसी को कक्षा में कुछ बोले निशा को अपने साथ कक्षा से बाहर आने को कहती है। निशा बहुत घबरा जाती है मगर उसे अपनी क़ाबिलियत पर पूरा विश्वास रहता है तभी अध्यापिका निशा की क़ाबिलियत को जानते हुए उसे कुछ नहीं कहती है बल्कि उससे मदद लेती है के "मुझे पता है तुमने ये काम नहीं किया है मगर किसने किया है ये पता करना भी ज़रूरी है और उसे सजा भी मिलनी चाहिए तुम चुप चाप अपनी स्थान पर जा कर बैठ जाओ जिसने ये काम किया होगा वह खुद ही तिलमिला जाएगा और कोई न कोई दूसरी गलती ज़रूर करेगा।"
कुछ समय बाद उसकी पीछे बैठी सहपाठी उठ कर अध्यापिका से कहती है- “ अध्यापिका जी आपने निशा को सजा क्यों नहीं दी?" तभी अध्यापिका कहती है "कैसी सजा क्या किया है निशा ने? “ वह बोल पड़ती है "उसकी कुर्सी के नीचे से आप ही को तो पर्ची मिली आपने उसे सजा क्यों नहीं दी? अब अध्यापिका को पूर्ण विश्वास हो जाता है के ये काम उसी ने ही किया है क्योंकि यह बात तो उसने कक्षा में किसी से नहीं कहती है तो उसे कैसे मालूम हुआ के वो उत्तर लिखी हुई पर्ची है फिर अध्यापिका उठ कर उसकी स्थान पर जाती है और पर्ची में लिखी लिखावट को मिलाती है जो हुबहू उसकी लिखावट से मिलती है। अध्यापिका निशा पर गर्व करती है और उसकी सहपाठी को सजा देती है ताकि दुबारा वह किसी से साथ ग़लत ना कर सके।
माँ घर लौटते समय निशा को साथ ले कर लौटती है तभी रास्ते में निशा अपनी माँ को सारी घटना बताती है। अब माँ को भी अपनी निशा पर गर्व होता है।