Kavya Chungani

Children Stories

1.5  

Kavya Chungani

Children Stories

बचपन

बचपन

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यह उस समय की बात है जब हम छोटे थे और छोटी- छोटी चीजों में भी अपनी ख़ुशी ढूँढ लेते है मानो जैसे हमारे पास ख़ुशियों का ख़ज़ाना हो। परिवार एक साथ रहते थे घर पर ही इतने बच्चे हुआ करते थे के खेलते खेलते समय का पता ही नहीं चल पाता था। उस समय हम पढ़ते कम खेलते ज़्यादा थे फिर भी अच्छे नंबरों से पास हो जाते थे। मोहल्ले में रोज़ तरह- तरह के खाने पीने की चीजें बेचने वाले आया करते थे सब वही अपनी अपनी पसंद की चीजों को लेकर खाते थे यही हमारी पार्टी हुआ करती थी। गर्मी के दिनों में स्कूल की छुट्टी होने का इंतजार रहता था के कब छुट्टी हो हम दिन भर खेले, नानी के यहाँ जाए और हमारी बुआएँ भी अपने बच्चों के साथ आए जब हमारे यहाँ सब आते थे तब सब मिलकर खूब मस्ती करते थे। हम सब दोपहर में सबके सोने का इंतजार करते थे और तरकीब सोचते थे कि कैसे सामने घर में लगे नींबू के पेड़ पर चड़ कर नींबू तोड़े कोई एक पेड़ पर चढ़ता था बाकी सब आस पास निगरानी करते थे अगर कोई आए तो सारे भाग जाते थे और जो पेड़ पर चढ़ा रहता थे उसे बहुत डाँट पढ़ती थी कभी छुप- छुपाए सब निकल भी आ जाते थे फिर हम उन नींबूओं का रस निकाल कर उसका शर्बत बनाकर पीते थे। नींबू शर्बत उसे ही मिलता था जो - जो साथ दिया हो अगर कोई और माँगे तो झगड़ा करते थे और कहते थे” तुमने हमारा साथ दिया क्या नींबू तोड़ने में हम तुम्हें शर्बत नहीं देंगे।" तब हमारे यहाँ आम पकाते थे और आम गिनकर रखते थे अब देखकर खाने की लालच आती थी फिर कोई न कोई एक-दो आम चुराकर खा लेते थे जब गिनती करते थे १-२ आम काम रहता था तो सब बच्चों से पूछा जाता था के किसने आम खाया है इस बार कोई नहीं बताता था के किसने खाया है क्योंकि ये काम तो सबसे छिप छिपाकर करते थे इसमें कोई टीम नहीं रहती थी बस कोई पकड़ा ना जाए तो एक-दूसरे का नाम बताते थे के उसी ने खाया है फिर इस बात पर लड़ायी हो जाती थी हम सब में।

           घर पर सारे बच्चे एक साथ सोया करते थे तब ज़्यादा कूलर नहीं हुआ करते थे और बिजली की खपत कम हो इसलिए सबको एक साथ सुलाते थे कुछ पलंग पर सोते थे कुछ ज़मीन पर यहाँ फिर झगड़ते थे के कूलर के सामने कौन सोएगा तो इसमें भी हम बारी बांध देते थे के हर दिन सबकी बारी आयें। कभी रात में लाइट चली जाए तो आँगन में जा कर अपना-अपना तकिया लेकर अपनी जगह घेर लेते थे। पहले हमें सिर्फ़ १-२ रुपए बस मिलते थे तब भी बहुत खुश हो जाते थे तब हमें हर चीज़ कीमती लगती थी उसे सम्भाल कर रखते थे। उस समय किसी एक बड़े बच्चे को नयी किताब मिलती थी फिर वही किताब बाकी के बच्चे हर साल पढ़ते थे। कपड़े , साइकिल, खिलौने सब मिलकर ही उपयोग करते ना कोई भेदभाव था ना ईर्ष्या बस ऐसे ही बचपन बीत गया कब बड़े हो गए पता ही ना चला और बचपन याद बन गया।


   “ आज के बच्चों को वो बचपन नहीं मिला जो हमें मिला ना मिल बाँट के खाना सिखा है, ना किसी चीज़ को सम्भाल कर रखने की आदत।”


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