कर्तव्य
कर्तव्य
आज नयी नवेली दुल्हन का घर में पहला दिन था। सब उसकी मुँहदिखायी के लिए बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे। दुल्हन को देख सब ऐसे ख़ुश हुए मानो चाँद ज़मीन पर आ गया हो , एकदम चमकते चेहरे के पीछे एक डर और झिझक भी हो रही थी। कितने अरमान लिए अपने घर को छोड़ किसी और घर को अपना बनाना काफ़ी मुश्किल रहता न -? पर धर्म तो यही है। “ डोली से आने के बाद, अर्थी से जाती है”-यही नियम और कर्तव्य है। अब शादी के बाद भला सब कर्तव्य बहु के होते है क्या ?- अब मन में बस यही था कि सबको ख़ुश रखना है सभी के प्रति अपने कर्तव्य और ज़िम्मेदारी निभानी है।
पहली रसोई में हलवा बनाकर सबको परोसा, सबको बहुत पसंद आया अब सारे काम ख़त्म कर अपने कमरे में गयी वहाँ अपने पति को ना पा कर थोड़ा उदास हो गयी फिर शाम होते ही नज़रें उनका इंतेज़ार करने लगी।
जैसे वो आए पानी का गिलास ले कर उनके पास गयी एक नज़र ऊपर उठा कर नहीं देखा मानो मैं वहाँ हूँ ही नहीं उनका ये बर्ताव मुझे अच्छा नहीं लगा और थोड़ा गला भर सा आया। रात को सब काम ख़त्म कर अपने कमरे में गयी वो सो चुके थे मैंने सोचा थक गए होंगे नहीं जगाती उनसे कल बात कर लूँगी।सुबह उठते ही रसोई के काम में लग गयी वो भी आए नाश्ता किए और दफ़्तर चल दिए इस बार फिर उन्होंने मेरी तरफ़ नहीं देखा मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा और ना ही कुछ समझ आ रहा था पूछूँ भी तो किससे फिर सोचा के आज शाम को बात करके देखती हूँ। शाम को फिर उन्होंने निहारा तक नहीं। अब तो जैसे ना काम करने का मन हो ना किसी से बात करने का जैसे- तैसे सब निपटा कर रात में कमरे में गयी देखा फिर सो गए है। इस बार बहुत ग़ुस्सा आया लगा अब बात ही नहीं करूँगी जब सामने से खुद नहीं करते। ऐसा करते एक हफ़्ता बीत गया कोई बातचीत नहीं हुई अब लगा के बात कुछ और है वक़्त रहते ही सम्भाल लेना ठीक रहेगा सोचा आज रात कुछ भी हो बात करूँगी।
इस बार फिर वही सब हुआ पहले ही सो चुके थे मैंने उठाने की कोशिश की वो ना उठे फिर मैंने भी हार नहीं मानी कहा आज तो उठा कर रहूँगी इतनी बार उठाने के बाद कहा के “ सुबह बात करते है अभी मुझे नींद आ रही है सोने दो”। ज़्यादा कुछ बोल नहीं पायी नया रिश्ता था कही बात बन्ने से पहले बिगड़ ना जाए वो भी चुपचाप सो गयी सुबह जल्दी से काम खतम कर अपने कमरे में आयी और हिम्मत करके पूछा क्या बात है?- मुझसे कोई गलती हुई है क्या?, ना मुझसे बात कर रहे , ना मेरी तरफ़ देख रहे। तुम मुझसे कोई उम्मीद मत रखना मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता। ऐसा सुनते ही घबरा गयी और रोने लगी जैसे- तैसे खुद को सम्भाला। फिर क्या था लगा धीरे- धीरे सब ठीक हो जाएगा लेकिन यहाँ तो जैसे उम्मीद करना भी खुद को धोखा देने जैसा था ऐसा करते ३ महीने बीत गए ना कोई बातचीत ना प्यार, ना शिकायत और ना ही कोई उम्मीद। फिर सबने सवाल करने शुरू कर दिए ख़ुशख़बरी कब सुना रही हो? अब कैसे जवाब दु सबको के अभी तो हम ठीक से पति- पत्नी नहीं बन पाए है।
फिर एक दिन दुबारा बात करने की कोशिश की अंत में जवाब मिला की हमारे बीच कभी पति- पत्नी का रिश्ता नहीं बन पाएगा जो तुम चाहती हो वो कभी नहीं होगा अब इस बारे में कभी बात नहीं करनी मुझे अब फ़ैसला तुम्हारा है यहाँ रहना है या वापस जाना है। वो रात बहुत रोयी अगले दिन मायके जाने की तैयारी की सबने पूछा अचानक मायके कैसे जा रही कहा अब जवाब मैं नहीं दूँगी वो देंगे आपको और बिना कुछ कहे चले गयी वहाँ से। अब मायके में अचानक देख कर सवाल करने लगे के कैसे आयी हो बेटी बिना कोई ख़बर दिए? बस आप लोगों की याद आयी तो चली आयी मिलने अब इंतज़ार करने लगी कि शायद अब मेरी कमी का एहसास हो ओर लेने आए मुझे ऐसा देखते भी एक माह बीत गया अब यहाँ भी सवाल करने लगे के कोई लेवाने नहीं आया वहाँ से अब लगा के सबको सच बताने का वक्त आ गया हैं हिम्मत जुटा के बात बतायी तो कहा के ऐसा होता है तुम एक बार दुबारा कोशिश करो चीजें शायद बदल जाए और वैसे भी अब तुम्हारी जगह वहाँ है तुम्हारे ससुराल में बस इतना सुनते ही लगा के अब वहाँ चले जाना चाहिए। वहाँ पहुँचते ही सासु माँ ने टोका “आ गयी मायके से आराम करके”।- सबने मुझसे सिर्फ़ सवाल ही किए लेकिन किसी ने चेहरे पर उदासी नहीं देखी, किसी ने हँसी के पीछे का दर्द नहीं देखा।
अब लगा मुझे ही कुछ करना होगा ऐसे हार नहीं मान सकती बस फिर कोशिश में लग गयी के कैसे ख़ुश रखु उनको रोज़ उनके घर आने से पहले सज- संवर कर रहती हंसते हुए चेहरे से उनके सामने जाती पर उन पर मेरी किसी भी तरकीब का कोई असर नहीं था। अब तो मैं उनको बहुत उकसाने की भी कोशिश करने लगी ताकि वो मेरे नज़दीक आए लेकिन हर बार नाकामयाब रही। रोज़ सुबह शाम प्रार्थना करने लगी के सब ठीक हो जाए सबके कर्तव्य और ज़िम्मेदारी निभाने के साथ पत्नी का अधिकार भी पा सकूँ। अब बात बाहर भी जाने लगी के इनके बीच पति- पत्नी जैसा कुछ भी नहीं हैं। लोगों की बुरी नज़रों का भी सामना करना पढ़ता था। फिर पता करने कि कोशिश करने लगी कही उनको कोई और तो पसंद नहीं ?, किसी और को तो नहीं चाहते पर सब जगह से कोई ऐसी बात नहीं पता चली उनको किसी औरत पर आकर्षित होते नहीं देखा कभी अब बस सवाल ही रह गए थे मन में ऐसे रेहते भी सालो बीत गए कोई संतान नहीं हुई बस घर के बाक़ी बच्चों में मन लगाने की कोशिश करती रही बिना किसी शर्त और स्वार्थ के बहु का कर्तव्य निभाती रहीं।
उम्मीदों का भी साथ मानो छूट सा गया अब ना पत्नी का अधिकार मिल पाया और ना माँ बनने का सुख सिर्फ़ घर की बहु बन कर रह गयी। पति के साथ रिश्ता बस दुनिया को दिखाने का रह गया सिर्फ़ दैनिक ज़रूरतों के लिए बातचीत होती। अब वो बस भी पत्नी की दैनिक ज़रूरतों को पूरा करते ना कभी सीधे मुँह बात करते, ना आँख उठा कर उसकी तरफ़ देखते। अब तो ज़िंदगी उस मोड़ पर आ गयी जहां सिर्फ़ अकेले ही चलना है बस दूसरों के प्रति कर्तव्य निभाती रही जिनको ज़रूरत होती उन सब के किसी न किसी रूप में काम आती। कहने को तो उनकी कोई खुद की संतान नहीं थी लेकिन बाक़ी घर के बच्चों को इतना लाड से रखती थी इतना शायद कोई ना कर पाए और सारे बच्चे भी उनको बहुत प्यार करते और कहते है न- “ जहाँ निस्वार्थ भाव से प्यार हो , वहाँ कुछ प्राप्ति भी होती है”। देखने को चेहरे में अभी भी ख़ुशी झलकती है जैसे कोई दुःख जीवन में आया ही ना हो, एकदम सच्चाई और प्यार की मूरत हो।
“क्या कर्तव्य खुद की ख़ुशी से बढ़कर होता है ? ऐसे लोग कोई आम नहीं होते उनमें भगवान की अपार शक्ति होती है जो पूरी ज़िंदगी दूसरों के लिए जीते है हैं, बिना अपनी की परवाह किये।