हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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एक अनुभव यह भी

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31 अगस्त को मेरी सेवानिवृत्ति होनी थी । सुना था कि 6 माह पूर्व फॉर्म भरना है । बाबूजी को बुलाया और फॉर्म भरने को कहा । उसने कहा कि "नो डी ई , पी ई प्रमाण पत्र" साथ लगेगा । हमने कहा कि वह तो कार्मिक विभाग से लेना पड़ेगा । तो वह बोला "उसके बाद ही फॉर्म भरा जावेगा" । हमारे पास कोई विकल्प नहीं था । 

कार्मिक विभाग से संपर्क किया गया । वहां के कार्मिक ने कहा कि यह प्रमाण पत्र सेवानिवृत्ति तिथि से 15 दिन पूर्व ही मिलता है , उससे पहले नहीं । अब तो हमारे लिए कुछ काम बचा ही नहीं था । हम निश्चिंत हो गये और सोचा कि कार्मिक विभाग स्वयं यह प्रमाण पत्र तैयार कर मेल से भेज देगा । 

जब सेवानिवृत्ति में 10 दिन ही रह गये और वह प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं हुआ तो कार्मिक विभाग के संयुक्त सचिव से दूरभाष पर बात की गई और उनके हस्तक्षेप के उपरांत अगले दिन "नो डी ई नो पी इ प्रमाण पत्र" मिल गया । 

फिर बाबूजी को बुलवाया गया और पेंशन फॉर्म भरने के लिए कहा गया । बाबू कहने लगा 

"श्रीमान, अब फॉर्म ऑनलाइन भरा जाएगा ऑफलाइन नहीं" 

"क्यों , क्या हुआ" ? 

"ऐसे ही आदेश हैं श्रीमान" 

"तो ऑनलाइन भर दो" 

"आज तो मुझे कुछ अर्जेण्ट काम है, कल भर दूंगा" 

बाबुओं और बीवियों से कौन जीत सकता है भला ? मैं तो एक अदना सा आदमी हूं और बाबू एक भारी भरकम प्राणी होता है । उससे पार पाना आसान काम है क्या ? मन मसोस कर कल का इंतजार करने लगे । 

अगले दिन बाबू खुद ही आ गया और फॉर्म भर दिया । अब हम निश्चिंत हो गये थे कि हमारा काम हो गया है और अब हमारी पेंशन हमारे खाते में तनख्वाह की तरह स्वत : जमा हो जायेगी । हमारी सेवानिवृत्ति अपने निर्धारित समय अर्थात 31 अगस्त को हो गई । सेवानिवृत्ति अवश्यंभावी है , मौत की तरह । अपने नियत समय पर हो जाती है । कुछ करना नहीं पड़ता । 

सेवानिवृत्ति के समय अपने संबोधन में हमारे बॉस ने सब अधिकारियों और कर्मचारियों को सख्त हिदायत दी कि मेरा पेंशन केस तुरंत बनकर चला जाना चाहिए । उनकी अपने मातहतों के प्रति सहृदयता और महानता से हम गदगद हो गये । 

करीब 15 दिन बाद भी जब कोई कागज पत्र हमें नहीं मिला तो हमने अपने विभाग राजस्व मंडल में संपर्क किया । वहां से बड़ा अजीब जवाब दिया गया "पेंशन के सॉफ्टवेयर में स्वीकृत करने वाले अधिकारी के रूप में लेखाधिकारी को अधिकृत कर दिया गया था जबकि "रजिस्ट्रार" होना चाहिए था । वह फॉर्म लेखाधिकारी के पास ही पड़ा है अब तक" । 

बड़ी अजीब स्थिति थी । किसी को कोई परवाह नहीं थी । और हो भी क्यों ? उनकी तनख्वाह थोड़ी रुक रही थी , रुक तो मेरी पेंशन रही थी । सरकारी विभागों की जैसी कार्यप्रणाली होती है अटकाने , लटकाने और टरकाने की , वैसी ही यहां भी साफ दिखाई रही थी । मैंने मन में सोचा कि जो लोग अपने विभाग के अधिकारी / कर्मचारी के प्रति इतने असंवेदनशील हैं तो जनता के प्रति कितने संवेदनशील होंगे ? कुछ कहने की जरूरत नहीं थी, हकीकत सामने थी । 

लेखाधिकारी से कहा गया कि जिस काम के लिए आप अधिकृत नहीं हैं उसे अपने पास 15 दिनों से रोककर क्यों बैठे हैं ? वापस क्यों नहीं भेज देते" ? 

एक सरकारी कर्मचारी के रटे रटाये जवाब की तरह वे तुरंत बोले "आपको पता है कि मेरे पास कितना काम है" ? 

मैं कहना तो चाहता था कि हां पता है । दिन में दस फाइलें भी नहीं आती हैं आपके पास । मगर मुझे पता था कि इन "अटकाउण्टेण्टों" से उलझने का कोई सकारात्मक परिणाम आने के बजाय नकारात्मक परिणाम होने की संभावनाएं अधिक हैं इसलिए ऐसे मौकों पर चुप्पी साध लेना ही बुद्धिमानी है । 

जैसे तैसे वह फॉर्म वहीं आ गया जहां से चला था । अब एक नयी समस्या बताई गई । ऑनलाइन सॉफ्टवेयर में जो स्केल भरी गई थी वह मेरी स्केल से मैच नहीं खा रही थी । राजस्व मंडल के RAS कैडर के सदस्यों को IAS सुपरटाइम स्केल मिलता है । सॉफ्टवेयर में RAS कैडर की स्केल ही रखी गई थी IAS सुपरटाइम की नहीं । बिना स्केल भरे फॉर्म आगे फॉरवर्ड नहीं हो सकता था । सुंई यहीं पर अटक गई थी । सॉफ्टवेयर में एक नया स्लेब, IAS सुपरटाइम स्केल और जोड़ना चाहिए यह पत्र राजस्व मंडल से पेंशन विभाग को भेजा गया । 15 -20 दिन तक वह कागज वहीं पड़ा रहा । निदेशक से फोन पर बात करनी चाही लेकिन वो फोन उठाते नहीं हैं । आखिर इतने बड़े अधिकारी जो ठहरे । पेंशनर्स जैसे टटपूंजियों के फोन उठाना उनके लिए लज्जा की बात है । वैसे उससे भी क्या गिला ? जब राजस्व मंडल का रजिस्ट्रार ही सदस्यों के फोन नहीं उठाये तो निदेशक, पेंशन विभाग का फोन नहीं उठाना तो बनता है ना । वैसे भी सरकार मोबाइल फोन और इंटरनेट का हर महीने 2500 रुपये अधिकारियों को इसलिए थोडी ना देती है कि वे किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे लोगों से बात करें ? अपने बॉस से बात करने के लिए इतना भुगतान करती है सरकार । आम आदमी के लिए लैंडलाइन फोन है ना । अब ये अलग बात है कि वह फोन कभी अटेंड ही नहीं होता । 

तो एक दिन मेहरबानी करके पेंशन वाले साहब ने फोन उठा ही लिया । जब बात बताई तो कहने लगे कि हम आपको IAS वाला सुपर टाइम स्केल कैसे दे दें ? हमने कहा कि आप नहीं सरकार दे रही है । सभी RAS को अब तक देते भी आए हैं । इस पर वे तपाक से बोले कि अगर पिछले वालों ने गलती कर दी है तो हम क्या करें ? हम तो नहीं करेंगे । हमने कहा कि बोर्ड के नियमों में लिखा है तो वे बोले नियम दिखाओ । 

हमने नियम दिखाये तो कहने लगे कि नियम गलत हैं । हमने कहा यही बात लिखकर राजस्व मंडल में वापस भेज दो । इस पर वे कहने लगे "पागल समझ रखा है क्या" ? 

मैं कैसे कहता कि समझने की जरूरत है क्या ? मगर चुप रहना ही ठीक होता है ऐसे समय । वे फिर बोले "आपके अकेले केस के लिए सॉफ्टवेयर बदल नहीं सकते हैं" । 

"कितने आदमी चाहिए सॉफ्टवेयर बदलने के लिए" ? 

जब पास में कोई जवाब नहीं हो तो ज्ञानी लोग मौन साध लेते हैं । पर इस मौन से मेरा काम तो बन नहीं रहा था इसलिए झख मारकर पूछना पड़ा 

"तो मेरे लिए क्या आदेश हैं भगवन" ? 

इससे उनका "ईगो" संतुष्ट हो गया तो वो बोले "आप ऑफलाइन ही भेज दो , हम यहां ओ के कर देंगे" 

अब राजस्व मंडल के पाले में गेंद फिर से आ गई । रजिस्ट्रार से बात करना बहुत टेढा काम था इसलिए AAO से कहकर ऑफलाइन फॉर्म भर दिया । ये उनकी महानता थी कि उन्होंने बाबूजी को मेरे घर भेज दिया । ऑफलाइन फॉर्म पेंशन विभाग भेज दिया गया । 15 दिन निकल गये कोई सूचना नहीं मिली । एक दिन मैं उधर से निकल रहा था तो सोचा कि पेंशन विभाग का "देवरा" ढोकते चलें । हम निदेशक के चैंबर में चले गये । 

संबंधित बाबू को बुलवाया तो पता चला कि ऑफलाइन वाला फॉर्म वापस राजस्व मंडल भेज दिया गया है । कारण पूछा तो बताया कि जब ऑनलाइन भर दिया है तो ऑफलाइन क्यों भरा ? 

जब बाबू से कहा कि निदेशक से तो पूछ लेते ? तो वह बोला "जरूरत ही नहीं थी" । 

अब क्या कहते बाबू को और क्या बोलते निदेशक महोदय को ? बस इतना ही बोल पाये "अब हम क्या करें" ? 

सरकार में रहते हुए लोगों की चमड़ी भी मोटी हो जाती है । पहली बात तो ये है कि वे अपनी गलती मानते ही नहीं और यदि मान भी लें तो लज्जित नहीं होते हैं । यह दुर्लभ गुण सरकारी लोगों में प्रचुरता से पाया जाता है । 

खैर , वापस राजस्व मंडल के बाबू से संपर्क किया और फिर से ऑफलाइन फॉर्म पेंशन विभाग भिजवाया । इस बार उन्होंने मेहरबानी कर दी और मेरा काम हो गया । अब ट्रेजरी , जलेबी चौक से काम होना था । 

हम ट्रेजरी पहुंचे । वहां हमसे एक फॉर्म भरवाया गया । संबंधित बाबू ने आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर रजिस्टर मेरे हाथ में पकड़ा दिया और कहा कि "साहब के पास ले जाओ" । 

मैं एकदम से चौंका । अब मुझे चपरासी भी बनना पड़ेगा क्या ? अब तक तो चपरासियों को आदेश देते आये थे अब चपरासी की तरह आदेश की पालना भी करनी थी । लेकिन वो कहावत है ना कि मरता क्या न करता ? अपने काम के लिए तो लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं , यहां तो चपरासी ही बनना पड़ रहा था । 

मुझे यह सौदा बुरा नहीं लगा । मैं उस रजिस्टर को लेकर ATO के पास चला गया । उसने उसे भलीभांति चैक किया और मुझे लौटाते हुए कहा 

"आपकी पेंशन जनवरी में मिलेगी" 

"इतना लेट" ? 

"यह तो जल्दी हो रहा है वरना पता नहीं कितनी देर लगती" ? 

धन्य हो प्रभु । सही है । बाबुओं के साम्राज्य में सेंधमारी करना आसान है क्या ? इंतजार के अलावा और क्या कर सकते हैं हम ? वही करते हैं । अब इंतजार है जनवरी के महीने का । देखते हैं कि क्या होता है जनवरी में ? 



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