Sangeeta Aggarwal

Others

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Sangeeta Aggarwal

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दूसरों की खुशी की वजह बने

दूसरों की खुशी की वजह बने

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शालू जल्दी चलो ना आज वैसे ही देर हो गई ऊपर से तुम इतनी देर लगा रही हो !" अंजलि अपने साथ काम करने वाली और अपनी दोस्त को बैग लगाते देख बोली।

" अरे भाई कर रही हूं तुम हमेशा हवा के घोड़े पर ही क्यों सवार रहती हो किसी से मिलने जाना होता है क्या ?" शालू हंस कर बोली।

" हां यार वो मेरा इंतजार कर रहे होते हैं !" अंजलि बोली।

" अच्छा जी ....कौन है वो ...जरा हमे भी तो पता लगे हमारी अंजलि का कौन इंतजार कर रहा होता है ?" शालू आंख मारते हुए बोली।

" चल आज तुझे भी मिलवा देती हूं उनसे जो मेरा इंतजार कर रहे होते हैं !" अंजलि शालू के साथ ऑफिस से निकलते हुए बोली।

" अरे ना बाबा ना मुझे कबाब में हड्डी नही बनना!" शालू बोली।

" अरे तू चल तो सही ..!" अंजलि उसका हाथ खींचते हुए बोली।

दोनों अपनी अपनी स्कूटी से चल दीं ....एक बिल्डिंग के बाहर अंजलि ने अपनी स्कूटी रोक दी उसकी देखा देख शालू भी रुक गई पर वो हैरान थी बहुत उस बिल्डिंग को देख ।

" अरे यहां कौन है जो तेरा इंतजार कर रहा होगा ?" अपनी जिज्ञासा के वशीभूत हो शालू ने पूछा।

" अरे आ ना अंदर ...!" अंजलि उसका हाथ पकड़ कर अंदर ले गईं।

दोस्तों आप सोच रहे होंगे ऐसी कौन सी जगह लेकर आई है अंजलि शालू को जो शालू इतनी ज्यादा हैरान है ....आपकी जिज्ञासा का भी अंत किए देते है ....ये जगह है एक वृद्धाश्रम जहां अंजलि शाम को ऑफिस छूटने के बाद आती है ...अब आपका सवाल होगा क्यों....? तो इसका जवाब आपको खुद अंजलि देगी ...आगे की कहानी में।

" काका लो आप सबकी दवाई ले आई मैं अभी चलो सभी उठो और बाहर आ जाओ !" अंजलि अंदर आकर बोली जहां बहुत सारे बुजुर्ग बैठे थे।

" अरे बेटा कितनी देर लगा दी आज तुमने हम तो इंतजार कर रहे थे कबसे !" एक काफी बुजुर्ग महिला बोली।

" हां बेटा तुम्हें तो पता है हमें तुम्हारी आदत हो गई है अब !" एक बुजुर्ग पुरुष बोले।

" काका काकी आज ऑफिस में देर हो गई उसके लिए माफी चाहती हूं अब चलो जल्दी से बाहर।" अंजलि बोली।

" अरे अंजलि बेटा आ गई तुम ...इन लोगों ने तो पूछ पूछ कर मेरा दिमाग खा लिया कि अंजलि बेटी कब आएगी अंजलि बेटी कब आएगी !" अंजलि सभी बुजुर्गों को लेकर बाहर आई तो एक अधेड़ पुरुष अंजलि को देख बोले जो वहां के संचालक थे।

जवाब में अंजलि मुस्कुरा दी। बाहर निकल कर अंजलि उन बुजुर्गों को सैर करवाने लगी। एक दो लोग लाचार थे जो खुद से नही चल पा रहे थे उन्हें अंजलि ने हाथ पकड़ कर चलाया। थोड़ी देर उसने उनमें से कुछ बुजुर्गों साथ कैरम खेला हंसी ठहाके का दौर भी चलता रहा। शालू भी उन लोगों के साथ खेल रही थी पर वो हैरान थी कि अंजलि रोज इन बुजुर्गों से मिलने क्यों आती है ....क्या इनसे अंजलि का कोई नाता है ? सवाल कई थे जवाब सिर्फ अंजलि के पास था इसलिए शालू ने वहां से निकलने तक इंतजार करने की सोची !

थोड़ी देर बाद अंजलि ने कल समय से आने के वादे के साथ वहां से विदा ली।

" अंजलि तू यहां रोज आती है?" बाहर निकलते ही शालू ने तुरंत पूछा क्योंकि अब उसके लिए और इंतजार मुश्किल था।

" हां मुझे पता है तुझे हैरानी हो रही है पर शालू अपने घर वालों से दूर ये लोग गम की परछाई में गुम रहते क्योंकि इनके बच्चों के पास इनके लिए वक्त नहीं ... मैंने दो साल पहले अपनी दादी को खोया था तब उनकी बरसी पर पापा यहां खाना देने आए थे तब मैं इन लोगों से पहली बार मिली थी और इनके चेहरे का दर्द देख इनसे बात करने से खुद को रोक नहीं पाई ! बस तबसे मुझे यहां आकर एक सुकून मिलता है क्योंकि मेरी वजह से ये खुश हो जाते है भले थोड़ी देर को ही सही!" अंजलि भी मानो शालू की जिज्ञासा को पूरी तरह शांत करना चाहती थी।

" पर अंजलि इनको खुशी देने के लिए तुझे रोज आने की क्या जरूरत है वैसे भी जब इनके बच्चों ने इन्हे ठुकरा दिया तो तू क्यों ?" शालू अभी भी हैरान थी।

" देख शालू मेरा ये मानना है क्यों न हम कुछ अलग करें लोगों को खुश रहने की सलाह ना देकर वजह बने ....तो बस मैं इनके खुश रहने की वजह बन रही हूं और यकीन मान ये मेरेभी खुश रहने की वजह बन चुके है इनके छोटे मोटे काम कर देती हूं कुछ लम्हे इनके साथ बिता लेती हूं तो ऐसा लगता है मुझे ईश्वर ने इसी लिए बनाया है !" अंजलि ने कहा।

" वाह अंजलि सच मैं तू मेरी हमउम्र है पर तेरी सोच मुझसे कितनी बड़ी है खैर चल घर चले अब !" शालू ने कहा और स्कूटी स्टार्ट कर दी।

अगले दिन शालू अंजलि से आधा घंटे पहले निकल गई थी ऑफिस से क्योंकि उसे जरूरी काम था तो अंजलि उसका और अपना काम पूरा कर वृद्धाश्रम पहुंची तो सुखद एहसास से भर उठी।

" शालू तू यहां ...और ये समोसे , जलेबी ?" आश्चर्यमिश्रित खुशी के साथ अंजलि ने पूछा।

" हां यार मैने सोचा इन सभी काका काकी के साथ एक समोसा जलेबी की पार्टी कर ली जाए देख सभी कितने खुश है ....वैसे भी मुझे किसी ने कहा था क्यों ना कुछ अलग करे लोगों को खुश रहने की सलाह ना दे वजह बने इसलिए मैं तुझे पहले निकल आई क्योंकि इनके साथ साथ तेरी भी थोड़ी सी खुशी की वजह बनना चाहती थी !" शालू ने आंख मारते हुए अंजलि को देखा तो अंजलि ने उसे गले लगा लिया।

" अंजलि बेटा देखो तुम्हारी दोस्त अब हमारी भी दोस्त बन गई है और बोल रही ये भी हमारे साथ खेलने आया करेगी !" तभी एक काका अंजलि से बोले।

अंजलि ने शालू की तरफ देखा तो उसने हां में सिर हिला दिया फिर दोनो ने सभी बुजुर्गों के साथ समोसे जलेबी का लुत्फ उठाया और खूब खेल खेले ।शालू और अंजलि के वापिस जाते वक्त सबकी आंखों में चमक थी क्योंकि सभी एक दूसरे की खुशियों की वजह जो बन गए थे।

दोस्तों इस खूबसूरत कहानी की सीख आप तक खुद पहुंच गई होगी इसलिए आज कोई सीख नही लिख रही बस आपसे एक विनम्र विनती है हो सके तो आप भी किसी के खुश रहने की वजह बनकर देखिए यकीन मानिए आपको खुद भी खुशी मिलेगी !


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