Shubhra Varshney

Children Stories Inspirational

5.0  

Shubhra Varshney

Children Stories Inspirational

दूसरा स्थान

दूसरा स्थान

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विद्यालय का नाम उन्होंने बार बार पढ़ा ।

हां यही तो बताया था उसने उस रोज।


घंटी बजाकर तुरंत स्टेनो नैना को आने को कहा।


अपनी 2 दिन बाद की दिनचर्या पूछते हुए उस रोज के शाम 4:00 बजे के बाद के सभी अप्वाइंटमेंट्स कैंसिल करके जीवन कला विद्यालय के वार्षिकोत्सव में जाने को कहा।


नैना आश्चर्य में पड़ गई।


सर को पहली बार ऐसा करते जो देख रही थी।


अविनाश जो अभी 2 माह पहले ही डीएम होकर यहां आए थे, अपने. काम के प्रति पूर्णता समर्पित और आवश्यक वह गंभीर कार्य को प्राथमिकता देने वाले अधिकारी थे।


और अविनाश तो जैसे कुछ और ही सोच कर मुस्कुरा रहे थे।

हफ्ते भर पहले विद्यालय का यही नाम तो बताया था राजीव ने।

राजीव नाम याद आते ही आ जाते थे बचपन के वह दिन जब पिताजी कह देते थे कि वह अपने मित्र राजीव के गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें।


राजीव था ही ऐसा।

कक्षा में प्रथम आना तो उसकी आदत हो गई थी जैसे। कक्षा से लेकर खेल के मैदान तक अविनाश को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ता।

दोस्ती पर ईर्ष्या हावी होती गई।


दोनों साथ आगे बढ़ते गए।

राजीव को परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण जल्दी शिक्षा समाप्त करनी पड़ी।


अविनाश ने मेहनत का हाथ जो थामा तो आईएएस परीक्षा में सफल होकर माने।


जब राजीव उनके सामने अपने स्थानांतरण की फाइल लेकर आया तो उसने जब अविनाश को सर कह कर संबोधित किया तो उन्हें लगा कि काश उस क्षण पिताजी वहां होते।


विद्यालय में जहां राजीव साधारण शिक्षक थे वही अविनाश मुख्य अतिथि थे।

आज अविनाश का मिजाज अलग था।


दर्प विवेक पर हावी था। खूब सम्मान जो हुआ था।


बिहार में आई बाढ़ के लिए प्रधानाचार्य के आग्रह पर अविनाश ने ₹10000 देने की घोषणा की।

तभी प्रधानाचार्य ने कहा कि ,"हमारे विद्यालय के एक शिक्षक की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। इन्होंने तो अपना पूरा वर्ष भर का वेतन दान कर दिया है। माननीय डीएम साहब इनका अभिनंदन करेंगे।"


अविनाश ने जब तालियों के शोर में मंच पर राजीव को आते देखा तो उन्हें लगा एक बार फिर राजीव ने उन्हें दूसरे स्थान पर धकेल दिया है।


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