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Vikas Sharma

Children Stories

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Vikas Sharma

Children Stories

दरिया खारी क्यूँ है ?

दरिया खारी क्यूँ है ?

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दरिया और दरिया की मौजे - बच्चो से लेकर बड़ो तक सभी को खूब भाती हैं, दरिया की बातें की इसी की तरह गहरी और विस्तार वाली है जो किनारे से हमारी कल्पनाओं से भी परे होती हैं। दरिया-सच्ची, प्रामाणिक, किवदंती, कपोल काल्पनिक, रहस्यमयी, जादू-टोना, ऐतिहासिक व रोमांचकारी कहानियों से भी इतनी ही भरी है जितनी पानी से। दरिया कितनी पुरानी है, कितना पानी है इसमें,  कितना गहरा और इनसे भी गहरा सवाल दरिया का पानी खारा क्यूँ है ?

ये बात उतनी पुरानी है जब समय को मापने के साधन भी नहीं बने थे न ही मानव को समझ थी की कभी इसकी जरूरत पड़ेगी। मानव आज की तरह सामाजिक कम था,  जल –हवा – आकाश का आज की भांति बंटवारा नहीं हुआ था, भाषा भी अपने शैशव काल में ही थी।

वो कहते हैं ना की हमारी सारी आवाज़े कभी खत्म ही नहीं होती, ये तो हवा के साथ घूमती रहती हैं, ये अलग बात है की हम उन्हे सुन नहीं पाते अपने इंसान होने के कारण, पर इंसान है भी तो बला की चीज जो खुद के वश की बात भी नहीं वो भी भयंकर अचरज वाली घटनाओं को अंजाम देता ही जा रहा है। ओखा के एक छोटे से गाँव की छोटी सी बस्ती के छोटे से घर में रहने वाले छोटी सी बच्ची ने कुछ ऐसा छोटा सा खोजा था या बनाया था, कुदरत ही जाने पर अपने कहानियों के सूनने के शौक –शौक में उसे वो ध्वनि खौजू यंत्र पा लिया था,  उसकी कहानियाँ असीम थी, जितनी असीम ये कुदरत। उसकी कहानियाँ पुरानी थी जितनी पुरानी ये कुदरत। उसकी कहानी अचंभे वाली थी जितनी अचंभे वाली ये कुदरत। उसकी कहानी ऐसे की बिना सिर –पैर वाली चंचल थीं जितनी बिना सिर –पैर की ये कुदरत, नहीं – नहीं इस बार कुदरत नहीं, जितनी बच्चों की बातें –खूब सरस,  खूब चंचल।

ध्वनि खोजू यंत्र मिल तो गया था पर कोई और ही जाने ये काम कैसे करता है, इधर –उधर,ऊपर –नीचे, उल्टा –पुलटा करते –करते ना जाने कैसे ये दरिया के खारा होने की कहानी शुरू हो गयी।

कहानी कहाँ तक पहुंची थी,  इतिहास में गोते खा रही है अभी बाहर निकाल लेते हैं -

रिन –चिन वो छोटी बच्ची नहीं है जिसे वो ध्वनि खोजू यंत्र मिला है,  रिन –चिन वो बच्ची है जो दरिया की मौज से खेल रही है, परिवार ऐसा कुछ शायद उस समय तक ईजाद नहीं हुआ था, अपने ही जैसे कुछ और प्राणियों के साथ खेलना – हर दम क्यूंकी कुछ और तब था ही नहीं – ना स्कूल,  ना ट्यूशन। खेलते –खेलते वो खो गई अपनी उस छोटी सी दुनिया से दूर जहां कुछ कम इंसान रहते थे। वो भी इंसानी मानस वाली छोरी थी, चलती गई –चलती गई पर दूर होती गई और बढ़ती जा रही थी एक अंजान सी दुनिया की तरफ जहां कोई इंसान जैसी हस्ती नहीं रहती थी। कुदरत के पालने में झूलती वो एक अजीब रोमांचकारी दुनिया में जा पहुंची। जिनती वो अनोखा महसूस कर रही थी इतना ही वो अनोखी दुनिया इस बच्ची को देखकर। रिन - चिन ने वो देखा जो उसने अभी तक नहीं देखा था, ना सुना था उसकी कल्पनाओं से परे था। पहाड़ –बड़ा सा पहाड़ हिला और अपनी जगह से दूसरी जगह पहुंचा कुछ शोर हुआ जैसे वो पहाड़ कुछ बोल रहा हो पर क्या ये तो रिन चिन को खबर ना पड़ी, कुदरत ही जाने। वो कुछ देर शांत रहकर रिन चिन की ओर बढ़ चला।रिन –चिन आगे –आगे वो पीछे – पीछे, वो पहाड़ जाने क्या –क्या चिल्ला रहा था पर कौन जाने, कुदरत ही जाने।

रिन – चिन नन्ही सी जान रोने लगी,  आंखे बंद जब खुली तो चारो तरफ पहाड़ ही पहाड़। इतना तो रिन चिन को समझ आया की ये पहाड़ उसका बुरा तो नहीं चाहता है, उससे कुछ कहना चाहता है –रिन चिन शांत हो गई, और पहाड़ को घूरने लगी, पहाड़ रिन चिन से – रिन चिन पहाड़ से कुछ –कुछ कहने लगे, क्या कहने लगे कौन जाने – कुदरत ही जाने।

 कुदरत का ही करिश्मा हुआ की रिन –चिन पहाड़ से, पहाड़ रिन –चिन से बाते करने लगे एक दूसरे को समझने लगे, हाँ थोड़ा समय बिताया साथ में और सारे –सारे दिन किया एक ही काम बातें करने का, इतनी सारी बातें की रिन –चिन भूल गई अपनी दुनिया को,  कुछ वर्ष बीत चुके थे रिन –चिन को बातों ही बातों में अपने जैसे लोगों की याद आई, वो करने लगी ज़िद अपने लोक जाने को,  पहाड़ को कुछ समझ ना आया की अचानक कल तक बातों में रमने वाली छोरी आज इतना हैरान क्यूँ कर रही है ?

पहाड़ को दोस्ती वाली इंसानी फीलिंग होने लगी थी, उसे ये पसंद नहीं आ रहा था की रिन –चिन उसे छोड़कर जाये, रिन –चिन ने भी इस दरम्यान पहाड़ जैसे वादे कर दिये थे, बिना सोचे –समझे की वादे पूरे भी कर पायगी या नहीं। अब पहाड़ रिन –चिन हो चला था मतलब इंसानी सा और रिन –चिन पहाड़ हो चली थी मतलब दोस्ती से दूर। रिन –चिन मन में ठान चुकी थी,जाना है तो जाना है उसे किसी की परवाह नहीं थी,  पहाड़ को खुद पर पछतावा हो रहा था क्यूँ इस बच्ची की बातों में आ गया, अपनी दोस्ती के लिए अपने वजूद पहाड़पन को ताक पर रख दिया। पहाड़ की आंखे नम और जिगर गुस्से से भर गया,  पहाड़ ने अपना दिल खोल के रख दिया और रोते –रोते कहा – तुम इंसान,  पिद्दी से, पिद्दी से ही रहोगे, तुम्हारा कद घटता ही जाएगा, तुमने कभी सोचा न होगा क्यूँ?

मैं पहाड़ अपनी बात से नहीं डिगता, मेरा कद ऐसे ही बढ़ता जाएगा, दोस्ती की कदर न करना तुम्हे बिल्कुल भी नहीं भाएगा,  मैं पहाड़ होकर जितना दोस्ती को समझा की दोस्त को जब तुम्हारी जरूरत हो तो उसे छोड़कर कभी मत जाओ, पर तुम इंसान होकर इसे भूल गई, दोस्ती को भूल गई,  अब ये पहाड़ रोएगा, और खूब रोएगा – और मेरे आँसू बढ़ते जायेंगे, जब –जब तुम छोटे कद वाले इंसान दोस्ती का खोटा करेंगे, दोस्त को धोखा देंगे, मैं रोता रहूँगा और अपने खारे आँसू बहाता रहूँगा, मैंने तुम्हारे सारे रिश्तो में से दोस्ती को चुना और मुझे इसी ने ठगा अब जब भी कहीं भी इंसान दोस्त के साथ बेईमानी करेगा, मेरे आँसू बढ़ते जाएंगे .....बहते जाएंगे ......बहते जाएँगे।

रिन –चिन स्तब्ध हो सब सुनती गई,  उसके दिमाग में पहाड़ सी हलचल मची थी, क्या करे क्या ना करे ! वो भी रोई खूब सारा उस दिन पर भाग आई अपनी ही दुनिया में, जाने कैसे रास्ता पा गई, कौन जाने –कुदरत ही जाने। इंसानी मानस वाली थी, ठान लिया था रास्ता तो मिलना ही था,  पर पहाड़ रोता रहा और रो रहा है तब से,  जब भी इंसान खोटी करता है दोस्ती को, पहाड़ रोता रहता है,  समय के साथ –साथ इंसान आगे बढ़ता गया और दोस्ती को पीछे करता गया,पहाड़ के खारे आँसू से धरती का अधिकतर पानी भी खारा हो गया है,  जिसे अब हम सागर, दरिया और न जाने कितने नामों से बुलाते हैं। बचा साफ पानी भी खारा हो जाएगा अगर हम ऐसे ही दोस्ती को खोटी करते रहे।

खोजू यंत्र की और कहानी सुनने के लिए बताएं जरूर,  पुराना है बहुत ओछी आवाज सुन ना पाएगा।


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