धनसुख राम और मनसुख राम
धनसुख राम और मनसुख राम
एक थे धनसुख राम ,जिनके पास माया इतनी कि लुटाए न लुटे ।मोटर गाड़ी ,बंगला ,बैंक-बैलेंस सब कुछ इतना बढ़िया कि लक्ष्मी की चमक से कोई कोना खाली नहीं ।धनसुख राम को कुछ सोचना नहीं था बस कार्य को अंजाम देना होता था।
मगर इतना सब कुछ होते हुए भी उनको यह बहुत गहरा दुख था कि उनका कोई परिवार नहीं है। न बीवी न बच्चे न माँ ,न बाबू जी और नहीं कोई भाई-बहन ।
उधर दूसरी तरफ एक था मनसुख राम जो संतुष्ट तो था ,मगर भूख लगते ही बेहाल हो जाते था ।माँ उसे काम पर लगाना चाहती थी और वे पढ़ना चाहता था।मनसुख राम को काम न करना पड़े,इसलिए छिप जाता था,क्योंकि वो स्वभाव से थोड़ा आलसी था ।माँ ने आज उसे पकड़ लिया,वो अनाज बेचने नहीं गया था। माँ ने उसे एकदम घर के आगे वाले कमरे में भेज दिया और तभी मनसुखराम की मुलाकात धनसुख राम से हो जाती है ।मनसुख राम अपने सारे दर्द को धनसुख राम के आगे रखता है। धनसुख राम उसकी बातों से बहुत प्रभावित होते हैं और उसे अपने यहाँ काम पर रखने का निमंत्रण देते हैं। निमंत्रण में यही था कि उसे आगे की पढ़ाई करनी है और वो भी उसका बेटा बनकर।
