V. Aaradhyaa

Children Stories Classics Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Children Stories Classics Inspirational

देशी फूड से बनाओ मूड

देशी फूड से बनाओ मूड

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" अमन ! ज़रा कुछ पैसे मेरे अकाउंट में डाल दो मैं मिंटू और मिन्नी के साथ शॉपिंग करने आई थी और देखो ना मेरे सारे पैसे खत्म हो गए । मेरा कार्ड डिक्लाइन हो रहा है!"

"ओह ... सुनीति ! तुमसे कितनी बार कहा है कि थोड़ा किफायत से चला करो। बजट देखकर चला करो। अभी तो मेरे कार्ड में बैलेंस भी कम है। तुमलोग अभी हो कहां?"

अमन ने थोड़ा खिझकर कहा ।

तो सुनीति ने बताया कि,"सॉरी अमन ! आज हमारा ऐसा कोई प्लान नहीं था । वह तो आज मिंटू को क्लास में अपनी मैम से डांट पड़ी और उसके मैथ्स में मार्क्स भी कम आए थे तो उसका मूड ठीक करने के लिए हम लोग मॉल चले आए थे। सोचा था कि उसे कुछ अच्छा सा उसे खिलाएंगे तो उसका मूड अच्छा हो जाएगा । जब बच्चों का मूड खराब होता है तब मैं उनको उनके पसंद का इटालियन या फिर कभी कभी चाइनीस खिला देती हूं और दोनों का मूड बिल्कुल ठीक हो जाता है। आज भी मैं इसलिए बच्चों को लेकर यहां आ गई क्योंकि मैंने खाने में कोई खास टेस्टी चीज नहीं बनाई थी वही रोज की दाल और सब्जी थी इसलिए मिंटू का तो मूड और भी खराब हो गया। वैसे अभी हम लोग फूड ज्वाइंट पर हैं!"

बोलते हुए सुनीति की आवाज में एक हिचकिचाहट थी। और उसे इस तरह से बार-बार अमन से पैसे मांगना बुरा भी लगता था। लेकिन वह अगले ही पल सोचती कि वह अमन की पत्नी है और यह उसका अधिकार है। उसे उससे पैसे मांगने में शर्म और झिझक क्यों करना?

दरअसल अक्सर अमन पैसे को लेकर सुनीति से किच-किच करता था। और हमेशा उसे किफायत से चलने के लिए कहता था। मध्यमवर्गीय परिवार में जैसा होता है ...वैसा ही उनके घर भी होता था। कभी खर्च इतना ज्यादा हो जाता था कि महीने की बीस तारीख आते आते ही हाथ तंग होने लग जाते थे। कभी तीज त्यौहार में तो हालत ही खस्ता हो जाती थी। और अगर मेहमान आ जाएं तब तो और भी बुरा हाल होता था। फिर बजट संभालते संभालते सुनीति को अपने बहुत सारे खर्च में कटौती करनी पड़ जाती थी।

आज अमन भी आफिस से कुछ जल्दी निकल आया था।जब उसने पूछा कि सुनीति और बच्चे अभी कहां हैं? तो पता चला कि वह उसी मेट्रो स्टेशन के पास वाले मॉल में है जहां अभी अमन पहुंचने वाला था।अमन ने कहा,

"मैं आज ज़रा जल्दी ऑफिस से घर जा रहा था। तुमलोग यहां आ रहे थे तो मुझे बताना पहले चाहिए था। खैर मैं अभी तुरंत कुछ मिनटों के अंदर वहां पहुंच जाऊंगा तुम लोग वहीं रहना। फिर साथ साथ घर चलेंगे!"

सुनीति समझ गई कि ...अमन ऐसा क्यों कह रहा है। दरअसल इस मेट्रो स्टेशन से घर तक जाने के लिए ऑटो में जाना पड़ता था। और अमन सोच रहा होगा कि वैसे भी सुनीति ऑटो करके घर तक जाएगी। तो अमन भी उनके साथ हो लेगा तो कुछ पैसे बच जाएंगे।

"ओह...हद हो गई कंजूसी की । ये अमन भी ना हमेशा कंजूसी ही करता रहता है!"सुनीति मन ही मन में बुदबुदाई।

इधर अमन सोच रहा था कि,आज वह सुनीति और बच्चों को समझाएगा कि इस तरह बाहर का खाना कुछ समय के लिए खुशी दे सकता है, लेकिन एक तो यह हेल्थ के लिए भी अच्छा नहीं है । और इन खर्चों से बजट भी बहुत खराब हो जाता है।

बहरहाल...जब वह मॉल पहुंचा तो बच्चे उसे देखकर बहुत खुश हो गए और उसे भी इटालियन खाने का आग्रह करने लगे। पर अमल ने कुछ नहीं खाया। वैसे उसे भूख भी लगी थी। लेकिन उसने सोचा कि अगर मैं इन्हें समझाना चाहता हूं तो पहले उन्हें बताना पड़ेगा कि हमेशा बाहर का खाना देखकर लालच करना सेहत के लिए अच्छा नहीं। यह भी बताना चाहता था कि ऐसी क्रेविंग को कैसे कंट्रोल किया जाता है और घर आकर हेल्दी खाना खाना चाहिए।

इसलिए बच्चों के आग्रह को बिल्कुल मना करते हुए उसे बुरा तो लग रहा था। इसलिए उनका मन रखने के लिए उसने लेमन सोडा का ऑर्डर कर दिया।

जरा से ग्लास में सजाधजाकर लेमन वाटर आ तो गया लेकिन उसका बिल पे करते हुए अमन की आंखें बड़ी हो गई। क्योंकि उतने थोड़े से पेय पदार्थ का ढाई सौ रुपया.…मतलब अमन के दो दिन के ऑफिस आने जाने का खर्चा इसमें से निकल सकता था।उस दिन घर आकर भी अमन थोड़ा शांत था ... किसी गहरी सोच में डूबा हुआ। यह बात सुनीति ने भी गौर किया था इसलिए...

वह जब रात में सोने के लिए आई तो

अमन को दूध का ग्लास पकड़ते हुए पूछ ही लिया ,

"तुम आज बड़े चुप-चुप से हो ? क्या बात है?"

अमन जैसे इसी प्रश्न की प्रतीक्षा कर रहा था। उसने सुनीति को बताया कि,

"इन दिनों उसने कितना और किस किस चीज़ के लिए कहां कहां से लोन लिया हुआ है। और अभी खर्चे को कन्ट्रोल करने की कितनी जरूरत है। घर का बजट खराब होगा तो बाहर भी खर्चे ज्यादा होंगे। और इस तरह बाहर के खाने से तबियत खराब हो तो डॉक्टर का खर्चा अलग और बच्चों के स्कूल भी एब्सेंट करना पड़ सकता है। तमाम चीजें सिर्फ इस बात से जुड़ी है कि खानपान अच्छा हो और घर के बजट के साथ साथ रसोई के बजट का भी ध्यान रखा जाए।

अमन की बातें सुनकर सुनीति उसकी परेशानी समझ रही थी। और उसे यह भी एहसास हो रहा था कि अमन कितनी मेहनत कर रहा है और कितनी मुश्किल से पैसे बचा बचा कर घर जाकर चलाने की कोशिश कर रहा है। और इधर सुनिति अक्सर शॉपिंग में और बच्चों को बाहर का खाना खिलाने में एक्स्ट्रा खर्च कर देती थी। उसे लगता था कि इससे बच्चों के लिए खुशियां मिल जाएंगी। और वैसे बच्चे थोड़ी देर के लिए खुश भी हो जाते थे और बार-बार अपनी मम्मी को कहते कि...." मम्मी आप कितनी अच्छी हो"

लेकिन असली खुशियां तो घर परिवार के साथ मिलकर खाने-पीने और दुख सुख बांटने में है।

अब सोने की समझ चुकी थी और वह अपने बजट को संतुलित करने की कोशिश कर रही थी वैसे वैसे ही पता था कि एकदम से चमत्कार नहीं होगा इसलिए धीरे-धीरे उसने घर पर ही चाइनीस इटालियन कॉन्टिनेंटल खाना बनाने की कोशिश करने लगी थी और उसे बहुत सजाकर परोसती तो दोनों बच्चे देख कर खुश हो जाते।

और तो और...अब तो अमन भी उनके साथ खाने में शामिल हो गया था।

गर्मी की छुट्टियों में जब बच्चों के दादा-दादी आए तो उन्होंने भी हल्का-हल्का क्रीम और खुब सारी सब्जियों वाला कृस्पी पिज्जा बड़े शौक से खाया।

इस तरह से सुनीति ने समझदारी से घर का बजट और रसोई का बजट संतुलित करने में बहुत कोशिश की है और धीरे-धीरे उसे सफलता भी मिलने लगी थी।

उसने कुछ अच्छे अच्छे क्रॉकरी और कीचन एक्सेसरीज खरीदे। रसोई को भी एक अदद कमरा समझकर उसकी थोड़ी सजावट की ।डाइनिंग टेबल को भी थोड़ा सा फेसिनेटिंग बना दिया।

और ... अब जब वह प्लेट में काफी सुंदर तरीके से सजाकर घर का खाना लेकर आती तो बच्चों को एक तरह से मजा आ जाता था। स्वाद और सेहत के साथ माहौल भी बहुत अच्छा हो जाता था।

अब हमारी भी उनके साथ थाने में शामिल होता था नहीं तो बाहर का खाना बिल्कुल नहीं खाता था।

अब जब भी किसी का मूड खराब होता तो आपस में खाते हुए बोल पड़ते...

अब भूल जाओ फास्ट फूड ,

देशी खाने से बनाओ मूड !

अमन की थोड़ी सी समझदारी और सुनीति की किफायत से घर का बजट तो संतुलित हो ही गया था। साथ ही अब पूरा घर एक साथ खाता पीता हंसता खेलता बिल्कुल खुश रहने लगा था।

ऐसा नहीं था कि ….. अब वह बाहर का खाना नहीं खाते थे। किसी के जन्मदिन पर एनिवर्सरी पर या किसी खास दिन सब जब घूमने जाते तो अपनी पसंद का बाहर का खाना भी खाते। कभी-कभी घर पर भी ऑर्डर करते थे। लेकिन उन्हें घर के खाने में भी अब मजा आने लगा था।

और जब बाहर जाते तो पूरे परिवार के साथ खाना-पीना एक तरह से एक उत्सव की तरह लगता था।


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