डेथ सटिफिकेट
डेथ सटिफिकेट
अनिल रिक्शा चलाता और अपने परिवार का पेट पालता । उसकी पत्नी रेखा भी काम करती और घर की जिम्मेदारियों को उठाने में अनिल का साथ देती । उसने सिलाई का काम शुरू किया ,जिससे दोनों अपने बेटे राहुल को पढ़ा लिखा सकें।दोनों का यही सपना था कि हम दोनों अनपढ़ हैं मगर अपने बेटे को अच्छे स्कूल मे पढ़ा लिखा कर बड़ा इंसान बनाएंगे। रेखा आसपास की औरतों के कपड़े इतनी सफाई से सिलती कि लोगों को लगता इतना सुंदर सिलाई तो कोई बुटीक वाली भी नहीं करेगी ।
अनिल पूरे दिन मेहनत करके दो सौ रूपये ही कमा पाता ।
रेखा ने उससे कभी कोई शिकायत नहीं की ।गर्मियां खूब जोर शोर से पड़ रही थी । शाम होते होते राहुल बच्चों के साथ बाहर खेलने लगा। खेल कर आया तो माँ ने बड़े प्यार से रोटी खिलाई ।
राहुल अभी थोड़ा थोड़ा ही बोलता था। उसकी प्यारी प्यारी बातें सबको मंत्र मुक्त कर जाती थी ।
दो साल का था राहुल। सवेरे रेखा जब सोकर उठी तो उसने देखा राहुल बुखार से तप रहा था । उसने अनिल को बताया। अनिल बोला "अरे ज्यादा खेला होगा धूप में कोई बात नहीं दवाई दे दो ठीक हो जाएगा"।
रेखा भी अपने घर के काम धाम में लगी रही। चिंता होने पर देखा के राहुल आज सोकर नहीं उठा , उसका शरीर तपता ही जा रहा था । रेखा ने पड़ोस की अम्मा से कहा " अम्मा देखो ना कितना तेज बुखार है राहुल को।"
अम्मा बोली "अरे दवाई दो इसको लू लग गई प्याज का रस लू दूर कर देता है वह दे इसे।"
लग गई रेखा सारे जतन करने ,मगर बुखार उतरता ही न था।
रात को जब अनिल घर आया तो रेखा ने उसे पूरे दिन की बात बताई कि कैसे राहुल का बुखार उतरने में नहीं आ रहा है ।
दोनों ही बहुत चिंतित थे कि उसे लू कैसे लग गई ? कुछ सूझता ही नहीं था के, शांत रहे , क्या करें कया न करें।
अनिल सुबह होते ही घर के पास के एक वैध जी के पास गया । वैध जी ने कुछ दवाइयों की पुड़ियाबबनाकर दी और बोले -
"बच्चा ठीक हो जाएगा, लो पानी के साथ तीन पुड़िया घोलकर पिला देना। अब कहीं मत जाना " घर पर आराम कराओ।
मगर राहुल का बुखार कही नहीं उतरा । अब अनिल के दोस्त ने उसे सरकारी अस्पताल के बारे में बताया। अनिल राहुल को शहर के सरकारी अस्पताल में लेकर गया।अस्पताल वालो ने राहुल को देख अस्पताल में भर्ती कर लिया।
वहां उसकी स्थिति नाजुक बताई गई , सारी जांच करने के बाद पता चला राहुल को डेंगू हो गया था।
अनिल और रेखा दोनों ही बहुत परेशान थे डॉक्टर ने बताया राहुल की हालत अच्छी नहीं है दोनों को भगवान से प्रार्थना करने को कहा।
दोनों अस्पताल के कमरे के बाहर हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करने लगे ।
अगले दिन सुबह से राहुल के कमरे में कोई डॉक्टर बाहर आता तो, कोई अंदर जाता , क्या हो रहा है कोई ना बताता। बाहर से देखने पर ऐसा लगता कि राहुल को डाक्टर कभी ऑक्सीजन देते ,कुछ लगा दे ,तो कभी छाती में कोई करंट देते ,कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अनिल और रेखा दोनों ये देख कर बहुत परेशान थे।
फिर अचानक डॉक्टर बाहर निकला और बोला "माफ करना भाई हम बच्चे को बचा नहीं पाए । "
अनिल और रेखा की तो जैसे दुनिया ही लुट गई ,दोनों का रो रो कर बुरा हाल था। अनिल रेखा को संभालता , दोनों ने आज अपना बच्चा खो दिया ।
अनिल जब राहुल का पार्थिव शरीर अस्पताल से मांगने गया तो उसे बोला गया कि राहुल की डेथ का सर्टिफिकेट जमा कराकर बॉडी ले जा सकते हो।
अनिल लोगों को अपनी परिस्थिती बताता मगर सरकारी काम है करना तो पड़ेगा कह कर लोग अपना पलला झाड़ लेते।
अनिल बेचारा कभी इस काउंटर पर जाता तो कभी दूसरे पर।
दुखों का पहाड़ तो पहले ही उसके ऊपर पड़ा था अब यह नई मुसीबत ,वह न जाने कैसे इन सब मुश्किलों का सामना कर रहा था।
शाम तक जैसे- तैसे राहुल का डेथ सर्टिफिकेट बना और कागजी कार्रवाई के बाद दोनों को उनके बेटे का पार्थिव शरीर मिला।