हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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डायरी जून 2022

डायरी जून 2022

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खानदानों के दिन लदना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत 


डायरी सखि,


 देश में इस समय बड़ी उथल पुथल मच रही है । ऐसा लग रहा जैसे एक बार फिर से समुद्र मंथन हो रहा है । सत्ता रूपी अमृत पाने के लिए फिर से "देवता" और "दानवों" में युद्ध हो रहा है । अब मुझसे यह मत पूछना सखि कि देवता कौन हैं और दानव कौन हैं ? तुम अच्छी तरह से जानती हो सखि कि मैं किनकी बात कर रहा हूं । 

देश भले ही 1947 में आजाद हो गया था । मगर जब यह देश आजाद हुआ था तब इस देश में छोटी बड़ी करीब 600 रियायत थीं । यानि 600 राजा राज कर रहे थे इस देश में । कुछ नये राजा पैदा हो रहे थे ।  


इस देश का इतिहास बहुत पुराना है, सखि । अगर हम रामायण और महाभारत काल को छोड़ भी दें तो सबसे प्राचीन शासन व्यवस्थाओं में 16 महाजनपद आते हैं । इनमें अकेले लिच्छवी गणराज्य में "लोकतांत्रिक" व्यवस्था थी शेष में "राजशाही" व्यवस्था थी । यानि राजा का बेटा ही राजा होगा , ऐसी व्यवस्था थी । मगध का "नंद वंश" विख्यात है इतिहास में जिसे चाणक्य नीति से चंद्रगुप्त मौर्य ने ध्वस्त किया था और मौर्य वंश की स्थापना की थी । यह लगभग 300 ईसा पूर्व की बात है सखि ।


उसके बाद तो सखि , शुंग वंश , कुषाण वंश, सातवाहन, गुप्त वंश, वर्धन वंश , चोल, चालुक्य, पल्लव, पाल वंश वगैरह हुए । सन 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध में सम्राट पृथ्वीराज चव्हाण की मोहम्मद गोरी से हुई हार ने भारत पर इस्लामवादियों का प्रभुत्व करा दिया और फिर एक सिलसिला चला लंबे खानदानों का । जिसमें गुलाम वंश , सैयद वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, लोदी वंश आदि प्रमुख रहे । 


बाबर के 1526 में भारत पर आक्रमण से भारत में मुगल काल प्रारंभ हुआ और मुगल वंश की नींव पड़ी जो सन 1857 तक चला जब भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ था ।


सखि, एक राज की बात बताऊं कि सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को अंग्रेज "गदर" यानि विद्रोह कहते थे और वामपंथी इतिहासकार भी इसे "गदर" ही कहते आए थे । लेकिन इसे सर्वप्रथम "भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम" नाम दिया था वीर विनायक दामोदर सावरकर ने । उनकी लिखी इसी नाम से पुस्तक पढना कभी, तब हकीकत पता चलेगी । वरना तो इन वामपंथियों ने इतिहास के नाम पर कपोल कल्पित कथाऐं ही सुनाई हैं अब तक । 


मेरा कहने का आशय इतना ही है सखि कि इस देश पर राजाओं और सुल्तानों ने सदियों से राज किया है । इसलिए लोग भी इस सामंतवादी व्यवस्था के इतने आदी हो गये हैं कि सन 1950 में संविधान बनने के बाद भी जनता "वंशवाद" को ही चुनती चली गई । आजाद भारत में नये वंश पैदा हो गए जो यह समझने लगे थे कि इस देश पर राज करना उनका "मौलिक अधिकार" है । ऐसे "खानदानी" लोगों को तुम जानती ही हो सखि , मुझे यहां पर लिखने की आवश्यकता नहीं है । 

जब किसी खानदान के दिमाग में यह घमंड भर जाये कि वह "पैदाइशी राजा" है और बाकी सब प्रजा तो समझ लो सखि कि वह यह भी समझता है कि वह जो भी काम करेगा, जो भी निर्णय लेगा, जनता आंख मूंदकर उस पर विश्वास करके उसे स्वीकार कर लेगी । यह सोच ही असली बीमारी की जड़ है सखि । इस सोच के कारण ही ये "खानदान" जनता से "कटते" जा रहे हैं । क्योंकि इनका दंभ इन्हें जनता से मिलने नहीं देता है और ये अपने चापलूसों , चाटुकारों , खैरातियों की निगाहों से जनता को देखने और महसूस करने लगते हैं । ये वो "धृतराष्ट्र" हैं जो किसी "संजय" नामक व्यक्ति की आंखों से ही देख पाते हैं । खुद अपनी आंखों से नहीं । जनता अब "अंधभक्त" नहीं रही है सखि । लोग अब पढे लिखे और समझदार हो गये हैं । अब इनका "ईको सिस्टम" भी उतना प्रभावी नहीं रहा है जितना पहले हुआ करता था । अब सोशल मीडिया ने इनका "ईको सिस्टम" ध्वस्त कर दिया है सखि । तो अब इनका "साम्राज्य" भी दरक रहा है और यह सही मायने में यह लोकतंत्र की ओर कदम है । अब "खानदानों" के दिन लदने शुरू हो गये हैं सखि । ये सबसे बड़ी खुशखबरी है ।


ऐसा नहीं है सखि कि केवल "केन्द्रीय स्तर" पर ही "खानदान विशेप" का दबदबा रहा हो । प्रदेश स्तर पर भी बहुत से "खानदान" पैदा हो गये हैं और कुछ अभी पैदा हो रहे हैं । जो कुछ "खानदानों" की "रियासत" इस लोकतांत्रिक देश में रही है उनको जरा याद करो सखि , कौन कौन से हैं वे खानदान । 


जम्मू-कश्मीर में दो खानदान 

हिमालय प्रदेश में एक खानदान 

पंजाब में दो खानदान 

हरियाणा में चार खानदान 

उत्तर प्रदेश में दो खानदान 

बिहार में एक खानदान 

राजस्थान में खानदानी व्यवस्था बनाने का प्रयास, दोनों के ही द्वारा 

पश्चिम बंगाल में भी खानदान की स्थापना का प्रयास हो रहा है 

महाराष्ट्र में दो चर्चित खानदान 

तेलंगाना खानदानी व्यवस्था की ओर बढ रहा है 

आंध्र प्रदेश के प्रतिष्ठित दो खानदान 

तमिलनाडु का प्रसिद्ध खानदान  

असम में एक खानदान 


कुछ छोटे मोटे खानदान अभी बनने की प्रक्रिया में हैं । मगर अभी जो कुछ महाराष्ट्र में हो रहा है उस घटनाक्रम ने इन खानदानी सोच वाले लोगों को बहुत बड़ा झटका दिया है । यह इतना तगड़ा विद्रोह है कि इसकी गूंज "जंग लगे खानदानों" में भी सुनाई दे रही है । ऐसे प्राचीन खानदानों में एकदम सन्नाटा पसरा पड़ा है । एक तो पहले ही "अंदर होने का डर" इतना भयानक था कि उसने रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा दिया था कुछ खानदानियों का । मगर इस "मराठा विद्रोह" ने तो सब खानदानों के खिलाफ विद्रोह का रास्ता खोल दिया । अब दूसरे खानदानों के खिलाफ भी विद्रोह हो सकता है । इसी के चलते इन समस्त खानदानों में मौत का सा सन्नाटा पसरा पड़ा है सखि । और यही बात मुझे अच्छी लगी है सखि कि अब सही मायने में देश लोकतंत्र की ओर बढ रहा है । जो योग्य है वह शासन करेगा । यही होना चाहिए । लेकिन हो क्या रहा है ? प्रधानमंत्री का बेटा /बेटी प्रधानमंत्री बनेगा और मुख्यमंत्री का बेटा / बेटी मुख्यमंत्री । यह लोकतंत्र नहीं राजतंत्र है सखि । और अब इस राजतंत्र की इस संविधान में कोई जगह नहीं है सखि । इस घटना ने राजतंत्र की मौत लिख दी है सखि ।


महाराष्ट्र की घटना इस देश के लिए एक बहुत बड़ा शुभ संकेत है सखि । इसने इस देश को लोकतंत्र का मार्ग दिखाया है जो स्वागत योग्य है । 


आज इतना ही , कल फिर मिलते हैं सखि । बाय बाय । 



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