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Vibha Rani Shrivastava

Children Stories

4  

Vibha Rani Shrivastava

Children Stories

चक्रव्यूह

चक्रव्यूह

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"चासी दादी ! आप टूटे तारों से क्या मांग रही थीं ?" आँखों को बंदकर हाथ जोड़े छुटकी को देखकर नन्हीं ने पूछा।

छुटकी मेरी छोटी बहन जिसका ब्याह मेरे देवर से हुआ था। चाची का चा और मौसी के सी से छुटकी मेरे बेटे की चासी हो जाने के कारण मेरी पोती नन्हीं ने उसे 'चासी दादी' का सम्बोधन दिया।

"धत्त ! मांगी गयी बात भी कहीं बताई जाती है !" छुटकी ने कहा।

"क्या आप बता सकती हैं कि नभ से बिछुड़े तारों का क्या होता होगा ?" नन्हीं ने पूछा

"नभ से बिछुड़ मिट्टी में मिल जाना ही नियति है.." छुटकी ने कहा

"फिर आप प्रयास करती रहती हैं कि मैं दादी-पापा के संग ना रह सकूँ... ! हत्या होगी न ?" नन्हीं ने कहा।

"हाँ ! जी ! मैं सब जानती हूँ। मुझे दादी ने सब कुछ बताया है और समझाया भी है। मुझे पता है कि मैं जन्मदात्री के लिव इन रिलेशनशिप की निशानी हूँ। दादी की बहू ने मुझे अपने पेट से जन्म नहीं दिया है। मैं कान्हा हूँ दादी-पापा के लिए। जिस तरह कंस के कहर से बचाने के लिए... !" कहकर नन्हीं मुस्कुराने लगी।

इतनी छोटी सी बच्ची के मुँह से इतना समझदारी भरा जबाब सुनकर छुटकी का चेहरा उतर गया।

जब मैं बागीचे की तरफ आ रही थी तभी मैंने सुन लिया था, छुटकी नन्हीं से कह रही थी - "तुम्हें पता है कि तुम इनकी बेटे की बेटी नहीं हो। ये जो तुम इनको दादी बोलती हो ना ये तुम्हारे पालन-पोषण की दादी हैं।"

कच्ची उम्र में पकाना पड़ गया समझदारी की आँच पर।


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