STORYMIRROR

Arya Jha

Others

2  

Arya Jha

Others

चालाकियाँ

चालाकियाँ

2 mins
255

"आंटी आप? कोई काम था क्या?" मकान मालकिन ने जब सुबह-सुबह अपनी शक्ल दिखाई तो मैं चौंक पड़ी। हमारा मिलना बस किराया देते समय होता। वह भी बस पैसे रख हमें दरवाज़े से ही लौटा देतीं। ऐसा व्यक्ति अगर जहमत उठा कर दरवाज़े तक आ गया तो अवश्य ही कोई वजह होगी।

"कुछ खास नहीं! बस टीना की बाॅल लौटाने आई थी। लो रख लो, टीना की इसी बाॅल से नवीन की कार का शीशा टूट गया है।" हाथों में एक मैली-कुचैली रबड़ की गेंद दिखाते हुए बोलीं।

"दिखाईये आंटी, टीना बाॅल नहीं, डाॅल से खेलती है और डेढ़ साल के बच्चे के हाथ में इतनी ताकत कहाँ से आएगी कि दूसरे माले की खिड़की से गेंद फेंके और कार का पिछला शीशा टूट जाए?"

जाने मेरी दलील उन्हें कितनी समझ में आई, पर गलत इल्जाम मैं नहीं सहने वाली थी। मुझे बच्चे की गेंद पकड़ा, कार के नुकसान के पैसे वसूल करने की अपनी योजना असफल होते देख वह भी काफी बौखला गईं।

"चाय लेंगी आप?" मैंने औपचारिकता वश पूछा। उन्होंने तो कभी पिलाई नहीं, सोचा मैं ही पिला दूँ। मगर टूटे शीशे का ग़म कुछ इस कदर भारी था कि उनकी सुनने-समझने की शक्ति ही खो गई थी।

"कैसे गंदे-मंदे लोग होते हैं जिनसे दूसरों की ख़ुशियाँ नहीं देखी जाती। कोई कैसे-कैसे पैसे जुटा कर गाड़ी लेता है पर इससे औरों को क्या? जलने वालों की कमी थोड़े ही है। यह काम ज़रूर पड़ोस के शैतान बच्चों का होगा।" मेरी बात अनसुनी कर धड़धड़ाती हुई सीढ़ियां उतर गईं।

पड़ोसन के आगे भी बाॅल दिखाकर वही राम-कहानी दोहरा रही थीं। अपनी सारी तरकीबें अपना कर वह कार के टूटे शीशे का खर्चा निकाले बिना घर ना लौटने वाली थीं। खैर उनकी निम्न सोच व चालाक मानसिकता उनको ही मुबारक हो। इस चक्कर में मेरा भी एक शौक पूरा हो गया था कि मेरे कान्हा की शिकायत आए और मैं मैया यशोदा बन उसे बचाऊँ। मैंने पलट कर अपनी गुड़िया को देखा। वह निर्दोष मुस्कान लिये आंटी की ओर देखे जा रही थी। बच्चों को आगंतुक सदा ही अच्छे लगते हैं। थोड़ी देर और ठहरतीं तो वह अपने सभी खिलौने लाकर उनके साथ खेलती। अपने भोले बच्चे को अंक में भर दुलार करने लगी जैसे उसे आश्वस्त कर रही हूँ। मैं हूँ ना! कोई कितनी भी चालाकियाँ क्यों न कर ले, पर मेरे रहते तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं कर सकता।



Rate this content
Log in