बुलावा
बुलावा
बुलावा
एक पौराणिक कथा: ऋषि विश्वामित्र का आग्रह और राम-सीता, लक्ष्मण-उर्मिला का मिलन
अयोध्या नगरी में सुख-शांति का वातावरण था। महाराज दशरथ अपने चारों पुत्रों के साथ राजसभा में विराजमान थे, तभी द्वारपाल ने सूचना दी — “ऋषि विश्वामित्र पधारे हैं, महाराज!”
राजा दशरथ ने श्रद्धा से उनका स्वागत किया। ऋषि विश्वामित्र ने सीधे विषय पर आते हुए कहा, “हे राजन, मैं एक महायज्ञ का आयोजन कर रहा हूँ, परंतु राक्षस बार-बार विघ्न डालते हैं। मुझे रघुकुल के वीरों की आवश्यकता है — मैं राम और लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा हेतु मांगने आया हूँ।”
दशरथ का हृदय कांप उठा। “हे महर्षि,” उन्होंने कहा, “राम अभी किशोर हैं, उन्हें कैसे युद्ध में भेजूँ?”
विश्वामित्र मुस्कराए, “राजन, यह कोई साधारण बालक नहीं। यह वही राम हैं, जिनका जन्म राक्षसों के अंत के लिए हुआ है। उन्हें भेजना ही धर्म है।”
गुरु वशिष्ठ ने भी सहमति दी — “विश्वामित्र की याचना को अस्वीकार करना अनुचित होगा। यह राम के लिए एक आरंभ है।”
अंततः, दशरथ ने भारी मन से राम और लक्ष्मण को ऋषि के साथ भेजने की अनुमति दी। माता कौशल्या ने अश्रुपूरित नेत्रों से राम को आशीर्वाद दिया, और लक्ष्मण ने अपने धनुष को कसकर थामा।
ऋषि विश्वामित्र के साथ दोनों भाई वन की ओर चल पड़े — एक यज्ञ की रक्षा के लिए, परंतु वास्तव में यह यात्रा थी धर्म की स्थापना की ओर।
🌿 क्लोज़िंग: जब खास बुलावा बना मिलन का माध्यम
विश्वामित्र का यह खास बुलावा केवल यज्ञ की रक्षा तक सीमित नहीं रहा। यही बुलावा राम को मिथिला ले गया, जहाँ जनक की पुत्री सीता से उनका पावन मिलन हुआ। उसी स्वयंबर में लक्ष्मण का उर्मिला से भी विवाह हुआ — एक ऐसा संयोग जो केवल युद्ध नहीं, प्रेम और धर्म की स्थापना का प्रतीक बन गया।
इस प्रकार, ऋषि विश्वामित्र का आग्रह एक यज्ञ की रक्षा से आगे बढ़कर रघुकुल की भावी गाथा का आरंभ बन गया — जहाँ राम ने धर्म का मार्ग चुना, और सीता ने उस मार्ग की संगिनी बनकर युगों तक आदर्श स्थापित किया।
--
