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Ashish Dalal

Children Stories

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Ashish Dalal

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बत्तो चाची की कटोरी (गप्प कथा)

बत्तो चाची की कटोरी (गप्प कथा)

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बत्तो चाची रोज़ की तरह आज भी अपने बचपन की कहानियां बच्चों को सुनाने बैठ गई।

बच्चों ! समझ नहीं आता कौन सी कहानी तुम्हें सुनाऊं? क्योंकि मेरे बचपन की कोई गिनती की मजेदार घटनाएं थोड़े ही है, फिर भी मैं तुम्हें तब की बात बताती हूं जब मैं 10 साल की थी। उस दिन हमारे यहां खीर बनी थी। इतनी बढ़िया खीर थी कि बस उसका स्वाद अब तक याद है मुझे।

'वाह चाची ! आप तो शुरु से ही गप्प कहने लगी।' शानू बीच में ही बात काटते हुए बोली। 

'अरे! इसमें गप्प वाली क्या बात हुई ?' चाची ने पूछा तो नीतू बोली- 'देखो भई, चाची की उम्र अभी होगी 70 की और 60 साल पुराना स्वाद कहीं याद रह सकता है भला?'


'हां ..हां ..आप कब कह रही हैं चाची।' सभी बच्चे एक साथ चिल्लाए।

'तुम्हें कहानी सुननी हो तो सुनो वरना मुझे क्या पड़ी है कि बैठे बिठाए गप्प सुनाऊं।' कहते हुए चाची ने कहानी आगे बढ़ाई।

'हां तो मैं कह रही थी कि उस दिन हमारे यहां खीर बनी थी। मैं उस खीर को बड़े चटकारे लेकर खाए जा रही थी। तभी मेरी कटोरी में खीर खत्म हो गई। मैंने माँ से और खीर मांगी तब माँ के मुंह से यूं ही निकल गया 'कटोरी खिसक!'

फिर क्या था देखते ही देखते कटोरी माँ के पास खिसक गई। सभी को आश्चर्य हुआ। माँ ने खीर दी, तो कटोरी खीर लेकर वापस मेरे पास आ गई। उस दिन से वह कटोरी मेरी प्रिय कटोरी बन गई। मैं वह कटोरी किसी को भी नहीं देती। 

एक रात मैं कटोरी को अपने साथ लेकर सो रही थी कि किसी ने मुझे आवाज़ लगाई- 'बत्तो ओ बत्तो।' मैं हैरान हो गई। इतनी रात को कौन हो सकता है? इधर उधर देखा कोई नहीं था। फिर आवाज़ आई, मैं समझ गई कि हो न हो यह आवाज़ भी कटोरी की ही है। हुआ भी ऐसा ही। कटोरी ही बोली थी। फिर मैं दिन रात कटोरी से ढेरों बातें करती। मैं पढ़ना लिखना छोड़कर कटोरी से ही खेलती रहती। माँ को यह पसंद ना था अतः एक दिन उन्होंने वह कटोरी मुझसे छीनी और ऊपर हवा में उछाल दी। लेकिन मैंने क्या देखा कि कटोरी वापस नहीं आई। त्रिशंकु की तरह आसमान में लटकी रही। मैं बहुत रोई। कटोरी से मिन्नतें भी की कि वह वापस नीचे आ जाए। 


तब कटोरी बोली-' तुम्हारी माँ ने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के खोजकर्ता न्यूटन से अनुमति लिए बिना ही मुझे हवा में उछाल दिया है। अतः मैं न्यूटन की अनुमति के बिना वापस नीचे नहीं आ सकती। अगर तुम न्यूटन से मिन्नतें कर उनकी आवश्यक फ़ीस चुका दो तो शायद मुझे नीचे आने की अनुमति मिल जाए।

'फिर क्या हुआ चाची?' नीतू बोल पड़ी। 

'अरे होना क्या था? उस वक्त तक न्यूटन जिंदा कहां था। वह तो कटोरी को ऊपर स्वर्ग से आवाज़ लगा रहा था और मैं मरे बिना स्वर्ग जाकर कटोरी के लिए इतना पैसा कैसे दे पाती। अगर पैसा इकट्ठा भी हो जाता तो मैं मरे बिना स्वर्ग कैसे जाती?'

'तो चाची उस कटोरी का क्या हुआ?' शानू ने पूछा। 

'अरे बेचारी वह कटोरी मेरी मजबूरी की वजह से अब भी आसमान में लटकी चमक रही है। वो देखो!' चाची ने सूरज की ओर इशारा कर कहा।

'लेकिन चाची वो तो सूरज है।' बच्चों ने एक स्वर में कहा। 

'अरे तुमने मेरी कटोरी को ही तो सूरज नाम दिया है। देखना मैं जब मर कर स्वर्ग जाऊंगी ना तब न्यूटन से कहकर अपनी कटोरी तुम्हारे मनोरंजन के लिए नीचे भेज दूंगी।' चाची ने कहा।

'चाची आपकी यह इच्छा शायद हमारी सात पीढ़ियाँ बीतने के बाद भी पूरी न होगी।' बच्चों ने छेड़ा।

'ठहरो। मेरा मज़ाक उड़ाते हो।' चाची झल्लाई। अब आगे आगे बच्चें भाग रहे थे और उनके पीछे बत्तो चाची।


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