MITHILESH NAG

Children Stories

5.0  

MITHILESH NAG

Children Stories

बरगद की छांव

बरगद की छांव

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माँ बाप एक बरगद की तरह मजबूत, शीतल और छांव से ढक कर अपने बच्चों को संभाल कर रखते है। जब वो पेड़ रहती है,तो उसकी कदर नही होती है। लेकिन जब वही पेड़ कट जाते है तो उसकी कदर समझ मे आती है।

ठीक उसी तरह माँ बाप होते है,जब तक रहते है तो इधर से उधर उनको किया जाता है,लेकिन जब नही रहते है तो याद आती है।

“रामू जो 65 साल की उम्र में खेतों में काम कर रहे है,और ऐसा भी नही है कि जबरदस्ती कर रहे है वो खेत को अपने बच्चों की तरह पालते है।

शाम को.....

“संजय कहाँ हो? अरे! कल खेत से जो मटर लाना है उसके लिए गाड़ी कर दिए हो कि नही”।

(खटिये पर बैठ कर पानी पीते)

“उसकी क्या जरूरत है,आप तो खुद दिन भर खेत मे रहते है... और शाम तक का ही तो काम है”।

“लेकिन ......”

“पिता जी, लेकिन वेकिन कुछ नही.... कल आप जा रहे है बस”।

“ठीक है,”....( शांत हो गए)।


अगली सुबह.....

संजय किसी काम से शहर से बाहर जाता है। और अपने पिता जी बोल कर की “हो सकता है मै दो दिन बाद वापस आऊ, तो आप घर का ख्याल रखियेगा”.।

“ठीक है, तुम आराम से जाओ”।

दोपहर को रामू खेत मे चला जाता है, और खेत मे ही रह कर खाना खाता है,उसको थोड़ा कमजोरी भी है क्योंकि अब वो पहले जैसे कुछ भी नही कर सकते,लेकिन पूरे खेत का मटर अपने हाथ से ही तोड़ कर टोकरी में भर कर घर पर लाते है।

“बहू, पानी लेकर आओ... और मुझे भूख भी लगी है तो कुछ खाने को भी दे देना”।

पिंकी जानती थी कि आने के बाद इनको चिल्लाने की आदत है इसलिये वो पहले से ही सब रख देती है। लेकिन आज खाना बासी लग रहा था।

“पिंकी बहू.... आज खाना कुछ अजीब सा लग रहा है” ( खाते)

“आप का कहने का क्या मतलब... यही की मैने बासी खाना दिया है”(गुस्से से)

रामू बिना कुछ बोले ही खाना खा लिया और अपने कमरे में सोने चले गए।

2 दिन बाद.....

संजय घर मे थके आता है,और पानी के लाने को बोलता है। लेकिन जब पिंकी का मुँह देखता है तो....

“क्या हुआ?” मुँह क्यो बना है”

“कुछ नही”

“फिर भी कुछ तो बात हुई है”

“बोल तो रही हूँ, कुछ नही हुआ है?”

“ठीक है,मत बोलो मैं खाना नही खाऊँगा”।

“वो.... पिता जी तुम्हारे जब देखो बस चिल्लाते रहते है,कुछ करना भी नही लेकिन फिर ऐसे करते है”।

“अच्छा तो ये बात है”,

और खाना खाने के बाद संजय सीधे रामू के कमरे में जाता है। कुछ देर कमरे में ही रहता है।

“आप क्यो जब देखो तभी भी पिंकी को कुछ न कुछ बोलते रहते है,क्यो?”

“देखो बेटा, मैं कुछ नही बोलता बस खेत से आने के बाद प्यास लगी थी पानी लाने को बोला बस”।

“ठीक है,”।

अक्सर संजय कोई भी काम करता तो अपने पिता जी की राय जरूर लेता था। इसलिए संजय हर काम मे सफल भी होता था।

लेकिन पिंकी नही चाहती थी कि हर काम को करने के लिये अपने पिता से ही क्यो राय लेते है।

“तुम्हारे पास भी दिमाग है तो पिता जी क्यो पूछते हो”

“देखो वो कितने भी बुजुर्ग हो जाये लेकिन उनका तजुर्बा हमारे अनुभव से अधिक है”।

“नही.....आज के बाद तुम कोई भी काम करने के लिए उनकी सलाह नही लेना है”

“ठीक है,”

इधर रामू सब सुन रहा था,उसको दुख तो था लेकिन सोचता था कि अब सब बड़े हो गये है तो मेरी क्या जरूरत”।

और एक दिन रामू अपने बेटे से बोला” मैं कुछ दिन के लिए अपने एक मित्र के पास जा रहा हूँ तो मुझे कुछ दिन लग सकते है। ये बात सुन कर पिंकी मन ही मन खुश हो गयी थी और ये सोची की “ अब किसी से कुछ पूछने की जरूरत नही है।“

कुछ दिन बाद...

संजय कोई नए काम के लिए कुछ नए विचार सोच रहा था,लेकिन उसको समझ मे नही आ रहा था कि वे सही रहेगा, उसने अपने पत्नी से पूछा ....

“एक बात समझ मे नही आ रहा है,नई कंपनी पर पैसे लगाऊ”।

“नई कंपनी में पैसे लगा देने से अपना फायदा होगा”। 

और उसको भी समझ मे आया कि पैसे लगा दू। और ऐसा ही हुआ। लेकिन कुछ दिन बाद पता चला कि वो कंपनी ही फ्रॉड निकली और इनका पूरा पैसा बर्बाद हो गया ।

दोनों को बहुत अफसोस हुआ, और संजय को भी समझ मे आ गया कि पिता जी क्यो चले गए थे।क्यो की एक दिन कोई उनको बता रहा था कि तुम्हारी पत्नी उनको बहुत कुछ बोल दी थी ।

कुछ दिन बाद.....

रामू घर आ कर खुद से पानी लेने लगा तो उसके पैरों पर गिर कर संजय माफी मांगता है,और उसकी पत्नी भी साथ थी।

एक गहरी सांस लेकर .....

“देखो बेटा, माँ बाप एक पेड़ है,जो बच्चों को हमेशा धूप से बचा कर उसको ठंडक देता है। जिस तरह बरगद के पेड़ युगों युगों हमे छांव देते है।“

“कभी भी माँ बाप को बोझ मत समझो,और उनको एक मजबूत पेड़ ही समझो, मैं दुनिया देख चुका हूँ, तो तुम को भी बुरे कामो से बचाता रहूँगा ।“



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