बॉडी गॉर्ड

बॉडी गॉर्ड

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मोहित जैसे ही काम से घर लौटा, अटका हुआ दरवाज़ा खोलकर,चौके में काम कर रही पत्नी नेहा की खुली हुई घनी काली जुल्फें हटाकर, सुराहीदार गर्दन में प्यार से हाथ फेरते हुए उसे पीछे से अपनी मजबूत बाँहों में भींच लिया, कामाग्नि भड़काते इस स्पर्श को पाकर उसने भी शरीर ढीला छोड़ दिया और चेहरा उसकी और घुमाकर होंठ अधखुले छोड़ दिए, जिनके मिलते ही मदहोशी के आलम में अभी आँखें मुंदी ही थी कि तभी अचानक चटाचट चटाचट पीठ पर पड़ती नन्ही हथेलियों के दर्द से अरे अरे करते हुए न चाहते हुए भी छोड़ना पड़ा।

पता नहीं किसी कमरे से दौड़ती हुई बेटी रिंकू आई और इन अप्रत्याशित प्रहारों से अपनी मम्मी को बचाने का प्रयास करने लगी।

बढ़ती बच्ची को इन स्पर्शों से शिकायत ही नहीं सख्त एतराज भी था। उसे लगता था कि पापा मम्मी को बेवजह परेशान कर रहे हैं।

मम्मी भी रिंकू का पक्ष लेते हुए शरारत भरे अंदाज़ में बोली "अब मुझ तक पहुँचना, तुम्हारे लिए इतना आसान नहीं है, ये मेरी बॉडी गार्ड है।"

बच्ची ने इस प्रतिष्ठापूर्ण पद से नवाज़े जाने पर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव किया।

"अच्छा! तो हमारे प्यार का सबसे बड़ा दुश्मन तो, हमारे घर में ही पल रहा है, वैसे तो तुम दोनों मेरे दो हाथ हो, पर क्या करूं! मैं भी प्यार के हाथों मजबूर हूँ, कई बार हार कर ख़ुशी मिलती है। "मोहित ने शैतानी भरे अंदाज़ में अपनी बात रखी और बोला "यार,ऐसे तो बहुत मुश्किल हो जाएगी, इस कबाब में हड्डी को कुछ समझाओ।"

नेहा एतराज जताते हुए बोली "मेरी प्यारी बच्ची को प्लीज़ हड्डी मत बोलो" और उसे समझाते हुए निर्देश दिए कि "अब से जब मैं बोलूँ, तब ही आक्रमण करना, अन्यथा नहीं।"

अपने अधिकारों में कमी होते देख रिंकू भी नाराजगी ज़ाहिर करते हुए बोली "लेकिन जब पापा आपको परेशान करते हैं, तो आप खुद मना नहीं कर सकती!"

एक पल को नेहा अनुत्तरित रह गयी मानो बच्ची ने उसे इस षड़यंत्र में शामिल होने पर रंगे हाथ पकड़ लिया हो फिर स्वयं मासूम बनते हुए जवाब दिया "क्या करूं! तेरे पापा मेरे पति भी तो हैं।"


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