बिसलरी

बिसलरी

2 mins
241


आज फ्राइडे था और हमेशा की तरह मुझे घर जाना था।ट्रेन के आने में समय था इस लिए रेलवे स्टेशन पर मैं इधर उधर देख रही थी।पीने के लिए बिसलरी की बोतल लेने मैं एक स्टॉल पर गयी।स्टॉल के सामने शीतल जल के प्याऊ का बोर्ड भी दिखा।मैंने झट से बिसलरी की बोतल ली और पानी पीने लगी।

मुझे लगा जैसे दुकान में करीने से रखी बोतले जैसे अकड़कर शीतल जल के प्याऊ से कह रही हो।"देखा तुमने?मेरे पास एक अलग ही क्लास के लोग आते हैं और तुम तो बस ऐसे ही खड़े रहते हो।तुम्हारे पास गरीब और मजदूर लोग ही आते रहते हैं।मै तो कहती हूँ तुम्हारा यहाँ रहना भी बेकार है।तुम्हारे कारण मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है।"


थोड़ी ही देर में मुझे एक माँ अपने छोटे से बच्चे के लिए पानी की तलाश करते दिखी।उसने बिसलरी की पानी की बोतल को बड़ी हसरत से देखते हुए दुकानदार को पानी माँगा और कुछ मुचड़े हुए नोट निकालकर उसकी तरफ बढ़ाये।दुकानदार ने नोटों को हाथ में लेकर झल्लाकर बोला, "अरे जाओ यहाँ से, इतने पैसे में यहाँ पानी नहीं मिलता है।पता नही कहाँ कहाँ से लोग आ जाते है।"


बच्चा प्यास के मारे जोर जोर से रोने लगा।माँ ने इधर उधर देखा,अचानक पास में ही एक प्याऊ दिखायी दिया।वह भागकर प्याऊ के पास गयी और हाथ की अंजुरी से बच्चे को पानी पिलाने लगी।


बच्चे का रोना बंद हो गया।बच्चे को हँसता देख कर जैसे प्याऊ भी जैसे मंद मंद मुस्कराया।और बिसलरी की बोतल बेचैन हो गयी क्योंकि आज एक बच्चा उनके वहाँ से रोते रोते प्यासा ही चला गया और एक अदने से प्याऊ ने उस बच्चे की प्यास बुझाई ।

सारी बोतले वहाँ खड़ी की खड़ी ही रह गयी जैसे उनको काठ मार गया हो.....


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract