भविष्य की नींव

भविष्य की नींव

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सर्दियों की दुपहरी में जहाँ बाकी बच्चे धूप में बैठे मूंगफली, रेवड़ी चबा रहे थे, वही मासूम बिट्टू अपने घर में, भूखा ही गुड़ीमुड़ी हो कर सो रहा था।

सरकारी दौरे से घर को लौटे रमेश बाबू का कलेजा मुँह को आने लगा। बिट्टू के स्वर्णिम भविष्य के लिए ही दोनों पति पत्नी नौकरी कर रहे है। परन्तु इसका आज तो बर्बाद हो रहा है।

"बिट्टू, उठो बेटा.. खाना तो खा लो। चार बज रहे है, सब यूँ ही रखा है, तुम्हारी माँ भी आने वाली होगी।"

"ठण्डा खाना अच्छा नहीं लगता। अकेले खाने की इच्छा ही नहीं होती, "सपाट लहजे में बिट्टू बोला।

"तुम रोज़ ऐसे ही सो जाते हो क्या?" 

"कभी कभी रोटी सब्जी गोल करके खा लेता हूँ "

"बाहर बैठो धूप में, सबसे बातचीत करो"

"किससे क्या बात करूँ, वो लोग तो अपनी माँ को स्कूल के किस्से सुना रहे होते है, भाई बहन मस्ती करते है। मैं अकेला किस के साथ खेलूँ" खिन्न स्वर में बिट्टू बोला।


मितभाषी बिट्टू की मनस्थिति देख कर रमेश बाबू का निश्चय और दृढ़ हो गया। अपनी महत्वकांक्षाओं के चलते बिट्टू का व्यक्तित्व निर्माण न अधूरा रह जाए, आज ही गाँव में माँ से बात करनी होगी!



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