भूत का ज़ुनून-2
भूत का ज़ुनून-2
रात को देर तक वो प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर काम करती रहीं। आख़िर उसे दुरुस्त कर के वापस बेटे को भेजने पर ही उन्हें चैन आया।तब वो आराम से लंबी तान कर सोईं। बची- खुची छोटी सी रात पलक झपकते ही बीत गई।
सुबह पांच बजे बेहद कर्कश आवाज में अलार्म बजा।
"क्या मुसीबत है!" उन्होंने चादर से हाथ बाहर निकाला और अलार्म को ऐसे बंद किया मानो वो घर में घुस आया कोई कुत्ता दुत्कार कर भगा रही हों।
वो भूल गईं कि आज किसी ज़रूरी मीटिंग के चलते उनके पतिदेव को आठ की जगह सात बजे ही घर से निकलना था, इसीलिए रात को ही ये अलार्म लगाया गया था।
पतिदेव के कानों पर तो इस अलार्म की आवाज़ से जूं तक नहीं रेंगी।
वैसे भी सुबह जल्दी उठ कर चाय बना कर पति को जगाना, उनके कपड़े निकाल कर बाथरूम में रखना, उनका टिफिन तैयार करना, उनके लिए नाश्ता बनाना, फ़िर उनके ऑफिस बैग की सभी चीज़ों को यथास्थान रख कर उपलब्ध कराना तो उनका काम था ही। तो पति इस हल्की सी भुनभुनाहट की आवाज़ पर उठ कर करते भी क्या?
और हां, इतने पर ही बस नहीं था। इसके बाद बाहर झांक कर ये देखना भी उनका ही काम था कि कल माली के लड़के ने कार ठीक से पौंछी थी या नहीं। क्योंकि अगर उस पर धूल जमी हुई मिलती तो उन्हें ही सुनना पड़ता, माली का लड़का तो दोपहर बाद आता। ख़ैर, इस तरफ़ से तो वो बिल्कुल निश्चिंत थीं क्योंकि कल रात को कार तो वो लोग लेकर गए ही थे।
वो कुछ झुंझलाने को हुईं, लेकिन आख़िर किस पर झुंझलातीं? रात को सोने में देर तो उन्होंने ख़ुद ही की थी। वो उठ गईं।काम कितने भी हों, लेकिन थे तो रोज़ के ही काम, जिनकी वो अभ्यस्त थीं। तो सब फटाफट निपट गए।जब पतिदेव की कार ने गेट के बाहर का रुख किया तब उन्हें चैन आया। अब पूरा दिन उनका अपना था। चाहे जो करें, चाहे जैसे करें।
पतिदेव को महसूस हो रहा था कि सुबह कुछ जल्दी घर से निकलने में थोड़ा ज़ोर तो आता है पर इसके फ़ायदे भी हैं। अब देखो, सड़कें किस तरह ख़ाली हैं, ट्रैफिक नाममात्र का है।
उधर ऑफिस की पार्किंग में गाड़ी मोड़ते हुए भी उन्हें भला - भला सा लगा। सारी जगह ख़ाली पड़ी है। कुछ गिने- चुने लोग ही अब तक आए थे तो गाड़ियां भी नाममात्र की ही थीं। रोज़ में तो कैसी मारामारी मची रहती है। पांच- छह बार हॉर्न मारो तब जाकर एंट्री मिलती है। बेचारा पार्किंग वाला व्हिसिल बजाता हुआ यहां- वहां दौड़ता रहता है।
उपस्थिति यंत्र को ठेंगा दिखाकर वो भीतर पहुंचे तो केबिन के बाहर ही उनका पियन ट्रे में पानी का गिलास लिए खड़ा हुआ दिखाई दिया।
अभी तक बॉस और मीटिंग के लिए आने वाले बाक़ी लोग आए नहीं थे।वाह, देखो लोग कम हों, सबके पास थोड़ा ही काम हो तो लोग कितनी मुस्तैदी से काम करते हैं। अभी दस बजेंगे तो देखना पानी पीने के लिए भी वॉटर कूलर पर कतार लगने लगेगी। ठंडा पानी पीकर वो ताज़ादम हो गए। हाथ में पकड़े ऑफिस बैग को झुलाते हुए अपने केबिन का दरवाज़ा खोलने के लिए हैंडल घुमाया।
भीतर झांकते ही जैसे आठ सौ अस्सी वोल्ट का करेंट लगा। बैग हाथ से छूट गया। सामने उनकी रिवॉल्विंग कुर्सी पर हाथ में मोबाइल लिए किसी से बात करती हुई उनकी श्रीमती जी बैठी थीं!
- अरे!
( क्रमशः)
