भोला बचपन
भोला बचपन
गाँव की बावड़ी में दोस्तों के साथ खेल गीली हॉफ पैन्ट मे घर पहुँचा, तो बाबा को घर पर देख वह सहम गयाl शायद अभी -अभी वह शहर से आये थे।
माँ ने उसे देखा तो बोली “बस्ता कहाँ है रे तेरा, फिर भूल आया का ? “
माँ की बात से उसे बैग याद आया तो वह उल्टे पैर ही वापस जाने लगा, तो बाबा ने उसे रोक दिया
“रुक —ना परनाम ना पाती एहे सिखाई है तोरी मईया“
बाबा से डर कर उसके पाँव छू लिए थे l
बाबा उसका बस्ता लेने गए तो, उसने कड़वाहट से माँ से पूछा “क्यों आया है? कब जाएगा?"
माँ हँस दी “ओरा घर है, आबे करत, लल्ला तु आगे खा लीयो“
"नहीं, मुझे खाना नहीं खाना, उसको पहले वापस भेजो"l
रात को उसने माँ बाबा की बातें सुन ली थीं l बाबा उसको शहर साथ ले जाने के लिए आये थे। क्योकि उनके मालिक का बेटा छोटा था और उसको देखने के लिए एक लड़का चाहिए था। वह बाबा को उसके लिये बड़ी तनख़्वा देने को तैयार थेl माँ रो रही थी, पर उनके आगे माँ की चलती कब थी l
शहर में सब कुछ अलग सा था। मालकिन बहुत अच्छी थी, मालिक के बेटे के विदेशी खिलौनो से खेलने को मिलता। मालकिन अपने बेटे के साथ-साथ उसको भी चॉकलेट देतींl बाबा भी अब नही मारता था l कभी-कभी मालकिन के सामने उल्टे उसकी तारीफ करताl
आज मालकिन ने जब उससे पूछा “तुमको कहाँ अच्छा लगता है, शहर या तुम्हारा गाँव?"
उसको कुछ समझ नही आ रहा था, क्या जवाब दे ? भोला बचपन कुछ भी निर्णय कर पाने में असमर्थ था।