भारतीयों में आस्था अंधविश्वास

भारतीयों में आस्था अंधविश्वास

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 "हमारे देश के लोग आस्थावान है अथवा अंधविश्वासी ? आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे।आप में से कौन बताना चाहेगा?"

" आस्था का जन्म हमारे अनुभव के आधार पर होता है । हम अपने माता-पिता के कारण आस्थावान होते हैं।"अनु ने कहा।

"हम माता - पिता के कारण आस्थावान बनते हैं, वो कैसे?" हर्ष ने पूछा।

 " क्योंकि वे अमुक वस्तु में आस्था रखते हैं और उसीके बारे में हमें बताते हैं, जिसका हम पर भी प्रभाव पड़ता है।वैसे आस्था का कुछ हिस्सा हम पर थोपा जाता है, कुछ हम खुद तैयार करते है। अक्सर जो हमे उचित लगता है, हमारी अपनी प्रकृति के अनुसार, उसे हम अपना लेते हैं।"

" चाचाजी क्या आस्था और विश्वास में कुछ अंतर होता है ?"विमल ने पूछा

"विमल,विश्वास और आस्था एक दूसरे के बिलकुल करीब होते हुये भी भिन्न हैं। विश्वास जीव की मूल प्रकृति है जबकि आस्था उसके संस्कारों का नतीज़ा होता है। आस्था हमारी मूल प्रकृति में नहीं होती। आस्था रखना न रखना मनुष्य पर निर्भर होता है।"

"हां,और एक बार आस्था हो जाए तो वह जल्दी डिगती भी नहीं। आस्था बौद्धिक क्षमता से परे होती है। एक आस्थावान को तर्क से हराना आसान नहीं होता।मेरी दादी मां की कोई समझाकर दिखाएं।"हंसते हुए अतुल ने कहा।

"अन्धविश्वास तो अज्ञान है,है न चाचू ?"

 " सर्वाधिक फैला मगर असंगत विश्वास ही अंधविश्वास कहलाता है। अशिक्षित और अज्ञानी परिस्थिति जन्य कारकों को धर्म के साथ जोड़ लेते हैं और तब उसे परम्परा अथवा मान्यता के रूप में स्थापित कर देते हैं, और आनेवाली पीढ़ियां बिना सवाल -जवाब के उनका अनुसरण करने लगती हैं,वही अंधविश्वास है।"

"शिक्षित लोग भी इसके शिकार होते देखे गए हैं,दुख की बात है।"श्यामल ने कहा।

" श्यामल,तुम्हारा कहना बिल्कुल सही है, शिक्षा के प्रसार के बाद अंधविश्वास पर विराम लगने की संभावना बनती है, किन्तु खेद का विषय है कि आज भी हम अंधविश्वास की बेड़ियों से मुक्त नहीं हो पाए हैं।",


 "इसमें हमारे समाज का भी दोष है।विभिन्न चैनलों पर प्रसारित अंधविश्वास को बढ़ाने वाले कार्यक्रम ही लें,क्या उनके निर्माता,कलाकार अशिक्षित हैं ? नहीं।केवल टी आर पी के लिए चुड़ैल, भूत- प्रेत और अतृप्त आत्माओं के बारे में दिखा - दिखा कर दर्शकों को भ्रमित करते हैं।"

"ऐसे कार्यक्रमों का प्रसारण भी कहीं से बुद्धिमत्ता का परिचय नहीं देता,लेकिन उन्हें देखने वाले दर्शक अवश्य हैं,तभी तो ऐसे कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।मैने भी विज्ञापन देखा था,जिसमें एक स्त्री नागिन बन जाती है, कभी चुड़ैल।"लता ने हंसते हुए कहा 

"पढ़ी- लिखी माताएं अपने बच्चों की नज़र उतारती हैं अमुक दिन किस दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए , बाल कब नहीं कटवाने हैं,छींक आ गई तो रुक जाना है,13 नंबर दुर्भाग्य लाता है, काली बिल्ली रास्ता काट गई तो अशुभ मान लेना, झाड़ - फूंक, चंगाई सभा, ग्रहण के दौरान न किए जाने वाले काम, लकी चार्म से सफलता ही मिलती है, दुकानों के ,घरों के यहां तक की कारों पर लोग नींबू और हरी मिर्च को एक धागे में बांधकर लटका देते हैं।काली मटकी पर दैत्य की शक्ल बना कर नवनिर्मित घरों,दुकानों पर टांग देते हैं,ट्रकों के आगे या पीछे फटा जूता लटका देते हैं, इन्हें नजरबट्‍टू कहते हैं।"

"चाचाजी,दादी कहती हैं इनसे किसी भी प्रकार की नजर-बाधा और जादू-टोने से बचा जा सकता है।"चारु झिझकते हुए बोली। 

"ऐसा कुछ नहीं होता।आपको सुनकर दुख और अचंभा होगा कि उड़ीसा ,राजस्थान इत्यादि क्षेत्रों में डायन कहकर महिलाओं की प्रताड़ना और हत्या कर दी जाती है,यह घोर अंधविश्वास नहीं तो और क्या है?

 हम देखते हैं कि वैज्ञानिक सोच रखने वाले भी आस्थावन और अंधविश्वासी दोनों होते हैं, यह एक अंतहीन बहस का विषय है।सब करते हैं।

 जब शिक्षित वर्ग टोना- टोटका,पोंगापंथी, गंडा- ताबीज करते  हैं ,तो दुःख के साथ कहना पड़ता है कि शिक्षा भी अंधविश्वास को रोकने में सक्षम नहीं हो पाई है।"

"आज से हम अंधविश्वास की बेड़ियों में जकडे समाज को इस प्रकार के अज्ञान से बचाएंगे।"

"वाह,फिर तो इस चर्चा का प्रभाव पड़ता दिख रहा है।बहुत अच्छे।"

"धन्यवाद,चाचाजी।"


 



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