भारत में सद्भावना
भारत में सद्भावना
बच्चों, आज की चर्चा का विषय है गौ सेवा की सीख देती, सद्भाव की अलख जगाती 600 साल पुरानी सूफी संत मखदूम की बनाई गाय की मजार।"
"गाय की मज़ार! संतों की मजार तो सही है, गाय की मजार! राजू ने मुकुंद की ओर देखते हुए पूछा।
"हां, सही सुना आपने गाय की मजार। यह अयोध्या के रुदौली में मौजूद है।"
"इसके पीछे की क्या कहानी है, चाचा जी कृपया बताएं।" कुमुदिनी ने कहा।
"इन्हें गायों से बेहद प्रेम था। इन्होंने कई गायें पाल रखी थीं। इनमें से एक इन्हें बेहद प्रिय थी। एक दिन उसकी मृत्यु हो गई, तो मखदूम साहब बहुत दुखी हो गए। उन्होंने मौत के बाद भी उस गाय को खुद से दूर न जाने दिया और आस्ताने में ही उसकी मजार बनवा दी। उसकी कब्र की पहचान हो सके, इसके लिए लाल पत्थर लगवा दिया। यह कब्र आज भी मौजूद है और उनके गौ सेवा के संदेश को फैला रही है।"
"चाचाजी, आपने कहा ये सूफी संत थे, उस विषय में कुछ बताएं।" कैलाश ने कहा।
"वे राम रहीम दोनों में बराबर श्रद्धा रखते थे। उन्हें सरयू से अगाध लगाव था। अपनी तपस्या के लिए उन्होंने सरयू को चुना। राम नगरी आए और मोक्ष दायिनी नदी में एक पैर पर खड़े होकर 40 दिन तक तप किया। आज भी सरयू के इस घाट को मखदूम घाट के नाम से जाना जाता है। हर वर्ग के श्रद्धालु यहां जुटते हैं।"
"चालीस दिन, एक पैर पर खड़े होकर तप किया ! गजब !"चारु विस्मित होते हुए बोला।
"इसके अतिरिक्त कौमी एकता की मिसाल वसंत मनाने की परंपरा भी खानकाह के अंदर है। जहां हर वर्ग और संप्रदाय के लोग धूमधाम से वसंत मनाते हैं।"
"काश ऐसी और भी मिसालें कायम हो सकें !" कल्पना ने कहा।
"आज इसी बात की विशेष आवश्यकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि आप उसे कायम रखने में अवश्य बढ़ चढ़कर योगदान देंगे।"
"जी चाचाजी, अवश्य।" सबने समवेत स्वर में कहा।
"धन्यवाद बच्चों।"
"धन्यवाद,चाचाजी।"