बहानेबाजी
बहानेबाजी
बहुत देर तक तो बहाना ही करती रही कि इस विषय पर क्या लिखूं! मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था मगर खुद से बहाने करते - करते इतनी थक गई कि सोचा अब लिख ही डालूं।
आप मानें या न मानें, बहाने बनाना भी एक कला है और कुछ लोग तो इस कला में इतने पारंगत हो जाते हैं कि उनको पता है कि लोग उनके बहाने समझने लगे हैं लेकिन फिर भी वे बहाने बनाने से बाज नहीं आते। बहानेबाजी की यह कला निरंतर अभ्यास से आती है। जितना ज्यादा आप अभ्यास करेंगे आप उतने ही निपुण होते जाएंगे।
इस कला के कीटाणु बचपन से ही हम सभी के अंदर होते हैं। बचपन मे जब स्कूल नहीं जाना होता था तब पेट दर्द और सिरदर्द का बहाना बनाया जाता था और उसे इस तरह अभिनय करके अंजाम दिया जाता था कि घरवाले परेशान होकर कभी सिंकाई की थैली पेट पर रख देते थे तो कभी कड़वा काढ़ा पीला डालते थे जिसे सहन करना मजबूरी होती थी अन्यथा बहाने की पोल खुल सकती थी ।
अब सिर दर्द या पेट दर्द का निरीक्षण करने वाला कोई यंत्र तो आविष्कृत हुआ नहीं कि पता चल सके बच्चा सच बोल रहा है या बहाना बना रहा है। पोल तो तब खुलती थी जब स्कूल का समय निकल जाने के बाद धीरे से बिस्तर से निकल कर हम खेल में लग जाते थे और पूछने पर काढ़े या सिकाई के कारण दर्द ठीक हो गया, यह बता कर घरवालों को खुश होने का मौका दे देते थे कि उनका नुस्ख़ा काम कर गया। लेकिन यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी होता था कि यह बहाना कभी- कभी ही किया जाय अन्यथा अक्सर करने पर घरवालों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के बाद दंड की पूरी संभावना होती है।
बड़े होने पर भी इस बहाने की कला के कई फायदे मिलने लगे। झाड़ू लगाने का या रोटी पकाने का मन नहीं है तो मम्मी से सीधे- सीधे तो कहा नहीं जा सकता था तब पैर दर्द या होमवर्क का बहाना कारगर सिद्ध होता था।
सहेलियों से पार्टी लेकर अपना नम्बर आने पर किस तरह बात को टाला जाय इस कला में मैं ही नहीं, सभी पारंगत होते हैं।
वैसे भी बहाना बनाना ,इस पर मेरे अकेले का कॉपी राइट तो है नहीं! पति-पत्नी, प्रेमी- प्रेमिका, सास - बहू, नौकर- मालिक, घरेलू बाई - गृहणी, मित्र , भाई - बहन के रिश्ते के अलावा व्यवसायी, नौकरीपेशा , समाजसेवी, राजनीतिज्ञ इन सभी के पास यदि बहाने बनाने की कला न हो तो ये रिश्ते और सम्बंध कब के खत्म हो जाएं।
मेरे एक मित्र है जो कई वर्षों से मिठाई खिलाने के नाम पर बिना कुछ कहे अपने हाव - भाव से बहाने बनाने की कला में इतने पारंगत हैं कि कई बार तो हम सभी मित्रों को लगता है कि उनसे इस अद्भुत कला को अवश्य सीखना चाहिए ताकि यह विलुप्त न हो सके।
बहाने बनाना वैसे तो टॉफी खाने जितना ही आसान है लेकिन इसमें भी कुछ बातों का विशेष ख्याल रखना आवश्यक होता है।
पहली बात- बहाना इस तरह का चुनें जो वास्तविकता के करीब हो ताकि उसे अस्वीकार करने की कोई वजह ही न बचे।
दूसरी बात - बहाने बनाने में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जिसे अभिनय करने में भी सिद्धहस्तता हो।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि भले ही आपका बहाना पकड़ा जाय लेकिन आप अपनी बात पर कायम रहिये क्योंकि सौ बार बोला गया झूठ भी सच बन जाता है।
लोग यदि आपको बहानेबाज कहते हैं, तो कहने दीजिए। लोग तो पता नहीं क्या - क्या कहते हैं। याद रखिये बहानेबाजी आपको खुश रहने के अवसर देती है अन्यथा दुनिया बड़ी ज़ालिम है, मीठी चाशनी में लपेट कर आपको फुर्सत ही नहीं लेने देगी।
रिश्तों की मधुरता भी इसी बहानेबाजी के कारण बच जाती है। अब मान लीजिए आप सहेली से गप्पे मारने में इतनी व्यस्त हो गई कि सब्जी जल गई। अब ऐसे में क्या आप सच बोलकर सबका कोपभाजन बनेंगी या तबियत खराब का बहाना बनाकर सहानुभूति - प्रेम पाना चाहेंगी? बोनस तो यह भी मिल सकता है कि उस दिन खाना बाहर से भी आ सकता है या फिर पतिदेव के हाथों का कच्चा- पक्का खाने के लिए मिल सकता है लेकिन यह उस गुस्से से तो बेहतर ही होगा न!
पुरुषों के लिए तो बहानेबाजी अमोघ अस्त्र के रूप में कारगर है। यदि इस कला से वे वंचित रह जाते हैं तो समझिए उनका उद्धार हो गया! छुट्टी का दिन हो और पत्नी कामों में मदद की आशा कर रही हो लेकिन पतिदेव का मन अखवार के साथ पकौड़े या मैच देखने का हो तो ऐसे में उनका साथ उनकी बहानेबाजी की कला ही देती है।
रिपोर्ट पूरी न हो पाई हो या फिर बॉस से छुट्टी चाहिए वहां भी आपकी हमकदम बनकर आपके साथ बहाने बनाने की कला रहती है।
याद रखिये मित्रों, संसार मे कोई आपका साथ दे या न दे मगर बहाने बनाने की यह कला आपको कभी अकेला नहीं होने देगी। इसलिए बहानेबाजी को न बिल्कुल नहीं कहें और न ही बहानेबाज कहलाने पर दुःखी हो क्योंकि बहाना है जो जमाना है।